बस्तर के बाजारों में पहुंचे डिजाइनर दीये: दीपावली पर ओडिशा के कुम्हार हर साल पहुंचते हैं जगदलपुर

ओडिशा के कुम्हार
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ओडिशा के कुम्हारों के दीये से रोशन होगा बस्तर का दीपोत्सव

20 वर्षो से सीमावर्ती प्रांत ओड़िसा के नबरंगपुर जिले के दर्जनों गांवों के कुम्हार दीपावली के मौके पर जगलपुर में व्यवसाय कर रहे हैं।

अनिल सामंत/जगदलपुर। दीपावली का पर्व नजदीक आते ही बस्तर के बाजारों में रौनक लौट आई है। अब सिर्फ 3 दिन बाद दीपोत्सव पर्व है। जिसके लिए बस्टरवासी दीपावली की तैयारी में जुट गए हैं। हर साल की तरह इस बार भी बस्तर की दीपावाली ओडिशा के कुम्हारों द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीयों से रोशन होगी। बस्तर के स्थानीय कुम्हार जहां अपने पारंपरिक पेशे से दूर हो रहे हैं, वहीं ओडिशा के कुम्हारों में इसका क्रेज आज भी बना है।

ओडिशा राज्य के नवरंगपुर जिले के उमरकोट, डाबुगांव, चारांगा, चलनागुड़ा, पापडाहाण्डी, सिंगसारी और कुमारगुड़ा गांवों से कुम्हार परिवार करीब 50 हजार से 1 लाख से अधिक मिट्टी के दीये और कलाकृतियां लेकर बस्तर पहुंचे हैं। सबसे बुजुर्ग कारीगर बलराम कुम्हार ने बताया कि वे पिछले 20 वर्षों से हर साल दीवाली से पहले बस्तर आकर अपने उत्पाद बेचते हैं। उन्होंने बताया कि दर्जन भर से अधिक कुम्हार 1-2 दिन में 50 हजार से 1 लाख दिए लेकर पहुंचते व है। बस्तर के लोग भी अब ओड़िसा के दीयों को ही प्राथमिकता देने लगे हैं,जिससे ओडिशा के कुम्हारों की आमदनी में बढ़ोतरी हो रही है।


समय के साथ यह परंपरा धीरे-धीरे कम होती जा रही है
बस्तर अंचल में मिट्टी के दीये,कलाकृतियां और पूजा सामग्री बनाने की परंपरा सदियों पुरानी रही है। दशहरे के समापन के बाद ही घरों की साफ-सफाई और सजावट के साथ मिट्टी के दीयों से घरों को सजाने की परंपरा आज भी कायम है,लेकिन बदलते समय के साथ यह परंपरा धीरे-धीरे कम होती जा रही है। बस्तर के कई कुम्हार परिवार अब यह काम छोड़ चुके हैं।

नगरनार में हुआ करता था टेराकोटा
शहर से लगभग 20 किमी दूर नगरनार गांव कभी टेराकोटा कला के लिए प्रसिद्ध था। यहां के कुम्हारों द्वारा बनाई गई मिट्टी की कलाकृतियां देश-विदेश में पहचान बना चुकी थीं। नगरनार में एनएमडीसी स्टील प्लांट बनने के बाद रोजगार के नए अवसर खुले, परंतु इससे पारंपरिक मिट्टी शिल्प को बड़ा झटका लगा। अब वहां के अधिकांश कुम्हारों ने यह काम पूरी तरह से छोड़ दिया है।

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