एशिया के दूसरे सबसे बड़े चर्च में क्रिसमस की धूम: महागिरजाघर कुनकुरी में जुटे हजारों लोग, विशेष प्रार्थना सभा के साथ निभाई गई चुमावन की परंपरा

Christmas celebration
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क्रिसमस पर जगमगाता कुनकुरी महागिरजाघर

एशिया के दूसरे सबसे बड़े महागिरजाघर में क्रिसमस पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। मध्यरात्रि मिस्सा पूजा, विशेष प्रार्थना और चुमावन के साथ हजारों श्रद्धालु क्रिसमस मना रहे हैं।

अजय सुर्यवंशी - जशपुर। एशिया के दूसरे सबसे बड़े चर्च कुनकुरी महागिरजाघर में इस बार क्रिसमस पर्व की रौनक चरम पर है। क्रिसमस ईव से ही हजारों श्रद्धालु विशेष प्रार्थना में शामिल होने के लिए यहां जुटने लगे। बुधवार रात 10.30 बजे से मिस्सा पूजा की शुरुआत हुई और ठीक मध्यरात्रि 12 बजे प्रभु यीशु के जन्मोत्सव का अनुष्ठान संपन्न हुआ।

विशेष प्रार्थना और चुमावन का आयोजन
मध्यरात्रि जन्मोत्सव के बाद बालक यीशु को चरनी से निकालकर चुमावन की परंपरा निभाई गई। इसके बाद श्रद्धालुओं ने एक-दूसरे को क्रिसमस की शुभकामनाएँ दीं। पूरे क्षेत्र में उल्लास और उमंग का माहौल बना हुआ है। कुनकुरी में इस वर्ष 10 से 15 हजार लोगों के जुटने की संभावना जताई गई, वहीं अनुष्ठान की अगुवाई बिशप स्वामी एमानुएल केरकेट्टा ने की।

एक सप्ताह पहले से दिखने लगी थी क्रिसमस की चमक
कुनकुरी और आसपास के इलाकों में क्रिसमस की तैयारी एक सप्ताह पहले से दिखाई देने लगी थी। 1962 में स्थापित रोज़री का महारानी चर्च और अन्य संस्थानों में भी विशेष प्रार्थनाएँ आयोजित की जा रही हैं। चरनी, फूलों और रंग-बिरंगी लाइटों से पूरे परिसर को सजाया गया है।


कुनकुरी महागिरजाघर: आस्था और स्थापत्य का अद्भुत संगम
कुनकुरी का महागिरजाघर न सिर्फ जशपुर, बल्कि देश-विदेश के ईसाई धर्मावलंबियों के लिए आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है। इसकी परिकल्पना बिशप स्तानिसलाश ने बेल्जियम के प्रसिद्ध वास्तुकार कार्डिनल जेएम कार्सि एसजे की मदद से की थी। इस विशाल भवन का निर्माण लगभग 17 वर्षों में पूरा हुआ। महागिरजाघर की नींव 1962 में रखी गई थी, जब बिशप स्टानिसलास लकड़ा कुनकुरी धर्मप्रांत का नेतृत्व कर रहे थे।

एक बीम पर खड़ा विशाल भवन, सात छत और सात दरवाजों का महत्व
चर्च की नींव को विशेष डिजाइन के साथ तैयार किया गया था, जिसमें ही दो वर्ष का समय लग गया। इसके बाद 13 वर्षों में मुख्य भवन ने आकार लिया। चर्च में सात छत और सात दरवाजे हैं, जो ईसाई धर्म के सात संस्कारों का प्रतीक माने जाते हैं।


आदिवासी सांस्कृतिक नृत्य के साथ पर्व की धूम
क्रिसमस के अवसर पर दूरस्थ ग्रामीण इलाकों से आए आदिवासी समुदाय के लोग पारंपरिक वेशभूषा में मांदर की थाप पर नृत्य करते नजर आए। महागिरजाघर में लगभग 10,000 से अधिक लोगों की बैठने की क्षमता है, लेकिन क्रिसमस के दौरान यहां 4 से 5 लाख श्रद्धालु पहुँचने का अनुमान रहता है।



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