एक ही बेड पर दो प्रसूता: मेकाहारा की बदहाली का हाईकोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान, मांगा जवाब

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर
पंकज गुप्ते - बिलासपुर। राजधानी के मेकाहारा अस्पताल (डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय) के गायनिक वार्ड में दो प्रसूताओं को एक ही बेड पर भर्ती किए जाने की घटना ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिसपर बिलासपुर हाईकोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है।
चीफ जस्टिस ने जताई नाराज़गी
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की बेंच ने इस मामले पर कड़ी नाराज़गी जताते हुए कहा कि, राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में यह हालात बेहद दुखद हैं। साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर राजधानी के प्रमुख अस्पताल की यह स्थिति है, तो प्रदेश के अन्य जिलों में हालात की कल्पना की जा सकती है।
राज्य सरकार से मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) को 6 नवंबर तक शपथपत्र (affidavit) प्रस्तुत करना होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ऐसी घटनाएं मानव गरिमा के विपरीत हैं और प्रशासन को तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने होंगे।

मेकाहारा में रोज़ाना दो दर्जन डिलीवरी
जानकारी के अनुसार, मेकाहारा अस्पताल में रोज़ाना लगभग 20 से 25 प्रसव होते हैं। मरीजों की संख्या के मुकाबले बेड की भारी कमी है। वार्डों में जगह न मिलने के कारण कई बार मरीजों को फर्श या स्ट्रेचर पर भी रखना पड़ता है।
पहले भी दिख चुकी है अव्यवस्था
बता दें कि राज्य के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा में अव्यवस्था को लेकर हाईकोर्ट पहले भी कई बार सख्ती दिखा चुका है। हाल ही में अस्पताल के वार्ड में एक नवजात शिशु के सीने पर 'मेरी मां HIV पॉजिटिव है' लिखा बोर्ड लगाए जाने की घटना को कोर्ट ने अमानवीय कृत्य करार दिया था। इसके बावजूद मेकाहारा में व्यवस्थाओं का वही आलम बना हुआ है और अब फिर से मरीजों की स्थिति चिंताजनक है।
सिस्टम पर सवाल
इस घटना ने न केवल स्वास्थ्य तंत्र की लापरवाही को उजागर किया है, बल्कि राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है। जनता अब यह सवाल उठा रही है कि जब राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल का यह हाल है, तो ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों में मरीजों का क्या हाल होगा?
