हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: नाबालिग रहते दर्ज मामूली केस छिपाने पर हटाए गए फ़ूड इंस्पेक्टर की बर्खास्तगी आदेश किया रद्द

नाबालिग रहते दर्ज मामूली केस छिपाने पर हटाए गए फ़ूड इंस्पेक्टर की बर्खास्तगी आदेश किया रद्द
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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय

बिलासपुर हाईकोर्ट ने नाबालिग उम्र में दर्ज मामूली केस छिपाने पर बर्खास्त किए गए फ़ूड इंस्पेक्टर को बड़ी राहत दी है, कोर्ट ने कहा 'बाल अपराध की सजा जिंदगीभर नहीं ढोई जा सकती', और विभागीय आदेश रद्द किया।

पंकज गुप्ते - बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से एक महत्वपूर्ण फैसला सामने आया है, कोर्ट ने नाबालिग रहते दर्ज मामूली आपराधिक मामले को छिपाने के आरोप में बर्खास्त किए गए खाद्य निरीक्षक को बड़ी राहत दी है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एन.के. चंद की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार द्वारा जारी बर्खास्तगी आदेश को रद्द करते हुए कहा कि- 'नाबालिग रहते की गई गलती का दंड व्यक्ति को जीवनभर नहीं दिया जा सकता।'

पूर्व नेवी कर्मी को मिली राहत
मामले में याचिकाकर्ता पूर्व नेवी कर्मी हैं, जिन्होंने भारतीय नौसेना में 15 वर्ष तक सेवा दी थी। उन्हें वर्ष 2018 में खाद्य निरीक्षक (भूतपूर्व सैनिक कोटे) से नियुक्त किया गया था, लेकिन मार्च 2024 में पुलिस सत्यापन रिपोर्ट के आधार पर यह कहते हुए उनकी सेवा समाप्त कर दी गई कि उन्होंने नाबालिग उम्र में दर्ज एक मामूली केस की जानकारी छिपाई थी।

सिंगल बेंच ने खारिज की थी याचिका
पूर्व में याचिकाकर्ता ने इस आदेश को चुनौती देते हुए WPS No.2823/2024 दाखिल की थी हालांकि, 7 जनवरी 2025 को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर गलत जानकारी दी। इस आदेश के खिलाफ अब अपील में डिवीजन बेंच ने सुनवाई की और सिंगल बेंच का आदेश रद्द करते हुए याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया गया।

कानूनी दलीलें और कोर्ट का मत
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि-

  • पुलिस रिपोर्ट में जिन मामलों का जिक्र है, वे नाबालिग अवस्था में दर्ज हुए मामूली विवाद के केस हैं।
  • शिकायत सिर्फ उन पर नहीं बल्कि पूरे परिवार पर की गई थी।
  • नौसेना में उनके पूरे कार्यकाल के दौरान चरित्र को “Exemplary” और “Very Good” आंका गया था।
  • उन्हें कई बार Good Conduct Badge से सम्मानित किया गया।
  • उन्होंने कभी किसी गंभीर अपराध में भाग नहीं लिया और यह घटना सेना में भर्ती होने से पहले की थी।
  • याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि बाल अपराध अधिनियम (Juvenile Justice Act, 2015) की धारा 24(1) के तहत, किसी नाबालिग पर अपराध का दोष सिद्ध हो जाने पर भी भविष्य में उसके खिलाफ कोई अयोग्यता लागू नहीं की जा सकती।

हाईकोर्ट का निष्कर्ष
डिवीजन बेंच ने कहा कि- 'जब अपराध नाबालिग अवस्था में हुआ और वह भी मामूली विवाद का परिणाम था, तो उस घटना को आधार बनाकर व्यक्ति की सरकारी सेवा समाप्त करना न्यायोचित नहीं है। बाल अपराध अधिनियम के अनुसार, बाल अपराधी को जीवनभर अपराधी नहीं माना जा सकता।' इसके साथ ही हाईकोर्ट ने विभाग द्वारा जारी 15 मार्च 2024 के बर्खास्तगी आदेश को रद्द करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल किया जाए।

नाबालिग उम्र की गलती पर नहीं जाएगी नौकरी
इस फैसले को न्यायिक जगत में एक मानवीय दृष्टिकोण के रूप में देखा जा रहा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की नाबालिग उम्र की गलती को आधार बनाकर उसके पूरे करियर को समाप्त नहीं किया जा सकता।

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