छत्तीसगढ़ में वन्यजीवों की मौत पर हाईकोर्ट सख्त: चीफ जस्टिस ने लिया स्वतः संज्ञान, अधिकारियों से मांगा व्यक्तिगत हलफनामा

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
पंकज गुप्ते- बिलासपुर। जंगली जानवरों की संदिग्ध मौत और अवैध शिकार की आशंका से जुड़े मामलों को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्त गुरु की डिवीजन बेंच ने स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका के रूप में सुनवाई की और राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक सह मुख्य वन्यजीव वार्डन को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि प्रदेश में वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर किसी भी तरह की लापरवाही स्वीकार्य नहीं होगी। मामले की अगली सुनवाई 19 दिसंबर 2025 को निर्धारित की गई है।
आपको बता दें कि अदालत ने यह स्वतः संज्ञान मीडिया में लगातार आ रही खबरों के आधार पर लिया है। इनमें सूरजपुर वनमंडल के घुई रेंज अंतर्गत रेवटी जंगल में मिले बाघ के शव का मामला प्रमुख है। मीडिया में दिखाए जा रहे खबरों के अनुसार बाघ का शव संदिग्ध हालत में मिला था, उसके दांत और नाखून गायब थे तथा शरीर पर गहरे जख्म के निशान पाए गए थे। घटनास्थल से धारदार हथियार की बरामदगी भी सामने आई है। कोर्ट के अनुसार प्रथम दृष्टया यह मामला शिकार का प्रतीत होता है। आदेश में यह भी उल्लेख किया गया कि शव की स्थिति से अनुमान है कि बाघ की मौत तीन से चार दिन पहले हो चुकी थी।इसके अलावा खैरागढ़ वनमंडल के बानबोद क्षेत्र में तेंदुए की निर्मम हत्या का मामला भी सामने आया है।
तेंदुए की मौत पर जताई चिंता
मीडिया के मुताबिक तेंदुए को मारकर उसके चारों पंजे और जबड़े के दांत निकाल लिए गए थे। जंगल में तेंदुए का शव क्षत-विक्षत हालत में मिला, जिससे संगठित अवैध शिकार गिरोह की आशंका जताई गई है। कोर्ट ने इस घटना को भी अत्यंत गंभीर मानते हुए वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में बिलासपुर स्थित कानन पेंडारी जू में एक वृद्ध बाघिन की मौत का मामला भी सामने आया है, जिसे लेकर भी अदालत ने चिंता जताई है।
कोर्ट ने अधिकारियों से मांगा जवाब
कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की कि हाल ही में राज्य शासन की ओर से यह बताया गया था कि प्रदेश में शिकार की कोई नई घटना नहीं हुई है। जबकि इसके मीडिया में दिखाएं गए खबरों में बाघ, तेंदुआ और बाघिन की मौत से जुड़ी घटनाएं लगातार दिखाएं जा रहे है। इन सभी घटनाओं को एक साथ जोड़ते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए तो प्रदेश में वन्यजीव संरक्षण की स्थिति और गंभीर हो सकती है। अदालत ने राज्य शासन के अधिवक्ता को निर्देश दिए हैं कि आदेश की प्रति तत्काल संबंधित अधिकारियों तक पहुंचाई जाए, ताकि अगली सुनवाई से पहले जिम्मेदार अधिकारियों का व्यक्तिगत जवाब रिकॉर्ड पर आ सके।
