भ्रष्टाचार मामले में बाबू को मिली बड़ी राहत: हाई कोर्ट ने रिश्वत लेने के सभी आरोपों से किया बरी, कहा- पर्याप्त सबूत नहीं मिले

बिलासपुर हाई कोर्ट
X

बिलासपुर हाई कोर्ट

हाईकोर्ट ने बिल्हा तहसील कार्यालय के तत्कालीन रीडर को रिश्वत मामले में बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि, शिकायतकर्ता आरोप सिद्द नहीं कर पाया।

पंकज गुप्ते- बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिल्हा तहसील कार्यालय के तत्कालीन रीडर बाबूराम पटेल को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत लगे सभी आरोपों से बरी कर दिया है। जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की सिंगल बेंच ने कहा कि, अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि आरोपित ने रिश्वत की मांग की थी या उसे अवैध लाभ के रूप में स्वीकार किया था।

दरअसल, मामला वर्ष 2002 का है, शिकायतकर्ता मथुरा प्रसाद यादव ने लोकायुक्त कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई थी कि, बाबूराम पटेल ने उसके पिता की जमीन का खाता अलग करने के नाम पर पांच हजार रुपये की रिश्वत मांगी थी जो बाद में दो हजार में तय हुई। शिकायत के बाद लोकायुक्त पुलिस ने ट्रैप की कार्रवाई की और शिकायतकर्ता को 15 नोट सौ-सौ रुपये के दिए गए, जिन पर फिनाल्फ्थेलीन पाउडर लगाया गया था। आरोप था कि आरोपित ने 1500 रुपये रिश्वत के रूप में लिए, जिसे मौके पर पकड़ लिया गया।

2004 में कोर्ट ने सुनाई थी सजा
वर्ष 2004 में विशेष न्यायाधीश ने उसे एक-एक वर्ष की सजा और जुर्माने से दंडित किया था। आरोपित ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उसकी ओर से अधिवक्ता विवेक शर्मा ने तर्क दिया कि पूरा मामला साजिश के तहत रचा गया है। शिकायतकर्ता की पत्नी पूर्व सरपंच थीं और उनके खिलाफ एक जांच में बाबूराम पटेल ने भाग लिया था, जिससे द्वेषवश झूठा फंसाया गया।

रिश्वत नहीं पट्टा शुल्क की बकाया राशि थी
बाबूराम पटेल कहा कि, शिकायतकर्ता द्वारा दिया गया 1500 रुपये रिश्वत नहीं बल्कि ग्रामवासियों से पट्टा शुल्क की बकाया राशि थी, जिसे जमा कराने के लिए कहा गया था। इसके अलावा, 3180 की जब्त राशि में से 1500 को रिश्वत बताना भी संदिग्ध था। राज्य की ओर से अभियोजन ने कहा कि, साक्ष्य पर्याप्त हैं और आरोपित ने अवैध रूप से 1500 रुपये लिए थे।

नोटों की बरामदगी से रिश्वत सिद्द नहीं होता- कोर्ट
हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड और साक्ष्यों का बारीकी से परीक्षण करते हुए कहा कि, केवल नोटों की बरामदगी से रिश्वत का अपराध सिद्ध नहीं होता, जब तक मांग और स्वीकारोक्ति का स्पष्ट प्रमाण न हो। अदालत ने पाया कि, शिकायतकर्ता ने स्वयं कहा था कि उसे यह स्पष्ट नहीं था कि 1500 रुपये रिश्वत थी या पट्टा शुल्क। उसने यह भी स्वीकार किया कि शिकायत लोकायुक्त एसपी के निर्देश पर लिखवाई गई थी।

बयानों में विरोधाभास का दिया हवाला
रिकार्ड की गई बातचीत में भी आरोपित की आवाज स्पष्ट नहीं थी। ट्रैप टीम के तीन सदस्यों ने पैसे की बरामदगी को लेकर अलग- अलग बयान दिए किसी ने दाएं पॉकेट, किसी ने बाएं, तो किसी ने पीछे की जेब बताई। इन विरोधाभासों के आधार पर अदालत ने कहा कि मांग, स्वीकारोक्ति और बरामदगी तीनों ही संदिग्ध हैं।

कोर्ट ने किया बरी
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय बी. जयाराज बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश (2014) और सौंदर्या राजन बनाम स्टेट (2023) का हवाला देते हुए कहा कि, जब अभियोजन अपने आरोपों को संदेह से परे साबित नहीं कर पाता, तो आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश का निर्णय रद्द करते हुए बाबूराम पटेल को सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि, अभियोजन का मामला टिकाऊ नहीं है और ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों का सही मूल्यांकन नहीं किया। चूंकि वह पहले से जमानत पर था इसलिए उसके जमानत बांड समाप्त कर दिए गए।

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story