रायपुर में 'गुनान' गोष्ठी: प्रबुद्धजनों ने उठाई छत्तीसगढ़ी को कामकाजी भाषा बनाने की मांग

प्रबुद्धजनों ने उठाई छत्तीसगढ़ी को कामकाजी भाषा बनाने की मांग
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छत्तीसगढ़ी समाज के पदाधिकारी और प्रतिभागी

छत्तीसगढ़ी समाज द्वारा आयोजित गुनान गोष्ठी में साहित्यकारों और समाजसेवियों ने छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाज और पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग उठाई।

रायपुर। छत्तीसगढ़ राजधानी रायपुर के विमतारा भवन, शांति नगर में छत्तीसगढ़ी समाज रायपुर के तत्वावधान में एक दिवसीय गुनान गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी का उद्देश्य था छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाज में शामिल करना, पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना और इसे समृद्ध एवं सम्मानित भाषा के रूप में स्थापित करना।

जब तक छत्तीसगढ़ी व्यवहार में नहीं आएगी, उपेक्षा जारी रहेगी।
सभी वक्ताओं ने एकमत होकर कहा कि, 'जब तक शासकीय स्तर पर और जनप्रतिनिधियों द्वारा छत्तीसगढ़ी बोली का व्यवहार नहीं होगा, तब तक इसकी उपेक्षा बनी रहेगी।' उन्होंने बताया कि पिछले 25 वर्षों से यह मांग शांतिपूर्ण तरीके से रखी जा रही है, लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से अब तक ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

शासन पर दबाव बनाने का निर्णय
गोष्ठी में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि आने वाले समय में छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाजी और व्यवहारिक रूप में लाने के लिए शासन स्तर पर उचित दबाव बनाया जाएगा। इसके लिए समाजसेवी संगठनों, साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों और छत्तीसगढ़ी अस्मिता से जुड़े लोगों को एकजुट करने का प्रस्ताव भी रखा गया।


कार्यक्रम में शामिल अतिथि, अध्यक्ष और वक्ता
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे छत्तीसगढ़ शासन के पूर्व मुख्य कृषि कलाकार 'श्री प्रदीप शर्मा', वहीं प्रदेश अध्यक्ष 'डॉ सत्यजीत साहू' ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस अवसर पर वक्ता के रूप में कई वरिष्ठ साहित्यकार और समाजसेवी जैसे 'सुशील भोले' वरिष्ठ साहित्यकार, राजभाषा आयोग के पूर्व सचिव 'डॉ. अनिल भतपहरी', छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के अध्यक्ष 'कान्हा कौशिक', वरिष्ठ साहित्यकार व संपादक 'डॉ. दीनदयाल साहू', साहित्यकार 'डॉ. अशोक आकाश', और समाजसेवी 'लता राठौर', उपस्थित रहे।

बड़ी संख्या में जुटे प्रतिभागी
इस गरिमामय आयोजन में छत्तीसगढ़ी समाज के पदाधिकारी, सदस्य, लोक कलाकार, साहित्यकार और समाजसेवी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। सभी ने एक स्वर में कहा कि 'छत्तीसगढ़ी भाषा हमारी पहचान है और इसे संविधानिक, शैक्षणिक और प्रशासनिक स्तर पर स्थान मिलना चाहिए।'

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