'पॉवर, पॉलिटिक्स एंड पेन' बौद्धिक संवाद: संघ का व्यक्ति किसी पार्टी में तो जा सकता है, लेकिन राजनीति हमेशा देश, समाज और राष्ट्रहित में होनी चाहिए

पॉवर, पॉलिटिक्स एंड पेन बौद्धिक संवाद  :  संघ का व्यक्ति किसी पार्टी में तो जा सकता है, लेकिन राजनीति हमेशा देश, समाज और राष्ट्रहित में होनी चाहिए
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हरिभूमि-आईएनएच न्यूज के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी और संघ प्रचारक, चिंतक एवं लेखक डॉ.राम माधव

पॉवर, पॉलिटिक्स एंड पेन' कार्यक्रम में डॉ. राम माधव और हरिभूमि-आईएनएच न्यूज के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी शामिल हुए। कई मुद्दों पर चर्चा हुई।

रायपुर। ईओ रायपुर की ओर से शुक्रवार को विशेष बौद्धिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शीर्षक 'पॉवर, पॉलिटिक्स एंड पेन' रखा गया, जिसमें शक्ति, राजनीति और लेखनी के विविध पहलुओं पर गहन चर्चा हुई। इस सत्र में बतौर प्रमुख अतिथि डॉ. राम माधव और हरिभूमि-आईएनएच न्यूज के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी शामिल रहे।

कार्यक्रम के दौरान संघ प्रचारक, चिंतक एवं लेखक डॉ. राम माधव ने राजनीति और लेखन से जुड़े अपने गहन अनुभव साझा किए। उन्होंने देश-दुनिया, संघ और भाजपा से संबंधित मुद्दों पर भी खुलकर विचार रखे। आयोजन समिति के अनुसार, इस मंच का उद्देश्य शक्ति, राजनीति और कलम के आपसी संबंधों को समझना और समाज पर उनके प्रभाव पर प्रकाश डालना था। उनका मानना है कि इस तरह की बौद्धिक चर्चा प्रतिभागियों को नए दृष्टिकोण देती प्रतिभागियों को नए दृष्टिकोण देती है और सकारात्मक संवाद की नींव रखती है। यह सत्र 'कॅटलिस्ट' नाम से आयोजित किया गया। डॉ. हिमांशु द्विवेदी के सवालों का उन्होंने बेलाग जवाब दिए।

पेश हैं प्रमुख अंश

संघ के 100 साल के इतिहास में अब तक कुल 6 संघ प्रमुख हुए हैं, लेकिन प्रवक्ता के रूप में केवल एक ही नाम सामने आता है- डॉ. राम माधव। आपने ऐसा क्या किया कि संघ को लगा अब प्रवक्ता की जरूरत है?
संघ को महसूस हुआ कि, प्रवक्ता की जरूरत है। जब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार बनी थी, उस समय गांधीजी और संघ को लेकर तरह-तरह की बातें की जाती थीं। बार-बार सवाल उठते थे, जिनका जवाब देना जरूरी हो गया। उसी समय प्रवक्ता की आवश्यकता पड़ी। 2001 में यह जिम्मेदारी मुझे दी गई और आज तक निभा रहा हूं।

आप अच्छे पढ़े-लिखे थे, उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएं थीं। ऐसे में आपने कैसे सोचा कि संघ का प्रचारक बनना है?
लाइफ में गलतियां हो जाती हैं। संघ में जाने का फैसला मैंने किसी खास सोच-विचार, शोध या विश्लेषण के बाद नहीं लिया। बस एक पैशन था कि देश के लिए कुछ करना है। जब घरवालों ने पूछा कि कितने समय तक रहोगे तो मैंने कहा था कि दो-तीन साल रहूंगा, लेकिन अभी 40 साल हो चुके हैं, वे दो-तीन साल पूरे नहीं हुए हैं। आज लोग संघ के विचारों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। हिंदुत्व एक भावनात्मक विचार है। हिंदू राष्ट्र करोड़ों लोगों की मन की भाषा है। मजहब कोई भी हो, लेकिन कोई बाहर से नहीं आया है। मजहब बदलने से पूर्वज नहीं बदल जाते।

संघ में प्रचारक या प्रांताध्यक्ष बनने को लेकर कभी संघर्ष दिखाई नहीं देता। इस बारे में बताइए?
संघ में शुरू से ही जो मानसिकता बनाई गई, वही आज भी कायम है। एक बार आयोजन में 8 साल का बच्चा गीत गा रहा था" इस संस्कार का अंधकार मिटाने के लिए जीना है।" यही संघ की असली आस्था है। 100 रुपए के सिक्के पर भी मोटे अक्षरों में संघ का मोटो लिखा हुआ है कि हमारे लिए पहले राष्ट्र है। संघ में न पद है, न नेता। यह संगठन बिना लीडर के चलता है। सभी को साथ लेकर चलने की यही शक्ति है, जिसे तोड़ना किसी के लिए संभव नहीं हुआ। संघ में जाने से कुछ नहीं मिलता, उल्टे देना पड़ता है समय, गुरुदीक्षा । पहले तो आरएसएस के लोगों को बेटी भी नहीं देते थे।

राजनीतिक दलों के साथ जो रिश्ता है, उसे आप कैसे परिभाषित करेंगे? क्या पहले वह आपका हथियार था और अब आप उसका हथियार बन गए हैं?
स्वाभाविक है कि संघ के बहुत से स्वयंसेवक भाजपा और जनता पार्टी में गए। मैं स्वयं हूं। भाजपा हमारा समर्थन मांगती है, अन्य कोई नहीं मांगता। अगर मांगे तो उन्हें भी समर्थन मिलेगा, लेकिन हमारे अनुशासन में रहना होगा। संघ से जुड़े व्यक्ति के लिए यह जरूरी नहीं कि कोई खास पार्टी में ही जाए। किसी भी जगह जा सकते हैं, लेकिन संघ के मूल विचारों को भूलना नहीं चाहिए। राजनीति हमेशा देश, समाज और राष्ट्रहित में होनी चाहिए।

संघ की कसौटी और आदर्शों के अनुरूप भाजपा कितनी फिट बैठती है?
अब तक कोई आपत्ति नहीं रही है। हम यह नहीं सोचते कि केवल आदर्शवादी होकर ही राजनीति करनी है। राजनीति में अन्य लोगों के साथ चलना पड़ सकता है और चलना भी चाहिए। जब तक आपका उद्देश्य नहीं बिगड़ता, इसमें कोई दिक्कत नहीं। राजनीति में कोई स्थायी मापदंड नहीं होता।

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