राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर विशेष: शिक्षक नहीं, फिर भी जगा रहे शिक्षा की अलख, हुनर सिखाकर युवाओं को बना रहे आत्मनिर्भर

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रायपुर। समाज को शिक्षा से जोड़ने की अहम कड़ी के रूप में सिर्फ शिक्षक ही नहीं होते, कुछ ऐसे लोग भी सरोकार से जुड़कर शिक्षा की अलख जगाने में अहम कड़ी के रूप में काम करते हैं। अलग-अलग क्षेत्र में हुनर सिखाकर युवाओं को आत्मनिर्भर भी बना रहे हैं। ऐसे लोगों की बात राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर लाजिमी है, जिनके प्रयास से विभिन्न क्षेत्र में लोग पारंगत हो रहे हैं। जबकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 11 सितंबर 2008 को घोषणा की थी कि भारत में शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को याद किया जाना चाहिए।
देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने की परंपरा रही है। इस शहर में कई ऐसे लोग हैं, जो वर्तमान दौर में भी इसे सार्थक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे लोगों द्वारा किए जाने वाले प्रयासों को जानना इस मौके पर जरूरी हो जाता है।
खुद योग सीखा, अब बना रहे आत्मनिर्भर
करीब सालभर पहले सरकारी शिक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए छगन लाल सोनवानी योगगुरु के रूप में अब भी भनपुरी स्कूल में सुबह आसपास रहने वाले लोगों को योगाभ्यास कराने के लिए पहुंच जाते हैं। वे किसी को इसके लिए बुलाने नहीं जाते, जैसे ही सुबह 6 बजते हैं, लोग खुद ही योगाभ्यास के लिए वहां पहुंचते हैं। श्री सोनवानी ने बताया कि पहले खुद को इससे जोड़ने और विधा में पारंगत होने के बाद युवाओं को इससे जोड़ने का प्रयास किया। अभी तक 5 हजार से ज्यादा लोगों को योगाभ्यास की विधा सिखाने का दायित्व निभाया। साथ ही प्रदेश में 105 लोगों को योग मार्गदर्शक मंडल से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई। कई योग शिक्षक के रूप में प्राइवेट स्कूलों में सेवा भी दे रहे हैं। इसके अलावा भनपुरी स्कूल में प्रतिदिन 30 से 40 लोगों को अभ्यास कराने जाते हैं।
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले को फ्री कोचिंग
पचपेड़ी नाका स्थित गुरुमुख सिंह नगर के आसपास की बस्ती के बच्चों को विगत 20 साल से शीला चक्रवर्ती फ्री कोचिंग देती हैं। हर साल सरकारी स्कूलों में पहली से 5वीं में पढ़ने वाले बच्चों को अपने घर में ही पढ़ना-लिखना सिखाती हैं। जिनके पास किताब-कॉपी, पेन और पेंसिल नहीं होते, उन्हें भी जरूरी सामग्री उपलब्ध कराती हैं। उन्होंने बताया कि गरीबी को सिर्फ शिक्षा से दूर किया जा सकता है। बच्चे शिक्षित रहेंगे तो वह अच्छा काम करके घर-परिवार चला सकते हैं। अभी तक 60 से ज्यादा शाला त्यागी बच्चों का दोबारा दाखिला कराने का दायित्व निभाया। इसके लिए उनके माता-पिता को समझाते हुए पढ़ाई के लिए अध्ययन सामग्री भी उपलब्ध कराती हैं। प्रतिदिन दो पाली में 20 से ज्यादा बच्चों को निशुल्क कोचिंग देने के साथ - होमवर्क भी कराती हैं।
ड्राइंग-पेंटिंग के साथ वेस्ट से बना रहे बेस्ट
शहर के नरेश वाढेर गुरु नहीं हैं, लेकिन कला के लिए वे जीते हैं। भावी पीढ़ी ड्राइंग-पेटिंग की विधा से जुड़ने के साथ इससे आय भी अर्जित करे, इस लायक अभी तक 200 से ज्यादा युवाओं को बनाने में सफल रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब युवाओं को वेस्ट से बेस्ट बनाने और इससे पैसे कमाने का हुनर सिखा रहे हैं। बादाम के छिलके, टीशु पेपर, रद्दी पेपर जैसी कई अनुपयोगी चीजों से दोबारा नई चीजों को बनाने की कला सीखने में युवा इंट्रेस्ट लेते हैं। कई युवा ऐसे हैं, जो इस काम को करते हुए अपनी पढ़ाई का खर्च भी निकाल रहे हैं। कई युवा ग्रुप बनाकर इस काम को कॉलोनियों में लोगों से आर्डर लेकर करते हुए आत्मनिर्भर भी बन रहे हैं।
