समानता के अधिकार पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: कोर्ट बोली- अधिकार का उल्लंघन कर प्रशासन नहीं कर सकता विभागीय जांच

हाईकोर्ट
पंकज गुप्ते- बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने समानता के अधिकार के उल्लंघन मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि, समानता के अधिकार का उल्लंघन कर प्रशासन विभागीय जांच नहीं कर सकता। चीफ जस्टिस रमेश सिंहा और जस्टिस विभूदत्त गुरु के डिवीजन बैंच ने माना कि यह भेदभाव पूर्ण कारवाई है।हाईकोर्ट ने कहा कि, भेदभाव कर जांच करना संविधान के अनुच्छेद 14 का घोर उल्लंघन है। इसलिए शासन के पुलिस विभाग की रिट अपील खारिज की जाती है।
आपको बता दें कि, जिला महासमुंद में अलेकसियूस मिंज (प्रधान आरक्षक), दीपक विदानी (आरक्षक), एवं याचिका कर्ता आरक्षक नरेंद्र यादव को गणतंत्र दिवस की मंच सुरक्षा में ड्यूटी में लापरवाही के आरोप में एसपी महासमुंद ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था। अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देते हुए तीनों पुलिस कर्मियों ने छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट की शरण ली। जिस पर हाइकोर्ट के सिंगल बैंच ने तीनों पुलिस कर्मियों के बर्खास्तगी को निरस्त कर तीनों पुलिस कर्मियों को बहाल करने का आदेश दिया।
प्रधान आरक्षक ने लगाई अवमानना याचिका
हाइकोर्ट सिंगल बैंच के आदेश का पालन करते हुए एसपी महासमुंद ने मिंज और विदानी को तत्काल ज्वाइन दे दिया पर नरेंद्र यादव को नहीं दिया। जिसके कारण नरेंद्र यादव ने हाइकोर्ट में अपने अधिवक्ता अभिषेक पांडेय एवं वर्षा शर्मा के माध्यम से अवमानना याचिका दाखिल की। जिस पर पुलिस विभाग ने डिवीजन बैंच ने रिट अपील की। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस के डिवीजन बैंच ने पाया कि पुलिस विभाग ने दुर्भावनावश कारवाई करते हुए नरेंद्र यादव को ज्वाइनिंग नहीं दी गई। हाइकोर्ट ने पुलिस विभाग की रिट अपील को निरस्त करते हुए याचिका कर्ता नरेंद्र यादव के विरुद्ध किसी भी प्रकार की विभागीय जांच कारवाई न करने का आदेश पारित किया है। साथ ही आरक्षक नरेंद्र यादव को तत्काल ज्वाइनिंग देने का भी आदेश दिया।
