बुधवार को मनाई जाएगी कालभैरव जयंती: 40 साल बाद ब्रम्ह योग, विशेष अनुष्ठान प्रारंभ

बुधवार को मनाई जाएगी कालभैरव जयंती :  40 साल बाद ब्रम्ह योग, विशेष अनुष्ठान प्रारंभ
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ब्रह्म योग में काल भैरव जयंती बुधवार को मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 40 वर्षों पश्चात काल भैरव जयंती के दिन ब्रह्म योग का संयोग निर्मित हो रहा है।

रायपुर। ब्रह्म योग में काल भैरव जयंती बुधवार को मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 40 वर्षों पश्चात काल भैरव जयंती के दिन ब्रह्म योग का संयोग निर्मित हो रहा है। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। अष्टमी तिथि की शुरुआत 11 नवंबर को रात 11 बजकर 8 मिनट से होगी। 12 नवंबर को रात 10 बजकर 58 मिनट पर अष्टमी तिथि समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार बुधवार को काल भैरव जयंती मनाई जाएगी।

ज्योतिषीय गणना के मुताबिक, बुधवार को आश्लेषा और मघा नक्षत्र के साथ शुक्ल और ब्रह्म योग भी रहेंगे। ग्रह-नक्षत्रों के इस विशेष योग में पूजन फलदायी होता है। मुहूर्त के आधार पर पूजन प्रातःकाल से ही आरंभ किया जा सकता है। प्रथम शुभ मुहूर्त प्रातः 6:41 बजे से 9:23 बजे तक रहेगा। द्वितीय मुहूर्त सुबह 10:44 से दोपहर 12:05 बजे तक का है। इन मुहूर्त में पूजन शुभ होगा। हालांकि दिन के अन्य समय भी पूजा की जा सकती है।

17 नवंबर को होगी पूर्णाहुति
रतनपुर महामाया मंदिर के समीप स्थित श्री सिद्धतंत्र पीठ भैरव मंदिर में विशेष अनुष्ठान प्रारंभ हो गए हैं। प्रदेश के विभिन्न जिलों से भक्त यहां अनुष्ठान का हिस्सा बनने पहुंचने लगे हैं। 11 नवंबर को कलश यात्रा के साथ पंचांग पूजन होगा। 12 नवंबर को सर्वदेव आवाहन पूजन क साथ अग्नि प्रज्ज्वलन किया जाएगा। 17 नवंबर को संध्या यज्ञ की पूर्णाहुति होगी। 19 नवंबर को बटुक भोज आयोजित किया जाएगा। छत्तीसगढ़ में काल भैरव जयंती के मौके पर सर्वाधिक लंबा अनुष्ठान इसी मंदिर में चलता है।

राहु-केतु व शनि के दोष शांत
श्री सिद्धतंत्र पीठ भैरव मंदिर, रतनपुर के महंत जागेश्वर अवस्थी ने कहा, इस दिन की गई पूजा से राहु, केतु और शनि जैसे ग्रहों के दोष शांत होते हैं। शत्रु बाधा, भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है। आत्मविश्वास और बल की प्राप्ति के लिए भी काल भैरव की पूजा की जाएगी। यदि कालभैरव मंदिर नहीं जा सकते हैं तो घर पर ही काल भैरव का ध्यान करते हुए भैरव चालीसा या काल भैरव अष्टक का पाठ करें। काले कुत्ते को भोजन कराएं। इमरती, उड़द दाल की खिचड़ी या दही-बड़ा का भोग लगाएं।

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