सिस्टम की लापरवाही से बेबस शिक्षिका: पति की मौत के बाद अंशदान और पेंशन के लिए भटक रही, 4 साल बाद भी नहीं मिला जवाब

पीड़ित शिक्षिका सीमा साहू
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पीड़ित शिक्षिका सीमा साहू

कवर्धा जिले की शिक्षिका पति की मौत के बाद अंशदान और पेंशन के लिए दर- दर भटक रही है। चार साल पहले दस्तावेज जमा करने के बाद भी आज तक जवाब नहीं मिला।

संजय यादव- कवर्धा। छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले की शिक्षिका सरकारी सिस्टम की लापरवाही के आगे बेबस हो गई हैं। तमरुवा गांव में पदस्थ सीमा साहू पिछले चार वर्षों से अपने मृतक पति के मेडिकल क्लेम, अंशदान और पेंशन के लिए विभागीय दफ्तरों के चक्कर लगा रही हैं। लेकिन आज तक उन्हें उनका हक नहीं मिला।

सीमा साहू के पति दिवंगत सहायक शिक्षक मुकेश साहू की कोरोना काल में मौत हुई थी। अनुकंपा नियुक्ति के तहत सीमा को उसी गांव के प्राथमिक स्कूल में पदस्थ किया गया। वह पूरी निष्ठा से बच्चों को पढ़ा रही हैं, मगर अपने अधिकारों के लिए विभाग की उपेक्षा और फाइलों के भटकाव का सामना कर रही हैं। चार साल पहले सभी दस्तावेज जमा कर दिए थे। लेकिन न DEO कार्यालय और न BEO कार्यालय से कोई स्पष्ट जवाब मिला।

क्लेम पास कराने के लिए मांगी घूस - शिक्षिका
सीमा साहू ने आरोप लगाते हुए कहा- दफ्तरों में जाने पर कभी कहा जाता है कि, फाइल गायब है, कभी कहा जाता है जांच में है। जिसके चलते उनका जीवन दफ्तरों के चक्कर लगाने में बीत रहा है। शिक्षिका ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा- मेडिकल क्लेम पास कराने के लिए एक शिक्षक ने घूस मांगी थी। मजबूरी में उन्होंने पैसे दिए भी लेकिन वह शिक्षक ट्रांसफर होकर चला गया और उनका केस आज भी अधर में लटका है।

पंडरिया विधायक से भी लगाई गुहार
तंग आकर सीमा साहू पंडरिया विधायक भावना बोहरा के पास पहुँचीं और रोते-बिलखते हुए अपनी व्यथा सुनाई। सीमा ने मांग करते हुए कहा कि, उनके पति की अंशदान व पेंशन राशि दिलाई जाए और जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की जाए।

BEO ने दिया मदद का भरोसा
जब इस मामले में BEO संजय दुबे से बात की गई तो उन्होंने कहा- मैं अभी नया आया हूं, प्रकरण की जानकारी नहीं थी। DEO कार्यालय को पत्र भेजकर पूरी रिपोर्ट मंगाई जा रही है। पीड़िता को जल्द राहत दिलाने का प्रयास होगा।


प्रशासनिक लापरवाही पर उठे सवाल
सरकारी शिक्षक की फाइल विभागीय दफ्तर से गायब कैसे हो जाती है। क्या प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार का बोझ अब उन शिक्षकों को भी उठाना पड़ेगा, जो समाज का भविष्य गढ़ते हैं। सीमा साहू आज भी आवेदन की प्रतियां और उम्मीद दोनों संभालकर विभागों के चक्कर लगा रही हैं। पति की मौत का दर्द और सिस्टम की बेरुखी दोनों के बीच वह फिर भी स्कूल में बच्चों को मुस्कुराकर पढ़ाती हैं।

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