बोधघाट और कोट्टागुडम रेल परियोजना का विरोध: बस्तरिया राज मोर्चा ने दी आंदोलन की चेतावनी, बोले-डूब जाएंगे 56 गांव

बस्तरिया राज मोर्चा के पदाधिकारी
अनिल सामंत- बस्तर। छत्तीसगढ़ के बस्तर के बीच से जा रही बोधघाट परियोजना और कोट्टागुडम रेल परियोजना का बस्तरिया राज मोर्चा विरोध कर रही है। बस्तरिया राज मोर्चा के मनीष कुंजाम ने कहा कि, बोधघाट परियोजना और कोट्टागुडम-किरन्दुल रेल परियोजना से बस्तरवासियों को बर्बाद करने के लिए प्रभावित गांव के लोगो से सहमति लिए बगैर कैसे लाया जा रहा है। इन दोनों परियोजना से बस्तर के ग्रामीणों का फायदा नहीं बल्कि उनके सम्पूर्ण जीवनकाल की पहचान समाप्त हो जाएगा। केंद्र व राज्य सरकार ग्रामीणों के सहमति के बिना यदि बोधघाट परियोजना और कोट्टागुडम रेल परियोजना लाया जाता है तो भविष्य में इसका जबर्दस्त विरोध में होगा और बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
श्री कुंजाम ने कहा कि, केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा बस्तर में दो परियोजना को लाया जा रहा है। इसमें बोधघाट परियोजना और कोत्तागुड़म-किरन्दुल रेल परियोजना शामिल है। इन दोनों परियोजनाओं से बस्तरवासियों का कोई विकास नहीं होगा। लेकिन इन दोनों परियोजनाओं को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हित में लाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इन दोनों परियोजनाओं के बनने से बस्तर का मूल स्वरूप खत्म होगा। साथ ही डेमोक्रेसी भी बदल जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रभावितों से चर्चा करने के बाद इन दोनों परियोजनाओं के विरोध में बड़ा आंदोलन किया जाएगा। प्रेसवार्ता में पिछड़ा वर्ग मोर्चा के संभागीय अध्यक्ष तरुण ठाकुर,हीरमो मंडावी,बोधघाट परियोजना प्रभावित क्षेत्र के मंगलू मांझी और संतोष यादव सम्मलित थे।
बोधघाट परियोजना से आदिवासियों को भूमिहीन करने का षडयंत्र
उन्होंने आगे कहा कि बोधघाट परियोजना से क्षेत्र के 56 गांव डूब जाएंगे। बस्तर के स्थानीय आदिवासियों की कभी बोधघाट की मांग नहीं रही है फिर क्यों सरकार बोधघाट परियोजना को बनाने में तुली हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार का मकसद है कि बोधघाट परियोजना को बनाकर आदिवासियों को भूमिहीन कर सड़क में छोड़ दिया जाए। उन्होंने कहा कि सरकार ने कोत्तागुड़म-किरन्दुल रेल परियोजना को स्वीकृति दे दी है और सर्वे भी शुरू हो चुका है। सुकमा के बाद दंतेवाड़ा में सर्वें चल रहा था, तब वहां के निवासियों ने विरोध किया।
ग्रामीणों की सहमति के बिना सर्वे करना कानून का उल्लघंन
उन्होंने आगे कहा कि, ग्रामीणों की सहमति बिना सर्वें करना कानून का उल्लघंन है। नक्सलवाद के खात्मे को लेकर कहा कि सरकार सुरक्षा केम्पों को बस्तर से नहीं हटाना चाहती इसलिए नक्सलियों से बातचीत को लेकर पहल नहीं की। सभी को पता था कि एक दिन नक्सलवाद खत्म होगा,क्योंकि लिट्टे जैसा संगठन खत्म हो गया।
