शिफ्ट किए गए सूखे पेड़: सौ साल पुराने पेड़ों पर रेलवे के लाखों खर्च, लेकिन पानी नहीं दे पाए

शिफ्ट किए गए पेड़ सूखे : सौ साल पुराने पेड़ों पर रेलवे ने लाखों खर्च, लेकिन पानी नहीं दे पाए
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रेलवे के विकास कार्यों की जद में आ रहे 100 साल पुराने पेड़ों को बचाने रेलवे ने पिछले साल स्टेशन के पीछे गुढ़ियारी की ओर 20 से अधिक पेड़ों को शिफ्ट किया था।

रायपुर। रेलवे के विकास कार्यों की जद में आ रहे 100 साल पुराने पेड़ों को बचाने रेलवे ने पिछले साल स्टेशन के पीछे गुढ़ियारी की ओर 20 से अधिक पेड़ों को शिफ्ट किया था। शुरुआत में यह रेलवे का प्रयास सफल दिखा। कुछ महीने के भीतर कई पेड़ों में नई जड़ें विकसित हुईं, कुछ में पत्ते, फूल और फल भी दिखने लगे थे, लेकिन अब इन पेड़ों की स्थिति चिंताजनक है। हरिभूमि की पड़ताल में सामने आया कि लगभग 50 प्रतिशत पेड़ पूरी तरह सूख चुके हैं।

इस शिफ्टिंग में रेलवे ने लाखों रुपए खर्च किए थे। शिफ्टिंग के बाद नियमित सिंचाई और देखरेख नहीं होने से बारिश का पानी भी इन पेड़ों को जीवन नहीं दे सका। बबूल, बेल, बरगद और नीम जैसे पेड़ सूखे हुए मिले। पेड़ स्थानांतरित करने के बाद शुरुआत के दिनों में पेड़ में ध्यान दिया गया, लेकिन बाद में यह नियमित देखभाल के अभाव से इन पेड़ों से अब जान निकल चुकी है।

बता दें कि रेलवे ने पेड़ों को शिफ्टिंग के लिए आधुनिक तकनीक से जुड़ी एजेंसी से मदद ली थी। दावा था कि पेड़ जीवन रहेंगे, लेकिन सालभर से अधिक टिक नहीं पाए। आधा दर्जन से अधिक पेड़ वर्तमान में सूख चुके हैं।

इस तरह रेलवे ने किया था शिफ्ट
सालभर पहले रेलवे ने जड़ के साथ पेड़ों को जमीन से निकालकर रेलवे परिक्षेत्र की बाउंड्री के नजदीक रेलवे लोको कॉलोनी, टीटीई रेस्ट रूम के आसपास शिफ्ट किया था। पेड़ पुराने और विशाल होने के कारण ट्रक और क्रेन की मदद ली थी।

पेड़ को उखाड़ने के लिए पहले ट्रांसप्लांटेशन मशीन के जरिए लंबी जड़ों तक खुदाई की थी। कई पेड़ों की जड़ें 5 से 10 मीटर लंबी थीं। लगभग 7 से 15 फीट गहरा गड्डा खोदने के बाद पेड़ों को जड़ों के साथ निकाला गया और फिर दूसरी जगह पर शिफ्ट किया गया था।

पानी नहीं मिलने से सूखने लगे पौधे
शिफ्टिंग किए गए पेड़ों को पानी नहीं मिल रहा है। जिस जगह पर पेड़ लगाया गया है बीते कई महीनों से वहां पेड़ों को पानी नहीं मिला है। जमीन भी कठोर हो चुकी है। वर्तमान में 50 फीसदी सूखे है और उतने ही अभी जीवित है। अब रेलवे इन पेड़ों को काटने व हटाने में खर्च करेगा।

ट्री-ट्रांसप्लांटेशन विशेषज्ञ का कहना है कि अब इन पेड़ों पर ध्यान नहीं दिया तो यह पौधें ही चंद महीनों में ही सूख जाएंगे। ट्री-ट्रांसप्लांटेशन के बाद देखभाल जरूरी होती है। रेलवे के ओर से शिफ्टिंग के बाद पौधों में पानी डाला जाता था, जो अब बंद है।

बारिश के भरोसे ट्रांसप्लांटेशन पेड़ जिंदा नहीं रहतेः विशेषज्ञ
हरिभूमि ने ट्री-ट्रांसप्लांटेशन विशेषज्ञ डॉ. आनंद शर्मा से इस बारे में बात की। वे बताते है कि किसी भी बड़े पेड़ को हटाकर दूसरी जगह स्थापित करने के बाद कम से कम 12-18 महीने तक रोज या निर्धारित अंतराल में सिंचाई व पौधे के चारों तरफ मिट्टी को ढीला करके एरेशन, बढ़ती नई जड़ों की रक्षा के लिए मल्चिंगकीट व फफूंद संक्रमण से बचाव के लिए ट्री हेल्थ ऑडिट, मानसून से पहले और बाद में पोषक तत्वों का प्रबंधन इनमें से एक भी कदम में लापरवाही पेड़ों को धीरे-धीरे सुखा देती है।

बड़े पेड़ों की नई जड़ें कई महीनों तक कमजोर रहती हैं। इसलिए सिर्फ बारिश के भरोसे उन्हें छोड़ा नहीं जा सकता। नियंत्रित सिंचाई और जड़ों को स्थिर करने वाली तकनीकें नहीं अपनाई गई. इसलिए आधे पेड़ वापस जीवन नहीं पा सके।

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