छत्तीसगढ़ को मिली मखाना बोर्ड की सौगात: डॉ. गजेंद्र चंद्राकर की शोध ने दिलाई राष्ट्रीय पहचान, जानिए मखाना खेती की संघर्षगाथा

छत्तीसगढ़ का पहला मखाना प्रसंस्करण केंद्र
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छत्तीसगढ़ का पहला मखाना प्रसंस्करण केंद्र

छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय मखाना बोर्ड में शामिल करना ऐतिहासिक फैसला है। इसके पीछे डॉ. गजेंद्र चंद्राकर की जमीनी प्रयोगों की कहानी छिपी है। जानिए मखाना खेती के सफरनामा के बारे में...

गोपी कश्यप- नगरी। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय मखाना बोर्ड में शामिल करने की घोषणा की है। यह केवल घोषणा नहीं बल्कि राज्य की कृषि क्षमता को मिला राष्ट्रीय सम्मान है। इस उपलब्धि के पीछे डॉ. गजेंद्र चंद्राकर की लगन, शोध और जमीनी प्रयोगों की कहानी छिपी है जिसने प्रदेश के मखाना को राष्ट्रीय पहचान दिलाई है।

दरअसल, मखाना की खेती छत्तीसगढ़ में वर्ष 2016 में शुरू हुई थी। उस समय कृषि विज्ञान केंद्र धमतरी में विशिष्ट वैज्ञानिक स्व. डॉ. सुदर्शन चंद्रवंशी के नेतृत्व में यह प्रयोग प्रारंभ हुआ। उनके निधन के बाद यह पूरी पहल लगभग ठहर गई। इसके बाद 2017–18 जिला प्रशासन के सहयोग से पहली बार बड़े पैमाने पर मखाना की खेती आरंभ हुई। 2019 में जिला पंचायत के सहयोग से केवीके धमतरी में प्रसंस्करण मशीन भी लगाई गई, परंतु 2021 तक खेती लगभग बंद हो गई।

डॉ. गजेंद्र चंद्राकर ने पैतृक गांव एम् शुरू की खेती
डॉ. गजेंद्र चंद्राकर ने अपने पैतृक गांव लिगाडीह (आरंग ब्लॉक रायपुर) में स्वयं प्रयोग शुरू किए। अपने पिता स्व. कृष्ण कुमार चंद्राकर के निधन के बाद भी उन्होंने प्रयोग जारी रखे और परिवारिक भूमि बंटवारे के बाद 15 एकड़ में खेती शुरू की। छत्तीसगढ़ का पहला मखाना प्रसंस्करण केंद्र उन्होंने ₹1 करोड़ 35 लाख की परियोजना लागत पर बैंक ऑफ बड़ौदा, अमलेश्वर शाखा से ऋण लेकर स्थापित किया। यहां तक कि प्रसंस्करण केंद्र तक पहुंच मार्ग की रजिस्ट्री भी पारिवारिक विवादों के चलते पत्नी मनीषा चंद्राकर के नाम करानी पड़ी।

छत्तीसगढ़ के प्रथम प्रसंस्करण केंद्र का शुभारंभ
5 दिसंबर 2021 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने इसका वर्चुअल लोकार्पण किया। इसी अवसर पर उनके पिता की स्मृति में 'दाऊजी मखाना' ब्रांड का भी उद्घाटन हुआ। शुरुआती दौर में रायपुर के व्यापारियों ने रंग, साइज़ और आकार के आधार पर छत्तीसगढ़ के मखाने को कई बार अस्वीकार कर दिया।


प्रदर्शनी से मिली पहचान, प्रतिष्ठित ब्रांड बन उभरा
व्यापारियों की धारणा थी कि, छत्तीसगढ़ का मखाना बिहार से हल्का है, इसलिए इसका मूल्य कम होना चाहिए। लेकिन पांच वर्षों की लगातार मेहनत के बाद आज 'दाऊजी मखाना' प्रदेश के प्रमुख ड्राई फ्रूट बाजारों में प्रतिष्ठित ब्रांड बन चुका है। डॉ. चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ में मखाना को लोकप्रिय करने के लिए कई बड़े मंचों पर प्रदर्शनी लगाई। विभिन्न कृषि प्रदर्शनों में उन्होंने मखाना के रंग, आकार, स्वाद, प्रसंस्करण, गुणवत्ता और कीमत को लेकर व्यापक जागरूकता अभियान चलाया।

तीन बार राष्ट्रीय मखाना महोत्सव में किया प्रतिनिधित्व
NRC दरभंगा द्वारा हर वर्ष विभिन्न राज्यों से मखाना उत्पादन की रिपोर्ट मांगी जाती है। डॉ. चंद्राकर लगातार यह रिपोर्ट भेजते रहे। इन्हें तीन बार राष्ट्रीय मखाना महोत्सव (पटना) में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। यही निरंतरता छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय मखाना बोर्ड में शामिल किए जाने का सबसे बड़ा कारण बनी।

शोधार्थियों ने मखाना को किया पुनर्जीवित
धमतरी में बंद हो चुकी खेती को पुनर्जीवित करने के लिए डॉ. चंद्राकर ने अपने पीएचडी शोधार्थी, डॉ. अकानंद धीमर और डॉ. योगेंद्र चंदेल के साथ मिलकर 2024–25 में नया प्रयोग शुरू किया। खरपतवार से भरे, ऊबड़- खाबड़ तालाबों को साफ कराया गया। किसानों से पानी खरीदा गया। लीज पर तालाब लेकर 30 एकड़ में खेती की शुरुआत हुई।


स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को दिया गया प्रशिक्षण
29 क्विंटल ग्राम राखी और ग्राम सरसोंपुरी के तालाबों से साथ ही महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षण भी दिया गया। इसमें जिला प्रशासन का बड़ा योगदान रहा है। धमतरी कलेक्टर अविनाश मिश्रा ने कृषि, उद्यानिकी, सिंचाई, मत्स्य एवं राजस्व विभागों की संयुक्त बैठकें आयोजित कर परियोजना को दिशा दी। उनके समन्वय से ही यह मॉडल सफल हो पाया।

2025 तक 200 एकड़ में खेती का लक्ष्य
केवीके धमतरी की प्रसंस्करण मशीन वर्तमान में बंद होने के कारण फिलहाल प्रसंस्करण आरंग में हो रहा है। लेकिन अगले वर्ष 200 एकड़ का लक्ष्य रखा गया है। कलेक्टर के मार्गदर्शन में महिला समूह, एफपीओ, मछुआरा समितियों और वैज्ञानिकों को जोड़कर धमतरी को देश का दूसरा बड़ा मखाना उत्पादन केंद्र बनाने की योजना तैयार है।

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