वित्तमंत्री ओपी से सार्थक संवाद: जीएसटी दर में कमी से जनता की जेब में पैसा जाएगा, खरीदी क्षमता बढ़ेगी

वित्तमंत्री ओपी से सार्थक संवाद : जीएसटी दर में कमी से जनता की जेब में पैसा जाएगा,  खरीदी क्षमता बढ़ेगी
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वित्तमंत्री ओपी चौधरी से आईएनएच-हरिभूमि के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी की सार्थक चर्चा।

Exclusive : वित्तमंत्री ओपी चौधरी से हरिभूमि और आईएनएच के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने 'सार्थक संवाद' में ख़ास बातचीत।

रायपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को 2047 में विकसित भारत बनाना चाहते हैं। जीएसटी में जो भी बदलाव किए गए हैं, वो विकासशील अर्थव्यवस्था से विकसित अर्थव्यवस्था की दिशा में ले जाने वाला बड़ा कदम है। इसमें संदेह नहीं है कि बड़े फैसले लेने की क्षमता नरेंद्र मोदी के अलावा किसी और में नहीं है। यह बातें छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने सार्थक संवाद में हरिभूमि और आईएनएच के प्रधान संपादक डा. हिमांशु द्विवेदी से की। पेश हैं संवाद के प्रमुख अंश।

लोग हैरत में तो हैं ही, आप खुद कितने थे जब आपको पता चला कि जीएसटी में इतने बड़े बदलाव किए जाने वाले हैं?
प्रधानमंत्री बिग रिफार्म के लिए जाने जाते हैं। आज हम जीएसटी की चर्चा कर रहे हैं, कुछ समय पहले उन्होंने इसी तरह से आयकर के मामले में किया था।

अभी तो चुनाव भी नहीं है, क्या सरकार के पास पैसा ज्यादा हो गया है कि रखने की जगह भी नहीं मिल रही है?

प्रधानमंत्री मोदी के एजेंडे चुनावी और राजनीतिक एजेंडे से बड़े होते हैं। वे राष्ट्र हित में बड़े-बड़े फैसले लेने की ताकत रखते हैं। कोई भी फैसला होता है तो उसमें टैक्स का बैस बढ़ता है। यानी टैक्स देने वाले बढ़ते हैं। जैसे-जैसे टैक्स बढ़ता है तो टैक्स को कम भी करते हैं। टैक्स का पैसा या तो सरकार की जेब में जाता है या फिर जनता की जेब में जाता है। सरकार अब अपने जेब में न लेकर जीएसटी में बदलाव करके जनता की जेब में पैसा डाल रही है। जनता की जेब में पैसा जाने से उनकी खरीदी करने की क्षमता बढ़ती है।

पहले चार स्लैब थे, अब दो किए गए, इसके पीछे की वजह क्या है?
एक चरण वो था एक चरण ये है। उस समय देश की स्थिति अलग थी, इस समय अलग है। जुलाई 2017 को देश में जीएसटी लागू की गई। उसके पहले देश में 17 प्रकार के टैक्स लगते थे। इससे व्यापारी भी परेशान और प्रताड़ित होते थे। कई तरह के भ्रष्टाचार का भी सामना करना पड़ता था। जीएसटी के लिए राहुल गांधी कहते हैं गब्बर सिंह टैक्स प्रणाली। गब्बर सिंह टैक्स प्रणाली तो वो थी जिसे कांग्रेस ने कभी सुधारने की कोशिश नहीं की। पहले टैक्स पर टैक्स लगता था। आटे पर टैक्स लगता था, फिर ब्रेड पर टैक्स लगता था, फिर सैंडविच पर टैक्स लगता था। उसको भी समाप्त करना जरूरी था। जीएसटी में एक देश एक कर प्रणाली लाने का काम किया गया। यह प्रणाली जब आज अच्छी हो गई तो इसको दूसरे रूप में रिफार्म करने का काम किया गया है। आज अगर मोदी जी नहीं होते तो ऐसा फैसला करने का साहस और कोई नहीं कर सकता था। 1947 से 2017 तक के 70 सालों में कुल 66 लाख लोगों को अप्रत्यक्ष टैक्स से जोड़ पाए। 2017 से 2025 तक के आठ साल में हम 85 लाख टैक्स देने वाले जोड़ पाए हैं।

