उत्तराधिकार अधिनियम पर बड़ा फैसला: हाईकोर्ट ने गवाहों के हस्ताक्षर वाली वसीयत के जरिए पोतों का दावा किया ख़ारिज

हाईकोर्ट
पंकज गुप्ते- बिलासपुर। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम को लेकर छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट के सिंगल बेंच ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि गवाहों के हस्ताक्षर मात्र होने से कोई भी वसीयत वैध नहीं हो जाता।
सिंगल बेंच ने निचले अदालत के फैसले को पलटते हुए पोतों के दावा को खारिज कर दिया। वही दो बेटों को राहत दी है है। दरअसल, पूरा मामला बिलासपुर जिले के मस्तूरी का है। जहां के रहने वाले सहेतर लाल के पास 6 एकड़ जमीन थीं। 2007 में 99 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। पोतों ने दावा किया था कि उनके दादा ने 2006 में उनके नाम वसीयत कर दी। जिसके गवाहों के हस्ताक्षर भी है।
गवाहों के हस्ताक्षर होने से वसीयत वैध नहीं
निचली अदालत ने पोतों के पक्ष में फैसला सुना दिया। इसके खिलाफ बेटों ने हाईकोर्ट में अपील की। दोनों पक्षों के दलील को सुनने के बाद कोर्ट ने पाया कि दादा की उम्र 99 वर्ष हो गए है, वे बेहद कमजोर और सोचने समझने की क्षमता खो चुके रहे होंगे। कोर्ट ने माना कि गवाहों के हस्ताक्षर मात्र होने से वसीयत वैध नहीं है।
