शहीद वीर नारायण सिंह का बलिदान दिवस: PRSU के इतिहास विभाग में विशेष आयोजन, विद्वानों ने बताया अमर शहीद का योगदान

PRSU के इतिहास विभाग में विशेष आयोजन, विद्वानों ने बताया अमर शहीद का योगदान
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 PRSU के इतिहास विभाग में विशेष आयोजन

पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर की इतिहास अध्ययन शाला में शहीद वीर नारायण सिंह जी का 168वां बलिदान दिवस श्रद्धा के साथ मनाया गया।

रायपुर। छत्तीसगढ़ के वीर सपूत और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद वीर नारायण सिंह के 168वें बलिदान दिवस के अवसर पर पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर की इतिहास अध्ययन शाला में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर डॉ. आर. के. ब्रह्मे ने की, जिसमें छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद के विद्वान, विभागीय प्राध्यापक, शोधार्थी और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं शामिल हुए।

गरीबों और किसानों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले जननायक- प्रो. डॉ. आभा रूपेंद्रपाल
छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद की अध्यक्ष एवं पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) आभा रूपेंद्रपाल ने कहा कि वीर नारायण सिंह अंग्रेजी शासन के अत्याचारों के विरुद्ध खड़े होने वाले किसान-हितैषी जननायक थे। उन्होंने 1856 के भीषण अकाल में गोदामों का अनाज गरीबों में बांटकर मानवता की मिसाल पेश की। अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों से जब किसान भूखों मरने लगे, तब उन्होंने किसानों को संगठित कर अंग्रेजों का साहसपूर्वक मुकाबला किया। उन पर अंग्रेजों ने अनाज लूटने का आरोप लगाया, जबकि वास्तव में उन्होंने अपनी प्रजा को उनके अधिकार का भोजन दिलाया था। अंततः अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर 10 दिसंबर 1857 को रायपुर में फांसी दे दी।


'अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक हैं वीर नारायण'- प्रो. रमेंद्र नाथ मिश्र
मुख्य वक्ता प्रोफेसर रमेंद्र नाथ मिश्र, पूर्व विभागाध्यक्ष, इतिहास अध्ययन शाला ने कहा कि वीर नारायण सिंह की लड़ाई असमानता और अन्याय के खिलाफ थी। अंग्रेजों ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाकर फांसी दी, लेकिन वे 1857 की क्रांति में छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में सदैव याद किए जाते रहेंगे।

'सुविधा त्यागकर संघर्ष का मार्ग चुना'- विभागाध्यक्ष प्रो. आर. के. ब्रह्मे
विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) आर. के. ब्रह्मे ने कहा कि सोनाखान के जमींदार होने के बावजूद वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों की खुशामद और सुविधाओं का जीवन त्यागकर अन्याय के खिलाफ संघर्ष का मार्ग चुना। उनका बलिदान आज भी समाज को साहस, स्वाभिमान और एकता का संदेश देता है।


प्रतियोगिताएँ, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सम्मान समारोह भी आयोजित
कार्यक्रम के दौरान ये कार्यक्रम आयोजित किए गए। विजयी प्रतिभागियों को अतिथियों द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।

  • खेलकूद गतिविधियाँ
  • भाषण प्रतियोगिता
  • गीत प्रस्तुति
  • रंगोली प्रतियोगिता

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. (डॉ.) के. के. अग्रवाल (उपाध्यक्ष, छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद), प्रो. (डॉ.) बी. एल. सोनकर (अर्थशास्त्र अध्ययन शाला के अध्यक्ष) उपस्थित रहे।

अतिथि एवं प्राध्यापकों की उपस्थिति
इस अवसर पर (डॉ.) डी. एन. खूटे, (डॉ.) बसों नूरूटि, (डॉ.) सीमा पाल, (डॉ.) उदय अडाउ, (डॉ.) दिप्ती वर्मा सहित अनेक शोधार्थी और छात्र मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी गोल्डी राज एक्का ने किया।

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