ऐलान के बाद फैसले के लिए बने मंत्रियों के समूह में आप भी थे, बताएं, कितने घबरा कर उस बैठक में गए थे?
कमेटी पहले से बनी हुई है। उस कमेटी में विचार पहले से चल रहा था कि किस वस्तु पर दर कम करनी चाहिए। यह बात सही है कि टैक्स का रेट कम किया गया है तो राज्यों में कुछ समय के लिए टैक्स में जरूर कमी आती दिखेगी, लेकिन यह बात भी है कि वह पैसा आम आदमी की जेब में जाएगा। ऐसे में आम आदमी की खरीदी की क्षमता बढ़ जाएगी। इससे टैक्स में भी इजाफा होगा। जहां तक विपक्ष का सवाल है तो उसका स्टैंडर्ड डबल स्टैंड वाला होता है। बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने सर्वसम्मति बनाने का काम किया।

केंद्र सरकार को अपनी जेब से कितनी कटौती करनी पड़ी, सेस भी गायब हो गया, इसका कितना फर्क पड़ेगा?
केंद्र सरकार को इससे नुकसान भी हो रहा है, लेकिन इसके बाद भी ऐसे-ऐसे फैसले लिए जा रहे हैं। सेस की जहां तक बात है कोयले पर चार प्रतिशत सेस लगता है। ये सेस विशेष मकसद से लगाया गया था। कोरोना के समय केंद्र और राज्यों का राजस्व गिर गया था। राज्यों के नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने ऋण लिया था। उसको चुकाने के काम में सेस आता है। अक्टूबर 2025 तक यह ऋण पूरा हो जाएगा, इसलिए अब सेस की जरूरत नहीं रहेगी। कोयले पर जो सेस लिया जाता है, वह भारत सरकार के खाते में जाता है, अब जीएसटी में आने के कारण इसका 50 फीसदी राज्यों को मिलेगा। एक अनुमान के मुताबिक छत्तीसगढ़ सरकार को भी इससे दो से तीन हजार करोड हर साल मिलेंगे।

बैठक में कौन से ऐसे विषय थे जो करना तो चाहते थे, लेकिन सहमति नहीं बन पाई?
ऐसा कोई भी विषय इस बार जीएसटी काउंसिल में नहीं रहा जिस पर सहमति नहीं बन सकी हो और उसको अगली बार के लिए छोड़ दिया गया हो।

टैक्स अधिकारियों के टेरर को लेकर कोई बात हुई क्या इससे व्यापारियों को कैसे राहत दिलाए?
कोई भी टैक्स देने वाला कंफर्ट जोन में होना चाहिए, यह तय करना सबकी जिम्मेदारी है। मैं अपने अधिकारियों को कहता हूं कि अगर किसी के टैक्स देने में दस-बीस प्रतिशत की कमी भी है तो ऐसे केस को देखो ही मत। लेकिन जो लोग सैकड़ों फर्जी फर्म बनाकर काम करते हैं, सरकार के करोड़ों रुपए संगठित अपराध करके लूटने का काम करते हैं, उनको किसी भी हाल में छोड़ना नहीं है।

विकासशील अर्थव्यवस्था से विकसित अर्थव्यवस्था की और के लिए कोई लक्ष्य तय है क्या?
प्रधानमंत्री ने इसके लिए जो लक्ष्य तय किया उससे तय है कि भारत 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। राज्य भी इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। हम भी प्रयास कर रहे हैं कि 2047 तक छत्तीसगढ़ कैसे विकसित राज्य बनेगा।

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