ख़ामोश गोलियाँ, बदलता बस्तर: दशकों के संघर्ष के बाद नई सुबह की दस्तक

बस्तर में दशकों की हिंसा के बाद अब शांति की सुबह
अनिल सामंत - जगदलपुर। नक्सल हिंसा से लंबे समय तक जूझने वाले बस्तर संभाग में अब शांति की नई किरण फूट रही है, करीब दो दशक से गोलियों की गूंज और मुठभेड़ों की तपिश झेल चुके इस क्षेत्र में बीते 29 दिनों से एक भी गोली नहीं चली है। यह खामोशी बस्तर के बदलते स्वरूप की गवाही दे रही है। जहां कभी दहशत थी, अब संवाद और आत्मसमर्पण की शुरुआत दिख रही है।
23 सितंबर के बाद से शांत बस्तर
नारायणपुर जिले के फरसबेड़ा-तोयमेटा के जंगलों में 23 सितंबर को आखिरी बड़ी मुठभेड़ हुई थी, इस मुठभेड़ में 2.16 करोड़ रुपये के इनामी केंद्रीय नक्सली सदस्य राजू दादा उर्फ गुड़सा उसेंडी और कोसा दादा उर्फ कादरी सत्यनारायण रेड्डी मारे गए थे। इसके बाद से अब तक बस्तर के किसी भी हिस्से में न तो गोली चली और न ही कोई बड़ी नक्सली वारदात दर्ज हुई।
संवाद और सख्ती की नीति दिखा रही असर
सरकार की नीति संवाद के लिए खुला रास्ता और हिंसा पर सख्ती,अब जमीनी स्तर पर असर दिखा रही है। बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि, ऑपरेशन कभी बंद नहीं होता, लेकिन जो नक्सली आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं, सरकार उनका स्वागत करती है।
वहीं, गृह मंत्री विजय शर्मा ने 1 अक्टूबर को घोषणा की थी कि, सरकार आत्मसमर्पण करने वालों को सेफ कॉरिडोर देगी, उन्हें किसी प्रकार का खतरा नहीं होगा। यह घोषणा अब बस्तर की तस्वीर बदल रही है।
210 नक्सलियों ने छोड़ा हिंसा का रास्ता
आईजी सुंदरराज पी के मुताबिक, हाल ही में 210 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इनमें केंद्रीय समिति के सदस्य रूपेश समेत कई वरिष्ठ कैडर शामिल हैं, सरकार ने इनका स्वागत करते हुए पुनर्वास और सुरक्षित जीवन की सुविधा प्रदान की है।
अब जंगलों में सन्नाटा पसरा है जहां कभी गोलियों की गूंज सुनाई देती थी, वहां आज आत्मसमर्पण के बाद पूर्व नक्सली राहत की सांस ले रहे हैं।
29 दिन की खामोशी की टाइमलाइन
23 सितम्बर: फरसबेड़ा-तोयमेटा जंगलों में बड़ी मुठभेड़, दो शीर्ष नक्सली ढेर।
25 सितम्बर – 10 अक्टूबर: इलाके में लगातार कॉम्बिंग ऑपरेशन, लेकिन कोई गोलीबारी नहीं।
1 अक्टूबर: गृह मंत्री का सेफ कॉरिडोर बयान।
20 अक्टूबर: लगातार 29वें दिन तक बस्तर में शांति कायम।
नया बस्तर - उम्मीदों का इलाका
नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जैसे जिलों में अब धीरे-धीरे शांति लौट रही है, सुरक्षा बल अब भी सतर्क हैं, पर माहौल अब गोलियों से नहीं बल्कि उम्मीदों से भरा हुआ है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली नई जिंदगी की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, और बस्तर पहली बार खुद को खामोश लेकिन जिंदा महसूस कर रहा है।
