बस्तर में सिंचाई संसाधन बदहाल: जर्जर एनीकेट ने बढ़ाया किसानों का संकट

बस्तर में सिंचाई संसाधन बदहाल: जर्जर एनीकेट ने बढ़ाया किसानों का संकट
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बस्तर संभाग में सीमित सिंचाई संसाधन पहले से ही कृषि व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। बस्तर में मात्र 8 से 10 प्रतिशत कृषि रकबा ही सिंचित हो पाता है।

अनिल सामंत - जगदलपुर। बस्तर संभाग में सीमित सिंचाई संसाधन पहले से ही कृषि व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। समूचे बस्तर में मात्र 8 से 10 प्रतिशत कृषि रकबा ही सिंचित हो पाता है। ऐसे में एनीकेटों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है, लेकिन जर्जर हो चुके एनीकेटों की मरम्मत और सुधार की ओर शासन-प्रशासन का ध्यान न जाना गंभीर लापरवाही को उजागर करता है। हालात यह हैं कि किसानों को बार-बार चेताने और मांगपत्र देने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, जिससे इस वर्ष भी संकट के संकेत स्पष्ट नजर आने लगे हैं।

श्रमदान से रोका पानी, प्रशासनिक उदासीनता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। रविवार को किसानों और सामाजिक संगठनों को स्वयं आगे आकर इंद्रावती नदी से जुड़े एनीकेटों में श्रमदान करना पड़ा। भोंड एनीकेट, नदीसागर और रोतमा क्षेत्र में बोरी बंधन कर पानी रोकने का प्रयास किया गया। सीमित सरकारी हस्तक्षेप में केवल दो फाटक लगाए गए, लेकिन उससे भी पानी नहीं रुका। इसके बाद किसानों ने आपसी चंदा एकत्र कर सीमेंट, गिट्टी और छड़ की व्यवस्था की और एनीकेट के जर्जर हिस्सों की मरम्मत की। लगभग पांच सौ बोरी रेत भरकर पानी रोकने का प्रयास किया गया। रोतमा क्षेत्र में तीन फाटक गायब होने और छापर-भानपुरी एनीकेट में भी बोरी बंधन की आवश्यकता ने व्यवस्था की पोल खोल दी है। जल संसाधन विभाग के जिम्मेदार भी कुछ कहने से बच रहे है। विभाग के अधीक्षण अभियंता करन भंडारी से विभाग का पक्ष लेने का प्रयास किया गया, लेकिन वे इस सबंध में ईई से चर्चा करने की बात कहकर पल्ला झाड़ दिया।

एनीकेट का फाटक नहीं लगा तो होगा उग्र आंदोलन
पूरे घटनाक्रम पर इंद्रावती नदी बचाओ संघर्ष समिति के जिलाध्यक्ष किसान संगठन लखेश्वर कश्यप ने कहा कि, प्रशासनिक लापरवाही के चलते किसानों को मजबूरन श्रमदान करना पड़ा है। यदि चोरी हुए एनीकेट फाटक नहीं लगाए गए तो व्यापक आंदोलन होगा।

किसानों का टूट रहा भरोसा
पिछले वर्ष एनीकेटों की अनदेखी से सिंचाई संकट गहराया था। सैकड़ों एकड़ फसल नष्ट हुई, समय पर गेट बंद नहीं हुए। इस वर्ष भी मांगपत्र और मौखिक सूचना के बावजूद मरम्मत नहीं हुई। मजबूरन किसानों ने चंदा कर बोरी बंधन किया और चेतावनी दी कि यदि स्थायी समाधान नहीं हुआ, तो हजारों किसान सड़क पर उतरेंगे, जिसकी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।

पिछले अनुभव से सबक, भविष्य की चिंता
गत वर्ष भी इसी तरह की लापरवाही के चलते समय पर एनीकेटों के गेट बंद नहीं किए जा सके थे, जिससे सैकड़ों एकड़ खड़ी फसल बर्बाद हो गई थी। उसी अनुभव से सबक लेते हुए किसानों ने इस बार रबी सीजन से पहले खुद पहल की, ताकि आगे चलकर पानी की किल्लत न हो। यदि समय रहते स्थायी सुधार नहीं किया गया, तो आने वाले दिनों में यह समस्या बड़े आंदोलन का रूप ले सकती है।

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