भू-माफ़ियाओं का खेल उजागर: मुआवजा प्राप्त ज़मीनों की अवैध खरीदी-बिक्री और निर्माण जारी

ज़मीनों पर अवैध निर्माण
गोपी कश्यप- नगरी (धमतरी)। छत्तीसगढ़ के नगरी क्षेत्र में शासकीय विभागों की गंभीर लापरवाही ने भू-माफ़ियाओं को अवैध कारोबार का मौका दे दिया है। वर्ष 1991-92 में सिंचाई विभाग ने नहर-नाली निर्माण के लिए सैकड़ों किसानों की भूमि अधिग्रहित की थी और किसानों को उसका उचित मुआवजा भी प्रदान कर दिया गया था। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से आज, 33 साल बाद भी, इन भूमि का नामांतरण राजस्व अभिलेखों में शासन के नाम दर्ज नहीं हुआ है।
यही बड़ी चूक आज भू-माफ़ियाओं के लिए बड़ा पैसा कमाने का अवसर बन गई है। कई किसान और उनके वंशज यह जानते हुए भी कि, उनकी ज़मीन का अधिग्रहण हो चुका है, उन जमीनों को बिक्री करके वैधानिक रजिस्ट्री भी कर चुके हैं और करने की तैयारी में हैं। भू-माफ़ियाओं की मिलीभगत से इन जमीनों की खुलेआम बिक्री हो रही है और भोले-भाले खरीदार लाखों-करोड़ों रुपये लगाकर इन जमीनों पर मकान, दुकान और व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स खड़ा कर रहे हैं।
तो ऐसे हुआ खेल शुरू
सूत्रों और आरटीआई से प्राप्त दस्तावेज़ बताते हैं कि, किसानों को भूमि अधिग्रहण का मुआवजा वर्षों पहले ही दे दिया गया था। इसके बावजूद सिंचाई विभाग और राजस्व विभाग की लापरवाही के चलते भूमि का नामांतरण शासन के नाम नहीं हो पाया। रिकार्ड में आज भी इन जमीनों पर किसानों के नाम दर्ज हैं। इसी स्थिति का फायदा उठाकर किसान और भू-माफ़िया खरीदी-बिक्री की रजिस्ट्री कर रहे हैं। जमीनों की गलत तरीके से खरीदी-बिक्री का सिलसिला लगातार जारी है।

अवैध निर्माण का अड्डा बन रहीं अधिग्रहित जमीनें
जाँच में यह भी सामने आया है कि, इन अधिग्रहित जमीनों पर कई भवन और बहुमंजिला व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स पहले ही खड़े हो चुके हैं। वहीं कई जगहों पर निर्माण कार्य तेज़ी से जारी है। यह सब कुछ स्थानीय स्तर पर जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत या लापरवाही के बिना संभव ही नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि, यह न केवल शासन को करोड़ों रुपये का आर्थिक नुकसान पहुँचा रहा है, बल्कि भविष्य में बड़े पैमाने पर कानूनी विवाद खड़े करेगा।
भोले खरीददारों के लिए खतरे की घंटी
जो लोग मेहनत की कमाई से इन जमीनों को खरीद चुके हैं, वे भविष्य में भारी संकट में पड़ सकते हैं। चूँकि भूमि पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी है, इसलिए इन पर किया गया निर्माण किसी भी समय अवैध घोषित कर गिराया जा सकता है। खरीदी-बिक्री अवैध घोषित होगी। भवन तोड़फोड़ की कार्यवाही संभव है। खरीदारों के पैसे और सपने दोनों डूब सकते हैं।
शासन को करोड़ों का नुकसान
अधिग्रहित भूमि का नामांतरण न होने की वजह से शासन को न सिर्फ राजस्व की हानि हो रही है, बल्कि सरकारी भूमि का दुरुपयोग कर अवैध मुनाफाखोरी का खेल भी चल रहा है। यह सीधे तौर पर शासन को करोड़ों रुपये का चूना लगाने जैसा है।
नागरिकों और जनप्रतिनिधियों की माँग
स्थानीय नागरिकों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि, अगर शासन ने तुरंत कदम नहीं उठाए तो आने वाले समय में यह विवाद और गहराएगा। उन्होंने शासन, प्रशाशन से मांग की है कि, अधिग्रहित भूमि का नामांतरण तत्काल शासन के नाम पर किया जाए। पहले से हुई खरीदी-बिक्री को अवैध घोषित कर कानूनी कार्रवाई की जाए। अवैध रूप से बने भवनों और व्यवसायिक परिसरों को तोड़ने की प्रक्रिया शुरू की जाए। इस गंभीर लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई की जाए।
भविष्य में बड़ी मुसीबत के संकेत
अगर इस मुद्दे पर शासन ने तत्काल ठोस कदम नहीं उठाए तो भविष्य में बड़ी संख्या में भोले-भाले नागरिक न्यायालयों और सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर होंगे। साथ ही शासन को भी अपनी ही लापरवाही का खामियाजा लंबे समय तक भुगतना पड़ेगा।
शासन की जिम्मेदारी तत्काल सख्त कदम उठाया जाए
नगरी क्षेत्र में चल रहे इस मामले से पुर्णतः स्प्ष्ट हो गया है कि, विभागीय लापरवाही और भू-माफ़ियाओं की मिलीभगत ने शासन और जनता दोनों को नुकसान पहुंचा दिया है और अगर इस मामले में ठोस उचित त्वरित कार्यवाही नहीं की गई, तो भविष्य में शासन और जनता दोनों को बड़ा नुकसान पहुँचाने का रास्ता खोल दिया है। अब शासन की जिम्मेदारी है कि, वह तत्काल सख्त कदम उठाकर इस अवैध कारोबार को पूरी तरह रोकने की पहल करे।
