विकास की राह पर बस्तर: बदलाव की नई कहानी- शिक्षा, सुरक्षा, सड़क, स्वास्थ्य और बिजली ने बदली तस्वीर

सीएम विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बस्तर का बदल रहा चेहरा
रायपुर। बस्तर आज बदलाव की नई कहानी लिख रहा है। कभी नक्सल हिंसा, टूटी सड़कों और सीमित सुविधाओं से घिरा यह इलाका अब उम्मीदों से भरा नज़र आने लगा है। सुरक्षा में सुधार, बच्चों के स्कूल लौटने की खुशी, गांवों में हर तरफ जलती बिजली की रोशनी और स्वास्थ्य सेवाओं की हर कोने तक पहुंच- इन सबने बस्तर के जीवन को धीरे-धीरे लेकिन मजबूती से बदलना शुरू कर दिया है।

नक्सलवाद का खात्मा और सुरक्षा का मजबूत नेटवर्क
बस्तर के कई इलाकों में नक्सल गतिविधियों में कमी आई है, जिससे सामान्य जीवन पटरी पर लौटने लगा है। सुरक्षा बलों की उपस्थिति उन गांवों में भी दिख रही है जहाँ पहले सरकारी दखल मुश्किल था। नए सुरक्षा कैंप खुलने से ग्रामीणों को सुरक्षा का अहसास मिला है। कई नक्सली आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौट रहे हैं और उनके पुनर्वास के लिए सरकार ने आर्थिक सहायता, प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए हैं। सुरक्षा-विकास का संयुक्त मॉडल बस्तर के सामाजिक ढांचे को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

अंदरूनी इलाकों में खुले कैंप
दंतेवाड़ा, नारायणपुर, सुकमा और बीजापुर के कई गांव अब सुरक्षा कैंपों से जुड़ गए हैं। उदाहरण के तौर पर, कांकेर के ताड़ोकी और नारायणपुर के अबूझमाड़ क्षेत्र में नए कैंप खुलने के बाद ग्रामीण पहली बार रात में सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सुकमा के किस्टाराम जैसे कुख्यात नक्सली क्षेत्रों में पुलिस की "बस्तर फाइटर्स" टीम तैनात होने से हमलों में कमी आई है। कई इलाकों में नक्सलियों की धमकियों के कारण बंद रहने वाले बाजार अब नियमित रूप से लगने लगे हैं, जिससे स्थानीय व्यापार में तेजी आई है।

शिक्षा हुई सुलभ, बंद स्कूलों में फिर गूंजी बच्चों की आवाज़
संघर्ष के दौरान बंद हुए कई स्कूल अब फिर से शुरू हो गए हैं। जिन गाँवों में पहली बार बच्चे स्कूल पहुँचे, वहाँ पढ़ाई-लिखाई के माहौल ने एक नई ऊर्जा पैदा की है। नए स्कूल भवन बनाए गए हैं, शिक्षकों की नियुक्ति तेज हुई है और दूरस्थ इलाकों में आवासीय विद्यालय स्थापित किए गए हैं, जिससे आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल रही है। शिक्षा का यह विस्तार बस्तर के भविष्य को नई दिशा दे रहा है।

जांगला, गंगालूर और पामेड़ में खुले स्कूल
बीजापुर के जांगला, गंगालूर और पामेड़ जैसे गांवों में संघर्ष के दौरान बंद हुए प्राथमिक स्कूलों को फिर से खोला गया, जहाँ अब रोजाना 80–100 बच्चे उपस्थित रहते हैं।
सुकमा के मिनपा और किस्टाराम जैसे अति-संवेदनशील गांवों में पहली बार आवासीय विद्यालय शुरू हुए हैं, जिससे आदिवासी बच्चों को बेहतर पढ़ाई का अवसर मिल रहा है।
पहाड़ी गांवों में शिक्षकों की अनुपस्थिति की समस्या दूर करने के लिए मोबाइल टीचिंग यूनिट शुरू की गई, जो नियमित रूप से गांवों में जाकर क्लास ले रही है।

