बस्तर दशहरा उत्सव: महाराजा भंजदेव के विवाह के बाद उठा रथारूढ़ विवाद

बस्तर दशहरा
जगदलपुर। बस्तर के सर्वाधिक लोकप्रिय महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव, महारानी वेदवती के साथ ऐतिहासिक दशहरा में रथारूढ़ होते रहे। 1965 में अंतिम बार महाराजा और महारानी रथ में सवार हुए थे। 25 मार्च 1966 को राजमहल गोलीकांड में प्रवीर की हत्या कर दी गई। उसके बाद उसी साल दशहरा में महारानी वेदवती रथारूढ़ हुई। जो बस्तर रियासत के काकतीय राजपरिवार का अंतिम बार रथ में सवार होने का प्रमाण है। शासन के आदेश से दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी लल्लु प्रसाद पाढ़ी देवी दंतेश्वरी के छत्र को लेकर रथ में सवार होते रहे। अब उनका पुत्र इस परंपरा को निभा रहे हैं। 6 दशक के बाद बस्तर के वर्तमान महाराजा कमलचंद भंजदेव, जिनका विवाह इसी वर्ष हुआ है। उनको रथ में सवार करने की मांग पहली बार उठी है। वह भी दशहरा के विभिन्न रस्मों में अहम भूमिका निभाने वाले मांझी, चालकी, मेंबर, मेंबरिन, पटेल और कुछ समाजों के द्वारा जिला प्रशासन से यह मांग करते हुए लिखित में पत्र सौंपा गया है।
सांसद महेश कश्यप राजपरिवार के करीबियों में शामिल हैं। इसलिए उन्होंने दशहरा समिति के अध्यक्ष होने के नाते पत्र को कलेक्टर को सौंपा है। जिसमें उन्होंने भी बंद हो चुकी इस परंपरा को फिर से जारी रख महाराजा को पत्नी के साथ रथ में सवार होने का समर्थन किया है। यह मामला सामने आने के बाद आरोप प्रत्यारोप तथा समर्थन एवं विरोध के स्वर बुलंद होने लगे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज और शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष सुशील मौर्य समेत कांग्रेसियों ने इसका कड़ा विरोध किया हैं। उन्होंने लोकतंत्र में बंद हो चुके राजतंत्र को फिर से लाने को जनहित में गलत बताया है। जिसका कड़ा विरोध करने का ऐलान भी किया गया है। वहीं भाजपाइयों ने इस पर चुप्पी साधी है। हालांकि महाराजा कमलचंद भंजदेव भाजपा नेता है। जिन्हें केंद्रीय नेताओं के नजदीकी होने के चलते एनएसजी की सुरक्षा मिली हुई है। उनकी माता कृष्णाकुमारी देवी गुजरात से है।
महारानी अंतिम शासक रथारूढ़ हुई
लेखक और जानकार रूद्र नारायण पाणीग्राही ने बताया कि, 1965 तक महाराजा प्रवीर और महारानी वेदवती रथ में सवार होकर दशहरा में जनता को दर्शन देते थे। महाराजा के हत्या के बाद 1966 के दशहरा में महारानी वेदवती अंतिम बार रथ में सवार हुई थी। उसके बाद पुजारी देवी दंतेश्वरी के छत्र के साथ रथारूढ़ होते आए हैं।
कमलचंद के पिता और दादा रथ में नहीं बैठे
बस्तर रियासत में प्रवीरचंद और विजयचंद दो भाई और दो बहनें थी। प्रवीरचंद देवी दंतेश्वरी के माटी पुजारी माने जाते थे। वे आदिवासियों के मसीहा भी थे। वहीं उनके छोटे भाई विजयत्चद को राजनीतिक प्रयासों के चलते महाराजा की पदवी देने की कोशिश की गई थी, जो बाद में लोहडीगुड़ा गोलीकांड के रूप में घटित हुई। बहरहाल प्रवीर के बाद वर्तमान महाराजा कमलचंद के पिता भरत चंद मंजदेव और दादा विजय चंद मंजदेव स्थ में सवार नहीं हुए है। 60 साल बाद यह मामला कमलचंद की शादी के बाद उठा है।
