छठ महापर्व का दूसरा दिन: दूसरे दिन व्रतियों ने किया खरना पूजन, सायंकाल हुआ छठी मैया का आगमन

खरने का महाप्रसाद तैयार करतीं व्रती महिलाएं
अनिल सामंत- जगदलपुर। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि पर आज छठ महापर्व का दूसरा दिन ‘खरना पूजन’ संपन्न होगा। नहाय-खाय के बाद रविवार को व्रती महिलाएँ दिनभर उपवास रखकर सायंकाल भगवान भास्कर और षष्ठी देवी की आराधना करेंगी। इसके साथ ही 36 घंटे के निर्जला व्रत का शुभारंभ होगा। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में शुद्धता, संयम और आस्था की मिसाल देखने को मिलती है।
छठ पर्व सूर्योपासना और मातृत्व के प्रतीक षष्ठी देवी की पूजा का महान पर्व है। लोकमान्यता है कि इस व्रत को करने से परिवार में सुख-शांति, संतान की दीर्घायु और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। शनिवार को नहाय-खाय से आरंभ हुए इस पर्व में आज व्रती स्नान-ध्यान के बाद पूजा की विधि प्रारंभ करेंगे।
निराहार रहतीं हैं व्रती महिलाएं
खरना के दिन व्रती पूरे दिन निराहार रहते हैं। सायंकाल स्नान-ध्यान कर मिट्टी के नए चूल्हे पर गुड़ की खीर और घी से बनी रोटी का भोग तैयार किया जाता है। इस प्रसाद में चीनी या नमक का प्रयोग नहीं किया जाता। पूजा के उपरांत यही भोग ग्रहण कर व्रती अगले 36 घंटे के निर्जला उपवास की शुरुआत करते हैं। यह व्रत तन-मन की पवित्रता और आत्मसंयम का सर्वोच्च उदाहरण माना जाता है।
सूर्य और षष्ठी देवी की विशेष पूजा
छठ पर्व में भगवान भास्कर (सूर्य) और उनकी बहन षष्ठी देवी की आराधना की जाती है। षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री और संतानों की रक्षिका माना गया है। मान्यता है कि उनकी पूजा से संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और जीवन में मंगल की प्राप्ति होती है।
आज हुआ छठी माई का आगमन
कार्तिक शुक्ल पंचमी तिथि को छठी माता के आगमन का दिन माना जाता है। आज सायंकाल सूर्यास्त के पश्चात व्रतीजन विधिवत पूजन कर छठी माई का आह्वान करेंगे। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन देवी षष्ठी संतान सुख, पालन-पोषण और सुरक्षा का आशीर्वाद देती हैं। उन्हें वनस्पतियों और प्रजनन की देवी भी कहा गया है। छठ पर्व में भगवान भास्कर के साथ षष्ठी देवी की विशेष पूजा इसी कारण की जाती है।
कल अर्घ्य अर्पण की तैयारी
कल सोमवार को छठ महापर्व का तीसरा दिन रहेगा। व्रतीजन सायंकाल नदी, तालाब और जलाशयों के तट पर जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को प्रथम अर्घ्य अर्पित करेंगे। इसी के साथ भक्तों का जनसैलाब घाटों पर उमड़ेगा। पारंपरिक गीतों, लोक भजन और ढोल-मांदर की गूंज से पूरा वातावरण श्रद्धा और भक्ति में डूब जाएगा।
