हाईकोर्ट का फैसला: अविवाहित बेटी की जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता पिता

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पकंज गुप्ते- बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि, पिता अपनी अविवाहित बेटी की जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता। कोर्ट ने फैमिली कोर्ट, सूरजपुर के आदेश को बरकरार रखते हुए 25 वर्षीय पर्निमा सोनवानी को हर महीने 2,500 रु. गुजारा भत्ता और उसकी शादी के लिए 5 लाख रु. देने का आदेश दिया है।
दरअसल, मामला एक शिक्षक राजकुमार सोनवानी से जुड़ा है, जिन्होंने फैसला को चुनौती देते हुए कहा था कि, दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत आय का हलफनामा प्रस्तुत नहीं किया था, इसलिए आदेश गलत है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि, हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 के तहत अविवाहित बेटी को तब तक भरण-पोषण व विवाह व्यय का वैधानिक अधिकार है, जब तक वह स्वयं अपना खर्च नहीं उठा सकती।
कन्यादान एक पवित्र कर्तव्य है, जिससे पिता पीछे नहीं हट सकता
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अभिलाषा बनाम प्रकाश मामले का हवाला देते हुए कहा कि, अविवाहित बेटी चाहे बालिग ही क्यों न हो, पिता उसकी शिक्षा, रहने-खाने और विवाह का खर्च उठाने का कानूनी रूप से बाध्य है। याचिकाकर्ता पिता की दूसरी शादी से दो बच्चे हैं और वे सरकारी शिक्षक हैं, जिनकी मासिक आय 44,642 रु. बताई गई है। सुनवाई के दौरान पिता की ओर से अदालत को आश्वस्त किया गया कि वे नियमित रूप से 2,500 रु. मासिक भरण-पोषण देंगे और 5 लाख रु.की राशि तीन महीने के भीतर जमा करेंगे। कोर्ट ने कहा कि कन्यादान एक पवित्र कर्तव्य है, जिससे पिता पीछे नहीं हट सकता, और अपील को खारिज कर दिया।
