छत्तीसगढ़ का अनूठा गांव: दूसरा पैर होता है ओडिशा में, यह लकड़ी तस्करों का स्वर्ग

छत्तीसगढ़ का अनूठा गांव :  दूसरा पैर होता है ओडिशा में,  यह लकड़ी तस्करों का स्वर्ग
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गरियाबंद और ओडिशा के बॉर्डर इलाके में एक ऐसा गांव है, जहां कोई चेक पोस्ट ही नहीं है। जांच चौकी नहीं होने का सीधा लाभ लकड़ी तस्करों को मिला है।

हसन खान- मैनपुर। गरियाबंद और ओडिशा के बॉर्डर इलाके में एक ऐसा गांव है, जहां कोई चेक पोस्ट ही नहीं है। जांच चौकी नहीं होने का सीधा लाभ लकड़ी तस्करों को मिला है। जिस वजह से यहां भारी मात्रा में लकड़ियों की तस्करी की जा रही है। हरिभूमि ने इस गांव का मुआयना किया तो यह बात सामने आई कि मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे इस गांव में रहने वाले लोगों को राशन लेने के लिए भी 8 किलोमीटर का लंबा सफर तय करना पड़ रहा है।

गरियाबंद जिले के अंतर्गत आने वाले मैनपुर के अंतिम छोर में बसा ग्राम कोदोमाली, जो जंगल और पहाड़ी रास्तों को पारकर पहुंचा जाता है। इस गांव की जनसंख्या लगभग 730 के आसपास बताई जाती है और छत्तीसगढ़ के इस गांव से सटे ओडिशा प्रदेश का पहला गांव का नाम आचला है। हरिभूमि ने देखा कि दोनों राज्य के बीच कोई भी जांच चौकी नहीं है। यही नहीं, यहां कोई सूचना पटल भी नहीं लगा है। जिससे राहगीरों को यह जानकारी हो कि उस पार ओडिशा है। हालांकि इस क्षेत्र के ग्रामीण आने जाने वाले राहगीरों को इतना जरूर बताते है कि जैसे ही डामरीकरण पक्की सड़क मिलेगी, समझ जाना यहीं से ओडिशा प्रारंभ होता है।

टाइगर रिजर्व का दंश झेल रहेः सरपंच
ग्राम पंचायत साहेबिन कछार की सरपंच चैतीबाई नायक ने बताया हमारे कोदोमाली गांव के उस पार ओडिशा का प्रथम गांव है, जहां बिजली, सड़क और सभी सुविधाएं है। हमारे यहां संवेदनशील क्षेत्र व टाइगर रिजर्व का हवाला देकर विकास कार्य नहीं हो रहा है। यदि सरकार चाहे तो एक दिन के भीतर हमारे इस क्षेत्र में बिजली पहुंच सकती है।

टाइगर रिजर्व क्षेत्र के कारण नहीं बन पा रही पक्की सड़क
बम्हनीझोला से साहेबिनकछार और साहेबिनकछार से आठ किलोमीटर कोदोमाली तक पहाड़ी पथरीली सड़क की स्थिति बेहद खराब है। टाइगर रिजर्व क्षेत्र होने के कारण यहां पक्की सडक का निर्माण नहीं किया जा रहा है। मैनपुर देवभोग नेशनल हाईवे मार्ग मे मैनपुर से 28 किलोमीटर दूर बम्हनीझोला और वहां से लगभग 25 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत साहे बिनकछार के आश्रित ग्राम कोदोमाली है। इस गांव तक पहुंचने के लिए छोटे-बड़े नदी-नालों और पहाड़ी खतरनाक रास्ते को पार किया जाता है। ग्राम पंचायत साहेबिनकछार की सरपंच चैतीबाई नायक, पूर्व सरपंच अर्जुन नायक, रूपसिंह मरकाम ने बताया कि छत्तीसगढ राज्य निर्माण के 25 वर्षों बाद भी आज तक कोई भी बड़े जन प्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी इस गांव में नहीं आए हैं।

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