अगले शैक्षणिक सत्र से नई व्यवस्था: अब केवल पहली कक्षा में ही आरटीई के जरिए दाखिले, नर्सरी की कक्षाएं योजना से बाहर

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रायपुर। शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत निजी स्कूलों में दाखिले केवल पहली कक्षा में ही मिलेंगे। नर्सरी कक्षाओं को प्रवेश की दौड़ से बाहर कर दिया गया है। शैक्षणिक सत्र 2026-27 से यह नई व्यवस्था लागू होगी। इसे लेकर स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा आदेश भी जारी कर दिया गया है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत सीटें गरीब वर्ग के लिए आरक्षित रखी जाती हैं। नर्सरी, पीपी-1 और पीपी-2 सहित पहली कक्षा में आरटीई के जरिए प्रवेश दिए जाते हैं।
इन कक्षाओं में प्रवेश प्राप्त करने वाले छात्र आगे की पढ़ाई संबंधित निजी स्कूलों में ही जारी रखते हैं। आदेश के मुताबिक, अब गरीब छात्रों के पास केवल पहली कक्षा में ही दाखिले का अवसर होगा। अब तक पहली कक्षा सहित नर्सरी कक्षाओं में भी प्रवेश के लिए आवेदन करने का मौका आरटीई के अंतर्गत होता था। नर्सरी में मनचाहे स्कूल में दाखिला नहीं मिल पाने पर छात्र आने वाले वर्षों में अगली कक्षाओं के लिए आवेदन करने पात्र होते थे। अब यह विकल्प छात्रों के पास नहीं होगा।
एकरूपता लाने प्रयोग
किसी निजी विद्यालय में नर्सरी कक्षा से स्कूलिंग की शुरुआत होती है तो कहीं पहली कक्षा शुरुआती कक्षा होती है। जिस निजी विद्यालय में जो निजी कक्षा होती है, वे वहीं से आरटीई दाखिले की शुरुआत करते हैं। विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, एकरूपता लाने यह प्रयोग किया जा रहा है। आदेश के बाद अब सभी निजी विद्यालयों में पहली कक्षा से ही प्रवेश होंगे। निजी स्कूलों के समक्ष एक समस्या सीट संख्या को लेकर भी है। चूंकि आरटीई के लिए कुल सीटों का 25 प्रतिशत आरक्षित करना होता है, ऐसे में नर्सरी से पहली कक्षा में प्रवेश लेने वाले 25 प्रतिशत विद्यार्थियों को स्कूल से बाहर करना होगा अथवा पहली कक्षा की सीटें नर्सरी कक्षा से 25 प्रतिशत अधिक रखनी होगी।
पैसे बचाने नए नियम
निजी स्कूल आदेश जारी होते ही विरोध में उतर आए हैं। उनका कहना है कि शासन द्वारा पैसे बचाने यह नियम लाया गया है। निजी स्कूल संघ के प्रदेशाध्यक्ष राजीव गुप्ता ने कहा, यदि छात्र नर्सरी कक्षा से ही निजी स्कूल में अध्ययन करेगा तो शासन को नर्सरी, पीपी-1 और पीपी-2 की फीस भी देनी होगी। शासन इसमें बचत करने के लिए नया नियम लेकर आ रही है। बाल्यावस्था की शिक्षा 3-6 वर्ष तक सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है, जहां भाषा, व्यवहार और सीखने की नींव रखी जाती है। आर्थिक रूप से सक्षम वर्ग के बच्चे निजी स्कूलों में नर्सरी से पढ़ाई जारी रखेंगे, जबकि गरीब बच्चे सीधे पहली कक्षा में प्रवेश लेकर शैक्षणिक असमानता के शिकार होंगे। यह निर्णय बच्चों पर मानसिक दबाव बढ़ाएगा और ड्रॉप-आउट की आशंका को बढ़ावा देगा।
