बस्तर के लिए बेमिसाल रहा यह साल: हिड़मा के साथ नक्सल हलचल लगभग खत्म, बारूदी धमाकों की जगह ले रहे हस्तशिल्प, पर्यटन और विकास

बस्तर के लिए बेमिसाल रहा यह साल : हिड़मा के साथ नक्सल हलचल लगभग खत्म, बारूदी धमाकों की जगह ले रहे हस्तशिल्प, पर्यटन और विकास
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बस्तर को विश्व पर्यटन मानचित्र से जोड़ रहा है चित्रकोट वाटर फाल।

साल 2025 में बस्तर ने दशकों से चले आ रहे नक्सलवाद से लगभग मुक्ति पा ली है। जहां पहले बंदूकों की आवाज गूंजती थी, अब शिक्षा, विकास और हस्तशिल्प इलाके की पहचान बन रही है।

जीवानंद हलधर- जगदलपुर। वर्ष 2025 विदा ले रहा है और 31 दिसंबर साल का अंतिम दिन है। यह साल बस्तर के लिए सिर्फ कैलेंडर का एक पन्ना नहीं था, बल्कि संघर्ष, उम्मीद और बदलाव की एक जीवंत कहानी रहा। साल के आख़िरी दिनों में जब साल के आख़िरी सूरज की किरणें इंद्रावती के पानी पर चमकती हैं, तो बस्तर अपने बीते पलों को शांत भाव से याद करता है। बस्तर ने सालों से चले आ रहे नक्सल दंश से भी मुक्ति पाई है और कई बड़े- बड़े नक्सली मारे गए हैं तो बड़ी संख्या में नक्सलियों ने सरेंडर किया है।

19 नवंबर को सुकमा जिले की सीमा से लगे आंध्रपदेश के अल्लूरी सीतारामराजू ज़िले के मारेडुमिली क्षेत्र में सुरक्षाबलों ने हिड़मा को उसकी पत्नी के साथ मार गिराया है। इसी के साथ बस्तर में दशकों से दहशतगर्दी फ़ैलाने वाले चेहरे का अंत हो गया है। बस्तर आईजी ने कहा था कि, हिडमा ने विगत 20 वर्षों से बस्तर में आतंक मचा कर रखा था जिसका अब अंत हो गया है।

65 लाख रुपए के इनामी 37 नक्सलियों ने छोड़ा हिंसा का रास्ता
शासन की महत्वाकांक्षी पहल ‘पूना मारगेम - पुनर्वास पुनर्जीवन’ से प्रभावित होकर 37 नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में आत्मसमर्पण किया है। इनमें से 65 लाख रुपए के कुल 27 ईनामी भी शामिल है जिन्होंने हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया। डीआरजी कार्यालय दंतेवाड़ा में आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में सभी माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया।

बस्तर में बह रही विकास की बयार
माड़वी हिड़मा और बसवराजू जैसे नक्सलियों के मारे जाने से बस्तर में विकास की बयार पहुंच रही ही। जहां सड़कें पहले से बेहतर हुईं, मोबाइल और इंटरनेट की पहुंच कई अंदरूनी गांवों तक पहुँची, लेकिन इसके साथ ही मांदरी की थाप, गोंडी गीत और मुरिया नृत्य ने यह याद दिलाया कि बस्तर की आत्मा उसकी संस्कृति में बसती है।

बस्तर अपने हुनर और आत्मविश्वास के लिए जा रहा पहचाना
वर्ष 2025 में बस्तर के युवाओं में एक नई जागरूकता दिखी। शिक्षा, खेल और स्थानीय उद्यमों की ओर बढ़ते कदम यह संकेत देते हैं कि बस्तर अब सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि अपने हुनर और आत्मविश्वास के लिए भी पहचाना जा रहा है। आदिवासी हस्तशिल्प, लौह कला और जैविक खेती ने नए बाज़ारों में अपनी जगह बनाई।


भविष्य में बस्तर के पहचान को मिलेगी मजबूती
हालाँकि, चुनौतियाँ अब भी कम नहीं हैं। जंगल, जल और ज़मीन की सुरक्षा, रोजगार के अवसर और स्थायी विकास जैसे सवाल 2025 में भी बस्तर के साथ रहे। लेकिन इस साल ने यह भी दिखाया कि संवाद, शिक्षा और स्थानीय भागीदारी से इन समस्याओं का समाधान संभव है। जब 2025 को अलविदा कहते हैं, तो बस्तर उम्मीद के साथ आगे देखता है। यह उम्मीद कि आने वाले सालों में विकास मानवीय होगा, प्रकृति के साथ होगा और बस्तर की पहचान को और मजबूत करेगा।

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