CRPF Headquarter निर्माण को लेकर विवाद: रेंगानार गांव के ग्रामीण बोले- जमीन हमारी, फैसला हमारा

रेंगानार गांव के ग्रामीण बोले- जमीन हमारी, फैसला हमारा
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पुश्तैनी जमीन पर जबरन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी देते ग्रामीण

दंतेवाड़ा के रेंगानार गांव में सीआरपीएफ हेडक्वार्टर निर्माण को लेकर विवाद भड़क उठा है। ग्रामीणों ने पुश्तैनी जमीन पर जबरन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी दी है।

पंकज भदौरिया - दंतेवाड़ा। रेंगानार गांव में प्रस्तावित सीआरपीएफ 111वीं बटालियन हेडक्वार्टर को लेकर स्थानीय ग्रामीणों ने खुला विरोध शुरू कर दिया है। प्रशासन जहां लगभग 29 हेक्टेयर जमीन हेडक्वार्टर निर्माण के लिए चिन्हांकित कर चुका है, वहीं ग्रामीणों ने रविवार को रेंगानार, मसेनार और गढ़मिरी पंचायतों की संयुक्त बैठक में साफ कहा- हम अपनी जमीन किसी भी कीमत पर नहीं देंगे।

बिना सहमति जबरन अधिग्रहण - ग्रामीणों का आरोप
ग्रामीणों ने कहा कि प्रशासन जिस भूमि पर हेडक्वार्टर बनाना चाहता है, वह उनकी खेती-किसानी और धार्मिक पूजा स्थलों वाली पुश्तैनी जमीन है। उनका आरोप है कि बिना ग्राम सभा की अनुमति के प्रशासन जबरन कब्जे की कोशिश कर रहा है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर जमीन ली गई तो वे आंदोलन करने से पीछे नहीं हटेंगे।


चिन्हांकित जमीन पर विवाद
सूत्रों के अनुसार, खसरा नंबर 158 से 163 तक की लगभग 27.76 हेक्टेयर भूमि को प्रशासन ने प्रस्तावित क्षेत्र के रूप में चयनित किया है। इनमें से कई जमीनें निजी स्वामित्व में हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अब जब क्षेत्र में नक्सल गतिविधियां लगभग समाप्त हो चुकी हैं, तो गांव में स्थायी सीआरपीएफ कैंप की कोई आवश्यकता नहीं है।

स्थानीय प्रतिनिधियों की राय
मंगल भास्कर, सरपंच रेंगानार का कहना है कि, 'यह जमीन हमारी जीवनरेखा है- खेत, पेड़ और पूजा स्थल सब कुछ यहां हैं। हम यहां किसी कीमत पर हेडक्वार्टर नहीं बनने देंगे।'

वही सुकालू मुड़ामी, जनपद अध्यक्ष ने कहा कि, ग्रामीणों की सहमति के बिना कोई निर्णय उचित नहीं। प्रशासन को पहले ग्राम सभा से संवाद करना चाहिए था। साथ ही ग्रामीण प्रतिनिधि संजय ने कहा कि, हम सरकार का सम्मान करते हैं, पर जमीन हमारी है। जब तक मांग नहीं सुनी जाएगी, विरोध जारी रहेगा।

बढ़ता विवाद, प्रशासन के लिए चुनौती
रेंगानार में यह मुद्दा अब तेजी से राजनीतिक और सामाजिक गर्मी पकड़ रहा है। प्रशासन के लिए सुरक्षा जरूरतों और ग्रामीणों की भावनाओं के बीच संतुलन बनाना एक कठिन परीक्षा बन चुका है।

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