सड़कें बदल रहीं विकास की तस्वीर
बस्तर की कनेक्टिविटी में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। कई दूरस्थ गांव अब सड़क नेटवर्क से जुड़े हैं, जिससे एंबुलेंस, स्कूल वाहन और बाजार तक पहुंच आसान हो गई है। नए पुल, स्टेट हाईवे और ग्रामीण सड़कों ने लोगों की आवाजाही में क्रांतिकारी सुधार किया है। साथ ही, रेल परियोजनाओं पर काम तेज होने से बस्तर अब देश के बड़े शहरों से बेहतर तरीके से जुड़ने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। सड़कों से जुड़ाव ने गांवों की अर्थव्यवस्था और रोजगार के अवसरों पर भी सीधा असर डाला है।
माड़ में बिछा सड़कों का जाल
अंतरराज्यीय बार्डर से सटे माड़ क्षेत्र तक सड़क पहुँचने से पहले 3–4 दिन की पैदल यात्रा करने वाले ग्रामीण अब कुछ ही घंटों में जिला मुख्यालय तक पहुँच जाते हैं। दंतेवाड़ा के नकुलनार से बारसूर, और सुकमा के गोंगला से जगरगुंडा तक बनी नई सड़कों ने इलाके को सीधे जोड़ दिया है, जो पहले देश के सबसे कटे हुए क्षेत्रों में गिने जाते थे। सड़कों के तैयार होने के बाद अब पहली बार एंबुलेंस, स्कूल बस और राशन वाहन दूरस्थ गांवों तक पहुँच रहे हैं।

स्वास्थ्य सुविधाओं में बड़ा सुधार, दूरस्थ इलाकों तक पहुंची सेवाएँ
स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएँ बढ़ाई गई हैं। मोबाइल मेडिकल यूनिट अब पहाड़ी और जंगलों के भीतर बसे गांवों तक इलाज पहुँचा रही हैं। मलेरिया-नियंत्रण अभियान, महिला स्वास्थ्य कार्यक्रम और बच्चों के लिए पोषण मिशन से स्वास्थ्य व्यवस्था में नए सुधार दिखाई दे रहे हैं। जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ सेवाएँ बढ़ने से गंभीर मरीजों को भी अब बस्तर में ही बेहतर उपचार मिल पा रहा है।
बीजापुर के तर्रेम, उसूर और भोपालपट्टनम के जंगलों में मोबाइल मेडिकल यूनिट्स के माध्यम से गर्भवती महिलाओं की रेगुलर जांच हो रही है। मलेरिया-नियंत्रण अभियान के चलते कांकेर और कोंडागांव जिले में पॉजिटिव केसों में बड़ी कमी दर्ज की गई। जगदलपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कई नई मशीनें और स्पेशलिस्ट डॉक्टर नियुक्त होने से गंभीर मरीजों को बाहर नहीं जाना पड़ रहा।

बिजली ने बदली गांवों की पहचान, दशकों बाद जली पहली लाइट
बस्तर के कई गांव जहां कभी बिजली का नाम-निशान तक नहीं था, वहां अब पहली बार रोशनी पहुँची है। लाइन विस्तार, ट्रांसफॉर्मर स्थापना और सोलर माइक्रो-ग्रिड के माध्यम से दूरदराज इलाकों को ऊर्जा उपलब्ध कराई जा रही है। बिजली आने से बच्चों की पढ़ाई, छोटे व्यवसाय, सिंचाई और सुरक्षा के हालात में बड़ा बदलाव आया है। जिन गांवों में दशकों बाद पहली लाइट जली, वे आज पूरी तरह बदल चुके हैं। सुकमा के दोरनापाल, कोंटा और पुसवाड़ा के कई गांवों में पहली बार बिजली के खंभे लगाए गए और घरों में बल्ब जले।

अबूझमाड़ में सोलर माइक्रो-ग्रिड लेकर आई क्रांति
नारायणपुर के अबूझमाड़ क्षेत्र में बने सोलर माइक्रो-ग्रिड से आदिवासी घरों में LED लाइट, मोबाइल चार्जिंग और छोटे कारोबार शुरू होने लगे हैं। कई गांवों में स्कूलों और आंगनबाड़ियों में बिजली पहुंचने से बच्चों को अब पंखे और रात की पढ़ाई दोनों सुविधाएँ मिल रही हैं।

आर्थिक विकास और निवेश से बढ़ रही हैं उम्मीदें
सरकार द्वारा उद्योग, पर्यटन, कृषि और वन उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयासों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। महिला स्व-सहायता समूहों को रोजगार आधारित कार्यों से जोड़ा गया है। तेंदूपत्ता और लघु वनोपज की दरें बढ़ने से आदिवासी परिवारों की आय में भी सुधार आया है। नए निवेश और परियोजनाओं ने युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा किए हैं।
