नदियों की गोद में बसे बस्तर के खेत आज भी प्यासे: मानसूनी बारिश के भरोसे होती है खेती, सिंचाई का रकबा मात्र 12 फीसदी

बस्तर जिले में सिर्फ 12 फीसदी सिंचाई का रकबा
अनिल सामंत- जगदलपुर। आजादी के बाद से बस्तर में आज पर्यन्त कोई बड़ी सिंचाई योजना विकसित नहीं होने से यहां के किसान मानसूनी बारिश के भरोसे कृषि कार्य पर निर्भर हैं, जबकि बस्तर में प्राणदायनी बस्तर की मुख्य नदी इंद्रावती है, जो बस्तर के पठार से होकर बहती है, गोदावरी नदी में मिलती है। इंद्रावती की कई सहायक नदियाँ और नाले हैं,जिनमें प्रमुख रूप से मारकंडी नदी हैं। वही अन्य सहायक नदियों में कोटरी, और नारंगी है।
वहीं दंतेवाड़ा में शंखिनी और डंकिनी नदी है। ये दोनों नदियाँ बस्तर की महत्वपूर्ण नदियाँ हैं। कोटरी और नारंगी ये नदियाँ इंद्रावती की उत्तरी सहायक नदियाँ हैं और उत्तर-पूर्वी बस्तर के बड़े हिस्से का जल निकासी करती हैं। चिंतावागु यह इंद्रावती की दक्षिणी सहायक नदी है, जबकि अन्य सहायक नदी में शबरी नदी है। इसके बावजूद बस्तर में सिंचाई का रकबा केवल 12 प्रतिशत है। इन्द्रावती नदी समेत इसकी सहायक नदियों में आज पर्यन्त कोई बड़ी सिंचाई परियोजना नहीं बन पाई। खासकर लोहंडीगुड़ा के मटनार,1979 से प्रस्तावित बोदघाट सिंचाई योजना पर काम शुरू नहीं हो पाया।
अब भी किसान मानसून के भरोसे करते हैं खेती
बता दें कि, जिले में सिंचाई सुविधा विकसित करने सिंचाई विभाग ने 20 साल में करीब 300 करोड़ रूपए खर्च कर दिए, लेकिन 20 साल में सिर्फ 20 हजार हेक्टयेर ही सिंचित रकबा बढ़ पाया, जबकि 50 हजार हेक्टेयर से अधिक बढ़ाने का लक्ष्य था। सूत्रों के मुताबिक मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद बस्तर जिले में सिर्फ 12 फीसदी रकबा ही अब तक सिंचित हो पाया है, जबकि 82 फीसदी रकबे में अब भी किसान मानसून के भरोसे खेती करते हैं।
सिंचाई परियोजनाओं को संचालित नहीं कर पा रहा विभाग
उल्लेखनीय है कि, सिंचाई विभाग ने सिंचित रकबा बढ़ाने लगातार प्रयास खोखला साबित हो रहा है। पूर्व में बनाए गए सिंचाई परियोजनाओं को भी विभाग संचालित नहीं कर पा रहा है, जबकि नए-नए सिंचाई परियोजनाओं की किसानों को सपना दिखाया जा रहा है। वर्तमान में बस्तर जिले में सिंचाई को लेकर एकमात्र कोसारटेडा मध्यम सिंचाई परियोजना ही है, जिसके माध्यम से किसानों को रबि सीजन में पानी मिल पा रहा है। यहां भी विभाग ने जितनी लक्ष्य निर्धारित किया है,उतने रकबे के लिए पानी नहीं मिल रहा है। जिले में हर साल 1 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचित रकबा बढ़ पा रहा है।
सिंचित रकबे में बढ़ोतरी नहीं होने से किसान का हो रहा नुकसान
सूत्रों के मुताबिक, वर्ष 2003 में जिले में 11,925 हेक्टेयर रकबे सिंचित था, जो 2019 में बढ़कर 32 हजार हेक्टेयर हो गया था। वर्तमान में सिंचित रकबा 35 हजार हेक्टेयर के आसपास ही रह गया है। सिंचित रकबे में बढ़ोतरी नहीं होने से सबसे अधिक नुकसान ग्रामीण क्षेत्र के किसानों को उठाना पड़ रहा है। सिंचाई सुविधा नहीं मिलने के कारण किसान रबी सीजन में चाहकर भी खेती नहीं कर पाते हैं। कई जगह पर केनाल खराब होने से किसानों को पानी नहीं मिल पा रहा हैै। बस्तर जिले में सिंचाई विभाग के अन्तर्गत एक माध्यम सिंचाई परियोजना कोसारटेडा है। इसके अलावा 7 व्यपवर्तन योजना, 7 उदवहन सिंचाई योजना, 31 लघु सिंचाई योजना, 40 एनीकट एवं स्टापडेम निर्मित किये गए है। इन सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से किसानों को खरीफ एवं रबी सीजन में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाया जाता है।
सिंचाई सुविधा विस्तार कार्य प्रस्तावित
जल संसाधन विभाग के ईई वेद पांडे ने बताया कि, बस्तर में सिंचाई सुविधा का विस्तार के अभी हाल में ही व्यपवर्तन और बैराज सिंचाई योजना प्रस्तावित है। इन योजनाओं पर कार्य जल्द प्रारंभ होगा। जिसके बाद सिंचाई का रकबा में वृद्धि होगी।
