खेलों ने बदली बस्तर की तस्वीर: बस्तर ओलंपिक से खेलो इंडिया ट्राइबल गेम्स तक, 4 लाख खिलाड़ियों की भागीदारी

बस्तर ओलंपिक
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बस्तर ओलंपिक सिर्फ खेल प्रतियोगिता नहीं, बल्कि यह जनभागीदारी और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है 

बस्तर में आयोजित बस्तर ओलंपिक और इसके उन्नत संस्करण खेलो इंडिया ट्राइबल गेम्स ने खेलों को विकास, शांति और सामाजिक एकीकरण का मजबूत माध्यम बनाया।

रायपुर। छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार द्वारा बस्तर में खेलों के प्रति जागरूकता और उत्साह बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू हुआ बस्तर ओलंपिक अब एक राष्ट्रीय पहचान बन चुका है। वर्ष 2024 में इसकी शुरुआत और 2025 में "खेलो इंडिया ट्राइबल गेम्स" के रूप में इसका विस्तार न सिर्फ खिलाड़ियों के लिए नए अवसर लेकर आया, बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक शांति और विश्वास बहाली का प्रमुख आधार भी बना।


सांस्कृतिक पहचान ने बढ़ाई जनभागीदारी
पहले संस्करण का मैस्कॉट ‘वन भैंसा-पहाड़ी मैना’ और थीम “करसय ता बस्तर, बरसय ता बस्तर” ने स्थानीय समुदायों के भावनात्मक जुड़ाव को मजबूत किया। इस आकर्षक पहचान के कारण गांव-गांव से खिलाड़ियों और दर्शकों की सहभागिता बढ़ी, जिससे बस्तर ओलंपिक एक जनआंदोलन के रूप में उभरकर सामने आया।


रिकॉर्ड तोड़ भागीदारी
वर्ष 2024 में जहां 1.65 लाख खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया, वहीं 2025 में यह संख्या बढ़कर 3.9 लाख से अधिक पहुंच गई। इसके अलावा 30 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों से 1,200 से अधिक ट्राइबल एथलीट शामिल हुए। महिलाओं और युवतियों की सहभागिता में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 'अनूठा ओलंपिक' कहकर सराहा।


बस्तर विकास में बस्तर ओलंपिक की महत्वपूर्ण भूमिका

सामाजिक एकीकरण: हिंसा से विश्वास की ओर बढ़ता बस्तर

  • आयोजन में आत्मसमर्पित माओवादियों (युवा बात), नक्सल हिंसा के पीड़ितों और दिव्यांगों को साथ खेलने का मौका दिया गया।
  • इससे समुदायों के बीच विश्वास बढ़ा और सामाजिक पुनर्संयोजन मजबूत हुआ।
  • महिलाओं के लिए विशेष श्रेणियों ने उन्हें नई पहचान दी।

युवा सशक्तिकरण: प्रतिभा से तरक्की तक

  • दूरस्थ आदिवासी युवाओं को खेलों में प्रतिभा दिखाने का प्लेटफॉर्म मिला।
  • विजेताओं को नकद पुरस्कार, पहचान और प्रोफेशनल स्पोर्ट्स में आगे बढ़ने का मौका।
  • सकारात्मक माहौल ने युवाओं को नक्सलवाद की राह से दूर किया।

बुनियादी ढांचा विकास: अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएँ

  • धारमपुरा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, इंदिरा प्रियदर्शिनी स्टेडियम सहित कई मैदानों का आधुनिकीकरण।
  • तीरंदाजी, एथलेटिक्स, हॉकी, मलखंब जैसे खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप सुविधाएँ तैयार।
  • खेलों के लिए बेहतर सड़कें, लॉजिस्टिक्स और पब्लिक सर्विसेज में सुधार।

आर्थिक विकास और पर्यटन में बढ़ोतरी

  • आयोजन ने बस्तर की छवि को संघर्ष से विकास की ओर मोड़ा।
  • पर्यटन बढ़ा, स्थानीय व्यवसायों को लाभ मिला।
  • खिलाड़ियों को मिलने वाली इनामी राशि से स्थानीय अर्थव्यवस्था भी मजबूत हुई।

शांति और शासन में विश्वास

  • यह आयोजन सरकार और जनता के बीच विश्वास का पुल बना।
  • बस्तर की कहानी अब संघर्ष से ज्यादा प्रगति और उम्मीद की बन रही है।
  • यह आयोजन सरकार की नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ‘दिल जीतने’ की रणनीति का अहम हिस्सा है।

नक्सली आत्मसमर्पण पर असर: खेलों से नया रास्ता

  • ‘युवा बात’ के रूप में आत्मसमर्पित माओवादी आम खिलाड़ियों के साथ खेलते देखे गए।
  • खेलों ने उन्हें समाज से जोड़ने का सकारात्मक मंच दिया।
  • आत्मविश्वास बढ़ा और हिंसा छोड़ मुख्यधारा में लौटने की प्रेरणा मिली।
  • दिसंबर 2023 से अब तक 2,100 से अधिक माओवादियों के आत्मसमर्पण, सरकारी रणनीति और खेल आधारित एकीकरण का संयुक्त प्रभाव है।

'युवा बात' टीम की भागीदारी
'युवा बात' बस्तर ओलंपिक में भाग लेने वाले सरेंडर कर चुके माओवादियों की टीम को दिया गया नाम है। इस पहल के माध्यम से, छत्तीसगढ़ सरकार हिंसा का रास्ता छोड़ने वालों को समाज की मुख्यधारा में फिर से शामिल होने और खेल के माध्यम से अपनी नई पहचान बनाने का मौका देती है।

बस्तर ओलंपिक (अब खेलो इंडिया ट्राइबल गेम्स) के पहले और दूसरे दोनों संस्करणों में 'युवा बात' टीम की भागीदारी रही है, जहाँ उन्होंने अन्य खिलाड़ियों के साथ मिलकर कई खेलों में हिस्सा लिया। इसने साबित किया है कि खेल बदलाव की ताकत बन सकते हैं, और बस्तर आज उसी बदलाव की नई कहानी लिख रहा है।

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