बस्तरिया संघर्ष और प्रेम की कहानी, 'माटी': 1000 स्थानीय कलाकारों की है भागीदारी, वास्तविक घटनाओं से प्रेरित संवेदनशील फिल्म

फिल्म को किया गया प्रदर्शित
अनिल सामंत- जगदलपुर। बस्तर की माटी, उसकी खुशबू, दर्द, संघर्ष और उम्मीदों को सिल्वर स्क्रीन पर उतारने जा रही है चन्द्रिका फिल्म्स प्रोडक्शन की फिल्म ‘माटी’। यह केवल एक प्रेमकथा नहीं, बल्कि उस धरती की पुकार है जिसने दशकों तक हिंसा, संघर्ष और मानवीय करुणा के बीच खुद को जीवित रखा। फिल्म के निर्माता संपत झा ने बताया कि ‘माटी’ में नायक-नायिका नहीं। बल्कि इंसान और उनकी संवेदनाएं हैं। यह कहानी है बस्तर की उन आत्माओं की, जिन्होंने नक्सलवाद की आग में सब कुछ झेलते हुए भी उम्मीद की लौ जलाई रखी।
निर्देशक अविनाश प्रसाद ने कहा कि जब कैमरा बस्तर की घाटियों की ओर मोड़ा,तो वहाँ सिर्फ दृश्य नहीं बल्कि आत्मा की गहराई तक उतरने वाली अनुभूति मिली। ‘माटी’ उन्हीं अहसासों की कहानी है। फिल्म का स्क्रिप्ट वरिष्ठ पत्रकार हेमंत कश्यप ने लिखा है। पूरी फिल्म की शूटिंग बस्तर के प्राकृतिक परिवेश में हुई है। इसमें 1000 स्थानीय कलाकार शामिल हैं। जिनमें शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता और आत्मसमर्पित नक्सली भी हैं। कुछ कलाकार जैसे निर्मल सिंह राजपूत और राजेश महंती पहले भी हल्बी फिल्मों में काम कर चुके हैं।

बस्तर की आत्मा को गया है पिरोया
फिल्म के हीरो महेंद्र ठाकुर, महिला नक्सली कमांडर के रूप में भूमिका महानंदी और हीरोइन की माँ की भूमिका में डॉ.पूर्णिमा सरोज ने भी अपने अनुभव साझा किए। 'माटी' में लोकगीतों,बस्तर की प्राकृतिक सुंदरता और मिट्टी की आत्मा को बखूबी पिरोया गया है। फिल्म 14 नवंबर 2025 को रिलीज होगी और सफल रही तो इसे ओड़िया व तेलुगु भाषाओं में डब कर राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करने की योजना है। प्रेसवार्ता में फ़िल्म निर्माता एवं निदेशक के द्वारा पत्रवार्ता के दौरान फ़िल्म का टेलर बड़े स्क्रीन पर दिखाया गया।
शूटिंग के दौरान हमें कई चुनौतियों का करना पड़ा सामना- संपत झा
यह फिल्म बनाना आसान नहीं था। शूटिंग के दौरान हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि ट्रेलर देखने के बाद एनआईए तक से पूछताछ का सामना करना पड़ा, तब जाकर स्पष्ट हुआ कि यह सिर्फ एक फिल्म है। माटी’ के हर दृश्य में बस्तर की सच्चाई,संघर्ष और प्रेम की खुशबू है।
संपत झा ने समाजसेवा से सिनेमा तक का किया सफर
बस्तर के सुप्रसिद्ध समाजसेवी संपत झा दशकों से नक्सल उन्मूलन, इंद्रावती नदी बचाओ अभियान, रेल सेवा विस्तार और ग्रीन बस्तर क्लीन बस्तर जैसे अभियानों से जुड़े रहे हैं। उन्होंने हजारों वृक्ष लगवाए, कई सामाजिक आंदोलनों का नेतृत्व किया और अब उसी जमीनी सच्चाई को 'माटी' के माध्यम से देश के सामने ला रहे हैं। उनका मानना है कि, मनोरंजन ही जनजागरण का सबसे सशक्त माध्यम है। इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पित नक्सलियों को भी अभिनय का अवसर देकर फिल्म को वास्तविकता के और करीब पहुंचाया।
