गोल्ड मेडलिस्ट बनकर चमका किशन: DRG का जवान रहते IED की चपेट में आकर खोया पैर, हौसले से बनाई नई पहचान

बस्तर ओलंपिक की तीरंदाजी का गोल्ड मेडलिस्ट किशन कुमार हप्का
अनिल सामंत- जगदलपुर। कभी-कभी ज़िंदगी किसी मोड़ पर इतना बड़ा दर्द दे जाती है कि, आगे चलना असंभव सा लगता है। पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो टूटते नहीं—वे खुद को फिर से गढ़ते हैं। बीजापुर जिले के भैरमगढ़ ब्लॉक के छोटे से गांव छोटे तुमनार के 27 वर्षीय किशन कुमार हप्का की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
कभी डीआरजी का जांबाज़ जवान रहे किशन की दुनिया 18 जुलाई 2024 को पलभर में बदल गई, जब नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी विस्फोट की चपेट में आकर उनका एक पैर हमेशा के लिए चला गया। दर्द गहरा था, रास्ते धुंधले थे और सपने जैसे बिखरते जा रहे थे। कोई भी सामान्य इंसान शायद जीवनभर इस साये में जी लेता, लेकिन किशन ने एक अलग रास्ता चुना हिम्मत का।
धनुष अब सिर्फ खेल नहीं, अस्तित्व की पुर्नघोषणा थी
वे टूटे, पर बिखरे नहीं। अपनी वीरता की तरह उन्होंने जीवन की इस लड़ाई को भी चुनौती की तरह लिया। शरीर ने साथ छोड़ा, पर दिल में खेल का जुनून और सेवा की वही पवित्र भावना बरकरार रही। बस्तर ओलंपिक में तीरंदाजी का धनुष उठाना उनके लिए सिर्फ खेल नहीं, अपने अस्तित्व की पुनः घोषणा थी। उन्होंने जिला स्तर पर चयनित होकर सीधे संभाग स्तरीय प्रतियोगिता तक पहुंचकर इतिहास रचा और वहीं पहला स्थान हासिल कर सबको बता दिया कि हार केवल सोचती है, जीत सिर्फ कोशिश करती है।

किशन ने छोड़ दी थी उम्मीद
किशन बताते हैं कि, एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने उम्मीद छोड़ दी थी। जीवन जैसे थम गया था। लेकिन उनके भीतर का खिलाड़ी कहता रहा,अब भी बहुत कुछ बाकी है। उन्हीं दिनों उनके कोच दुर्गेश प्रताप सिंह उनके जीवन में एक नए प्रकाश की तरह आए। किशन कहते हैं,कोच दुर्गेश ने मुझे सिर्फ तीरंदाजी नहीं सिखाई। उन्होंने मेरे अंदर यह विश्वास भरा कि अपंगता शरीर की होती है, मन की नहीं।
तुमनार गांव के किशन बस्तर के लिए प्रेरणा बने
आज छोटे तुमनार जैसे दूरस्थ गांव से निकलकर किशन पूरे बस्तर की प्रेरणा बन चुके हैं। उनकी जीत सिर्फ एक पदक नहीं। यह हज़ारों युवाओं के लिए संदेश है कि मुश्किलें चाहे जितनी भी बड़ी हों, हौसला हमेशा उनसे बड़ा होता है।किशन की यह उपलब्धि सिर्फ उनके परिवार की नहीं, बल्कि पूरे बीजापुर जिले की शान है। उनका साहस उन सभी के लिए एक उजला उदाहरण है, जो जीवन की लड़ाई लड़ रहे हैं, कि गिरकर उठना भी जीत का ही एक हिस्सा है।
साहस की वो कहानी, जिसने बस्तर को भावुकता से भर दिया
किशन कुमार हप्का की यात्रा दर्द से शुरू होकर विजय पर खत्म नहीं होती। यह निरंतर प्रयास, मजबूत हौसले और अदम्य इच्छाशक्ति की अंतहीन कहानी है। आईईडी विस्फोट के बाद जीवन ठहर गया था, पर जुनून ने उन्हें दोबारा खड़ा किया। कोच दुर्गेश प्रताप सिंह के मार्गदर्शन में उन्होंने तीरंदाजी को नया जीवन बनाया और संभाग स्तरीय प्रतियोगिता में पहला स्थान जीतकर साबित कर दिया कि जीतने के लिए शरीर नहीं, मन का साहस चाहिए। यह कहानी बस्तर ही नहीं, पूरे प्रदेश के हर युवा के लिए प्रेरणा है।
