छत्तीसगढ़ में अरबों का NGO घोटाला: हाई कोर्ट के आदेश पर होगी CBI जांच, लपेटे में 6 आईएएस समेत 15 अफसर

NGO घोटाले में सीबीआई जांच का रास्ता साफ
पंकज गुप्ते- बिलासपुर। राज्य स्त्रोत नि:शक्त जन संस्थान अस्पताल के नाम पर हुए हजार करोड़ के घोटाले मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि, इतने गंभीर मामले में स्थानीय एजेंसियों या पुलिस से जांच कराना उचित नहीं होगा। मामले में राज्य के छह आईएएस अफसरों समेत कई अधिकारियों पर गंभीर आरोप हैं।
दरअसल, रायपुर के कुशालपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने 2017 में जनहित याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि, राज्य के कुछ वर्तमान और सेवानिवृत्त आईएएस अफसरों ने एनजीओ के नाम पर करोड़ों का घोटाला किया है। याचिका पर 2018 से सुनवाई चल रही थी। इस दौरान यह तथ्य सामने आया कि राज्य स्त्रोत नि:शक्त जन संस्थान नाम की कोई संस्था अस्तित्व में ही नहीं है। केवल कागजों में संस्था का गठन दिखाया गया और इसके नाम पर करोड़ों की मशीनें खरीदी गईं। रखरखाव के नाम पर भी करोड़ों खर्च दिखाए गए।
गड़बड़ियों का लगाया आरोप
याचिकाकर्ता ने खुलासा किया कि, उन्हें इसी कथित अस्पताल का कर्मचारी बताते हुए वेतन तक दिया गया था। आरटीआई से पता चला कि नया रायपुर स्थित इस अस्पताल को एक एनजीओ चला रहा है। संस्था के नाम पर बैंक ऑफ इंडिया और एसबीआई मोतीबाग की शाखाओं में फर्जी आधार कार्ड से खाते खोलकर करोड़ों रुपये की निकासी की गई। मामले में उस समय के मुख्य सचिव अजय सिंह ने शपथ पत्र देकर स्वीकार किया कि 150 से 200 करोड़ तक की गड़बड़ियां हुई हैं।
करोड़ों की मशीनें खरीदी गईं
याचिका में बताया गया है कि, खुद याचिकाकर्ता को एक शासकीय अस्पताल राज्य स्त्रोत निःशक्त जन संस्थान में कार्यरत बताते हुए वेतन देने की जानकारी पहले मिली। इसके बाद उन्होंने आरटीआई के तहत जानकारी ली तो पता चला कि नया रायपुर स्थित इस कथित अस्पताल को एक एनजीओ चला रहा है। जिसमें करोड़ों की मशीनें खरीदी गई हैं। इनके रखरखाव में भी करोड़ों का खर्च आना बताया गया। याचिका में कहा गया कि स्टेट रिसोर्स सेंटर का कार्यालय माना रायपुर में बताया गया, जो समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत है।
यह एक संगठित और सुनियोजित अपराध
याचिका में यह भी बताया गया कि, एसआरसी ने बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट और एसबीआई मोतीबाग के तीन एकाउंट से संस्थान में कार्यरत अलग-अलग लोगों के नाम पर फर्जी आधार कार्ड से खाते खुलवाकर रुपए निकाले गए। सुनवाई के दौरान राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने शपथ-पत्र दिया। इसमें उन्होंने 150-200 करोड़ की गलतियां सामने आने की बात कही। हाईकोर्ट ने कहा कि जिसे राज्य के मुख्य सचिव गलतियां और त्रुटि बता रहे हैं, वह एक संगठित और सुनियोजित अपराध है। कोर्ट ने सीबीआई को जांच के लिए निर्देश दिए थे। साथ ही हाईकोर्ट के निर्देश पर घोटाले में फंसे आधा दर्जन से अधिक आईएएस अधिकारियों ने भी अपना जवाब प्रस्तुत किया। इसके बाद अब यह फैसला सुनाया गया है।
6 आईएएस अफसरों के नाम शामिल
याचिका में 6 आईएएस अफसरों- आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती, समेत सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा पर लगाए गए आरोप प्रारंभिक तौर पर सही पाए गए। पूरे मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस पीपी साहू और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने कहा कि, यह महज त्रुटि नहीं बल्कि संगठित और सुनियोजित अपराध है। अदालत ने सीबीआई को आदेश दिया है कि वह 15 दिनों के भीतर सभी संबंधित दस्तावेज जब्त कर जांच शुरू करे। कोर्ट के आदेश के बाद अब इस बहुचर्चित घोटाले में सीबीआई जांच की राह साफ हो गई है।
हाईकोर्ट ने दिए सीबीआई को जांच के आदेश
प्रकरण की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगाते हुए सुनवाई के लिए प्रकरण छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को वापस भेज दिया था। इस पर चल रही सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने अब सीबीआई को जांच का आदेश दिया है। रायपुर के कुशालपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने छत्तीसगढ़ के कुछ वर्तमान और रिटायर्ड आईएएस अफसरों पर एनजीओ के नाम पर करोड़ों का घोटाला करने का आरोप लगाते हुए जनहित याचिका 2017 में याचिका दायर की। 2018 में जनहित याचिका के रूप में इसकी सुनवाई शुरू की गई। सुनवाई के दौरान पता चला कि राज्य स्रोत निःशक्त जन संस्थान नाम की संस्था ही नहीं है। सिर्फ कागजों में संस्था का गठन किया गया था। राज्य को संस्था के माध्यम से 1000 करोड़ का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा, जो कि 2004 से 2018 के बीच में 10 साल से ज्यादा समय तक किया गया।
