धमतरी के शासकीय सेवक दंपत्ति का अनोखा परोपकार: 1100 पेड़ों से उपजा 23,000 किलो अमरूद, स्कूली बच्चों को बांटे निःशुल्क

धमतरी के शासकीय सेवक दंपत्ति का अनोखा परोपकार
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हाथ में अमरुद लिए बच्चे 

धमतरी जिले में एक शासकीय सेवक दंपत्ति अपने हाथों से लगाए पेड़ों से प्राप्त फल को बाजार में बेचने के बजाय नज़दीकी स्कूलों के बच्चों को बिल्कुल मुफ्त बाँटते हैं।

धमतरी। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में केंद्रीय विद्यालय कुरूद, शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मगरलोड, शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खम्हारडीह रायपुर, माध्यमिक स्कूल लुगे मगरलोड, शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय करेली बड़ी में इस साल 1500 किलो के लगभग अमरूद वितरण किया गया।

दरअसल, भैसमुड़ी (मगरलोड) गांव के एक शासकीय सेवक दंपत्ति ने अपने कर्म और सेवा भाव से पूरे क्षेत्र में असाधारण मिसाल पेश की है। जहाँ समाज का एक बड़ा हिस्सा प्रकृति के दोहन में लगा हुआ है। गाँव के निवासी तुमनचंद साहू और उनकी पत्नी रंजीता साहू ने अपने नाम से बड़ा एक ऐसा काम कर दिखाया है। जिसकी गूँज अब आसपास के गाँवों और स्कूलों तक पहुँच रही है। यह दंपत्ति पिछले कई वर्षों से 'पेड़ लगाबो तभे तो फल खाबो' नामक अभियान को अपने जीवन का संकल्प बनाकर चला रहा है।



1100 पेड़ों से शुरू हुआ एक बड़ा सपना
तुमनचंद साहू बताते हैं कि, खेती-किसानी से जुड़े परिवारों को पेड़-पौधों का महत्व हमेशा से समझ में आता है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के साथ सामाजिक हित को जोड़ना ही इस मिशन की सबसे बड़ी विशेषता है। उन्होंने अपने निजी खेत में लगभग 1100 पेड़ लगाए, जिनमें प्रमुख रूप से अमरूद, नींबू, कटहल, आम और अन्य फलदार पौधे शामिल हैं। आज ये पेड़ न सिर्फ उनके खेत की शोभा बढ़ाते हैं, बल्कि हजारों बच्चों के चेहरों पर मुस्कान भी लाते हैं।

फल बेचने के बजाय बच्चों को निःशुल्क वितरण
परोपकार की वास्तविक परिभाषा को जीते हुए यह दम्पत्ति अपने पेड़ों से प्राप्त फल को बाजार में बेचने के बजाय नज़दीकी स्कूलों के बच्चों को बिल्कुल मुफ्त बाँटते हैं। वे मानते हैं कि, पौधा केवल फल का स्रोत नहीं, बल्कि बच्चों में स्वास्थ्य, पोषण और प्रकृति के प्रति प्रेम का बीज भी बोता है। पिछले चार वर्षों में लगभग 23,000 किलो अमरूद उन्होंने विभिन्न स्कूलों तक पहुँचाए हैं। हर बार फल आने का मौसम जैसे ही शुरू होता है, दम्पत्ति अपनी गाड़ी में टोकरी भरकर निकल पड़ते हैं- कहीं प्राथमिक शाला, कहीं हाई स्कूल, तो कहीं आश्रम स्कूल। बच्चों के लिए यह सिर्फ फल नहीं, बल्कि प्रेम और प्रेरणा का प्रसाद होता है।


बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता
फल वितरण के दौरान यह दम्पत्ति बच्चों को पेड़ लगाने, पर्यावरण बचाने और प्रकृति का सम्मान करने का संदेश भी देते हैं। स्कूलों में उनकी बातें बड़े ध्यान से सुनी जाती हैं, और कई बच्चों ने तो अपने घरों में पौधे लगाने की पहल भी की है। शिक्षक बताते हैं कि, इस मिशन से बच्चों में स्वच्छता, पोषण, प्राकृतिक संसाधनों का महत्व और सामाजिक सेवा की समझ विकसित हुई है।

ग्रामीण क्षेत्र के लिए प्रेरणा का केन्द्र
आज भैसमुड़ी का यह अभियान दूर-दूर तक चर्चा का विषय बना हुआ है। आसपास के किसान परिवार भी इस पहल से प्रेरित होकर अपने खेतों में पेड़ लगाने लगे हैं। पंचायत प्रतिनिधि और स्थानीय समाजसेवी भी समय-समय पर इस दम्पत्ति को सम्मानित करते रहे हैं। मगरलोड क्षेत्र में अब 'पेड़ लगाबो तभे तो फल खाबो' केवल एक नारा नहीं रहा, बल्कि जन आंदोलन का स्वरूप लेता जा रहा है।


परम संतोष, सेवा में ही है – साहू दम्पत्ति
तुमनचंद साहू कहते हैं कि, हमने देखा बच्चे बाजार के महँगे फल खरीद नहीं पाते। तब सोचा कि, बढती मंहगाई से निजात तभी मिल सकती है, जब हम खुद पेड़ लगाएं और फल खुद भी खाए औरों को भी खिलाएं,सेवा करने से जो खुशी मिलती है, वह किसी और चीज़ में नहीं। वहीं उनकी पत्नी रंजीता साहू बताती हैं कि, जब बच्चे अमरूद हाथ में लेकर मुस्कुराते हैं, तो उन्हें लगता है कि उनका हर श्रम और त्याग सफल हो गया।

प्रकृति और समाज दोनों की सेवा
यह कहानी केवल दो व्यक्तियों के समर्पण की नहीं, बल्कि उस सोच की है जो कहती है कि, अगर हर व्यक्ति एक पेड़ लगाए और एक बच्चे को फल खिलाए, तो समाज का हर कोना हरा-भरा और स्वस्थ हो जाएगा। भैसमुड़ी के इस साहू दम्पत्ति का प्रयास निःसंदेह पूरे क्षेत्र के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत है। यह संदेश भी देता है कि, यदि इच्छा सच्ची हो तो संसाधन छोटे या बड़े मायने नहीं रखते, मायने रखता है दिल का आकार।

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