मुख्यमंत्री की फटकार के बाद हरकत में सिस्टम: लाल फीताशाही में कैद जल योजना, 44 साल से अधूरी, अब थोड़ी हलचल

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हसन खान- मैनपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बीते दिनों जल संसाधन विभाग की बैठक में अफसरों पर भड़क गए थे। उन्होंने समीक्षा के दौरान अपने गृह जिले की योजना का जिक्र करते हुए कहा था कि एक सिंचाई परियोजना 49 साल से पूरी नहीं हुई है। अफसर अगर उसे पूरी नहीं कर सकते तो बता दें, वे किसानों को उनकी जमीन वापस कर देंगे।
बैठक में मुख्यमंत्री ने सभी लंबित परियोजनाओं को पूरा करने का निर्देश दिया था। उसके बाद प्रदेश की परियोजनाओं की फाइलें खुलने लगी हैं। एक ऐसी परियोजना है गरियाबंद के मैनपुर क्षेत्र के बहुचर्चित सलफ जलाशय बांध योजना। उसका निर्माण कार्य 80 प्रतिशत पूर्ण होने के बाद पर्यावरण के अड़ंगे के चलते पिछले 44 वर्षों में पूरा नहीं हो पाया है। मैनपुर क्षेत्र के किसानों ने सलफ जलाशय बांध के निर्माण के लिए कई लंबी लड़ाई लड़ी है। इस बांध निर्माण से मैनपुर क्षेत्र के लगभग 2000 हेक्टेयर जमीन में पानी की सिंचाई हो सकती है।
प्राथमिकता में निर्माणः विधायक
विधायक जनक ध्रुव ने बताया कि, सलफ जलाशय निर्माण मेरी पहली प्राथमिकता है। इस मामले को विधानसभा में दो बार प्रमुखता के साथ मेरे द्वारा उठाया गया है और तो और इस संबंध में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, वनमंत्री केदार कश्यप को भी पूरे दस्तावेज और सलफ जलाशय की फाइल सौंपी जा चुकी है।
जल्द मूर्त रूप लेगी सिंचाई परियोजना
गरियाबंद सिंचाई विभाग के कार्यपालन अभियंता एसके बर्मन ने बताया कि, इसमें वन विभाग और पर्यावरण को जो आपत्ति थी। उसके पूरे कागजात क्लीयर कर लिए गए हैं। अटल सिंचाई योजना के तहत 30 करोड़ रुपए का स्टीमेट बनाकर मंत्रालय को भेजा गया है और मंत्रालय में इसकी समीक्षा बैठक भी हो चुकी है। उम्मीद लगाई जा रही है कि आने वाले दिनों में यह सिंचाई परियोजना अटल सिंचाई योजना के तहत मूर्त रूप लेगी।
अचानक रोक दिया निर्माण कार्य
क्षेत्र के वरिष्ठ लोगों से मिली जानकारी के अनुसार सन 1979 में मांग पर मैनपुर नगर से 4 किलोमीटर दूर फूलझर पर दो छोटी पहाड़यिों को जोड़कर सलफ जलाशय निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। यह निर्माण कार्य लगातार 3 वर्षों तक चला, बांध निर्माण के लिए दोनों पहाड़यों को जोड़ा जा चुका है और 5 से 6 किमी तक नहर का निर्माण कार्य भी हो चुका है। जिसका मुआवजा भी सरकार दे चुकी है, फिर निर्माण कार्य के दौरान एकाएक इस बांध निर्माण कार्य को रोक दिया गया।
वृक्षों के नाम पर लगी रोक
पर्यावरण मंत्रालय की टीम ने जब इस बांध स्थल का निरीक्षण करने पहुंची, तो टीम के सदस्यों ने बांध निर्माण स्थल के बजाय गांव में ही ग्रामीणों से जानकारी लिया कि इस बांध के निर्माण से कितना वृक्ष डुबान में आ रहा है। ग्रामीणो ने बोलचाल के भाषा में 20 से 25 लाख के पेड़ बताए। हकीकत में बांध निर्माण स्थल पर मात्र 20 से 25 नग कोसम का पेड़ हैं और कोसम के पेड़ को क्षेत्र में बोलचाल के भाषा में लाख का पेड़ कहा जाता है। ग्रामीणों ने बोलचाल के भाषा में वन विभाग पर्यावारण मंत्रालय के टीम को बताया कि यहां मात्र 20 से 25 नग लाख के पेड़ हैं। जिसे जांच में पहुंची टीम ने 20 से 25 लाख यानी लाखों पेड़ समझ बैठा और टीम के सदस्यों ने कहा कि 20 से 25 लाख पेड़ को बांध निर्माण के लिए नहीं काटा जा सकता।
