चैतन्य संकीर्तन मंडल के 48 वर्ष पूर्ण: देव उठनी एकादशी पर शिवानंद आश्रम में गूंजे भजन, बच्चों को बांटे वस्त्र

48वां स्थापना दिवस मनाता चैतन्य संकीर्तन मंडल
अनिल सामंत - जगदलपुर। भक्ति की भावना और सेवा के संकल्प से ओतप्रोत अवसर पर श्री चैतन्य संकीर्तन मंडल ने अपनी स्थापना के 48 वर्ष पूर्ण होने का उत्सव देव उठनी एकादशी के पावन अवसर पर बड़े ही श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया। नेगीगुड़ा स्थित श्री शिवानंद आश्रम में आयोजित इस भव्य कार्यक्रम में भजन-संकीर्तन की मधुर ध्वनियों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा।
1977 में हुई थी मंडल की स्थापना
संस्था की स्थापना वर्ष 1977 में हुई थी, संस्थापक सदस्यों करसनदास हेमानी, मदनलाल गर्ग, रमेश गांधी, मथुरा प्रसाद ठक्कर, शिवकुमार बाजपेयी, बालकृष्ण शर्मा, लक्ष्मी मंडन, नरसिंह पांडे, सत्यनारायण पाठक, बद्री प्रसाद शर्मा और धीरूभाई राठौर ने मिलकर इस मंडल की नींव रखी थी। मंडल का उद्देश्य केवल भजन-कीर्तन नहीं, बल्कि समाज में भक्ति, सद्भाव और सामाजिक सुधार का प्रसार करना था।
#जगदलपुर में देव उठनी एकादशी के पावन अवसर पर श्री चैतन्य संकीर्तन मंडल ने अपने 48वें स्थापना दिवस का उत्सव मनाया। भक्ति और सेवा से सराबोर हुआ शिवानंद आश्रम.@BastarDistrict #Chhattisgarh pic.twitter.com/uOGrECIytz
— Haribhoomi (@Haribhoomi95271) November 3, 2025
सुंदरकांड पाठ और सेवा भावना से जुड़ा आयोजन
कार्यक्रम के दौरान मंडल के सदस्यों ने सुंदरकांड का विशेष पाठ किया, जिससे पूरा आश्रम भक्ति रस में डूब गया। सेवा कार्य के तहत ग्रामीण क्षेत्रों से आए बच्चों को गर्म वस्त्र वितरित किए गए, और सभी ने सामूहिक प्रसाद ग्रहण कर श्रद्धा भाव से उत्सव का समापन किया।

भक्ति के साथ मानवीयता को स्थायी बनाना हमारा उद्देश्य- अध्यक्ष
संस्था के अध्यक्ष शशिकांत सिंह गौतम ने कहा कि, मंडल आज भी अपने संस्थापक उद्देश्यों के प्रति पूर्ण निष्ठा से कार्य कर रहा है। हमारा उद्देश्य केवल भजन तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में भक्ति, मानवीयता और समरसता के भाव को स्थायी बनाना है।

48 वर्षों की निष्ठा और संस्कृति के प्रति समर्पण
देव उठनी एकादशी के इस पावन दिन मंडल ने अपने 48 वर्षों की यात्रा को भक्ति, सेवा और सामाजिक सुधार के संगम के रूप में मनाया। यह आयोजन सनातन संस्कृति के प्रति मंडल के अटूट समर्पण और समाज में आस्था, करुणा और एकता की भावना को प्रबल करने का प्रतीक बना।
