बस्तर दशहरा के प्रसाद व्यवस्था पर उठे सवाल: जिसे दिया गया ठेका, उसके खिलाफ हिंदूवादी संगठनों ने खोला मोर्चा

विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने जिला प्रशासन को मांग पत्र सौंपा
अनिल सामंत- जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी समेत देश के कुछ अन्य प्रमुख धर्मस्थलों के प्रसाद में कथित रूप से गौमांस और चर्बी की मिलावट की खबरों के बीच अब विश्व प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक बस्तर दशहरा का भी प्रसाद विवादों में घिर गया है। हालांकि बस्तर दशहरा के प्रसाद में मांसाहार की मिलावट जैसी कोई बात अब तक सामने नहीं आई है, मगर प्रसाद निर्माण और उसकी वितरण व्यवस्था की जिम्मेदारी जिस शख्स को दी गई है, उसकी आस्था और धर्म को लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई जा रही है। इसका प्रबल विरोध शुरू हो गया है।
बस्तर दशहरा छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है और यह बस्तर संभाग समेत पूरे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों तथा सर्व हिंदू समुदाय की आस्था से जुड़ा बड़ा पर्व है। बस्तर दशहरा का आयोजन विगत 600 वर्षों से होता आ रहा है। यह बस्तर के लोगों की आस्था, संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। इस पर्व पर देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना, अनुष्ठान और भोग अर्पण अत्यंत श्रद्धा और निष्ठा से संपन्न होते आए हैं। इस वर्ष प्रसाद मिष्ठान्न की निविदा एक ऐसे व्यक्ति को प्राप्त हुई है, जिसके प्रति आदिवासी समुदाय और सर्व सनातनी समाज के बड़े वर्ग में यह भावना है कि, वह हमारे देवी-देवताओं और धार्मिक परंपराओं के प्रति आस्था और सम्मान नहीं रखता। विगत कुछ वर्षों के अनुभवों ने भी इस जन भावना को और प्रबल किया है। इसी वजह से उस व्यक्ति को प्रसाद मिष्ठन्न निर्माण एवं व्यवस्था का ठेका दिए जाने का पुरजोर विरोध शुरू हो गया है।
विहिप के कार्यकर्ताओं ने जिला प्रशासन को सौंपा ज्ञापन
ऐसे व्यक्ति के हाथों में प्रसाद की जिम्मेदारी होने से प्रसाद की पवित्रता और शुद्धता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यह सवाल हिंदूवादी संगठन खड़े कर रहे हैं। इस मसले को लेकर विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने जिला प्रशासन को मांग पत्र सौंपा है। विश्व हिंदू परिषद ने मांगपत्र में कहा है कि बस्तर दशहरे जैसे महान पर्व पर किसी भी प्रकार की लापरवाही अथवा आस्था को ठेस पहुंचाने वाला कार्य स्वीकार्य नहीं होगा। अतः हम जिला प्रशासन से आग्रह करते हैं कि उक्त निविदा को निरस्त कर इसे ऐसे व्यक्ति या संस्था को दिया जाए जो परंपरा, आस्था और श्रद्धा का पूर्ण सम्मान करता हो।
बस्तर दशहरा केवल उत्सव अस्मिता, श्रद्धा का प्रतीक
विहिप के पदाधिकारियो ने कहा है बस्तर दशहरा केवल उत्सव नहीं,बल्कि यह हमारी अस्मिता, श्रद्धा और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रतीक भी है। इसकी पवित्रता और गरिमा बनाए रखना प्रशासन और समाज, दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है। विहिप नेताओं ने इस मुद्दे को बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष एवं बस्तर सांसद महेश कश्यप के समक्ष भी रखा है। इस पर कश्यप ने विहिप के लोगों को भरोसा दिलाया कि वे यह इसे बस्तर दशहरा समिति में उठाएंगे। ज्ञात हो कि बस्तर सांसद परम सनातनी नेता माने जाते हैं और सनातन एवं आदिवासी परंपराओं, प्रथाओं, पूजा प्रथा के संरक्षण के लिए और कन्वर्जन के खिलाफ सदैव मुखर रहे हैं। अब देखना होगा कि बस्तर दशहरा के प्रसाद की पवित्रता एवं शुद्धता को लेकर वे क्या कदम उठाते हैं।
