कुरुद में है छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर: 25 वर्ष पूरे होने पर माता का पारंपरिक परिधान और गहनों से किया गया श्रृंगार

छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर का मुख्य द्वार
यशवंत गंजीर- कुरुद। छत्तीसगढ़ के 25 साल पूरे होने पर प्रदेशवासी रजत जयंती महोत्सव मना रहे हैं। इस उत्सव की सबसे बड़ी पहचान यह है कि कुरूद ने राज्य बनने से पहले जिस सपने को जिया था, आज वही सपना वास्तविक इतिहास बनकर चमक रहा है। यहां प्रदेश का पहला छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर स्थापित है जो राज्य की मातृशक्ति और सांस्कृतिक अस्मिता का अनोखा प्रतीक है।
कुरूद की पावन धरती प्रदेश की पहली भूमि है, जहाँ 5 फरवरी 1995 से 20 मार्च 1996 के मध्य छत्तीसगढ़ महतारी का प्राण-प्रतिष्ठा कर मातृभूमि को पहली सार्वजनिक प्रतिमा के रूप में सम्मान दिया गया। उस दौर में राज्य आंदोलन अपने चरम पर था और आज वही स्मृति छत्तीसगढ़ी अस्मिता का गर्वपूर्ण प्रतीक है।मंदिर के पुजारी पं. महेश शर्मा व प्रबंधक सेवक राम के मुताबिक मूर्ति की स्थापना के बाद सेनियमित रूप से आरती और पूजन हो रहा है। यहां चैत्र और शारदीय नवरात्रि में भव्य मेला लगता है, जहां हजारोंं श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
धान की बाली और हसिया से पारंपरिक शृंगार
मंदिर में विराजित छत्तीसगढ़ महतारी का शृंगार छत्तीसगढ़ के पारंपरिक परिधान व गहनों से किया गया है। हाथ में धान की बालियां सजी हैं। फसल पकने के साथ ही माता को धान की बालियों का शृंगार किया जाता है। साथ ही सिर पर चांदी का मुकुट, छत्र, करधन, पायल, चूड़ी और हाथ में हसिया धारण की हुई है, जो मातृशक्ति और कृषि प्रधान जीवनशैली का प्रतीक है।
पूर्व विधायक होरा ने कराया मन्दिर का निर्माण
दरअसल, 1995 में पूर्व विधायक गुरु मुख सिंह होरा ने कुरूद में छत्तीसगढ़ महतारी मन्दिर निर्माण का संकल्प लेकर 1996 में मंदिर का निर्माण कराया और छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा करवाया, तब से लेकर आज तक कुरूद के इस मंदिर में नवरात्रि में भक्तों का ताता लगता है।
हूबहू प्रतिमा अब अब अन्य जगहों पर स्थापित
मध्य प्रदेश शासन काल में बना ये मंदिर छत्तीसगढ़ प्रदेश बनने के बाद प्रसिद्ध हुआ, जिसकी हूब-हु प्रतिमा पूर्ववर्ती सरकार ने हर जिला ओर अन्य जगहों पर स्थान दिलाया। आज छत्तीसगढ़ प्रदेश में छत्तीसगढ़ महतारी के स्वरूप को प्रदेश के लोग जान पहचान रहे हैं वो इसी मंदिर की प्रतिमा की परिकल्पना है।
