सास की विरासत को सहेजती बहू: अमिताभ से रानी तक विशाल कठपुतलियों ने राज्योत्सव में बिखेरा जादू

राज्योत्सव में विशाल कठपुतलियों के साथ निदेशक किरण मोइत्रा
कुश अग्रवाल - बलौदाबाजार। छत्तीसगढ़ राज्योत्सव के मौके पर बलौदाबाजार जिला स्तरीय उत्सव में इस बार कुछ अलग और मनमोहक देखने को मिला। यहां सजीं विशाल आकार की कठपुतलियाँ- जिनमें अमिताभ बच्चन, राजा और रानी के रूप विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इन जीवंत कठपुतलियों ने पूरे उत्सव स्थल का माहौल रंगीन और जीवंत बना दिया है जहाँ बच्चे, युवा, महिलाएं और बुजुर्ग सभी इन कठपुतलियों के साथ तस्वीरें और सेल्फी लेने में व्यस्त नजर आ रहे हैं।
सासू माँ की यादों से जुड़ी विरासत
कठपुतली एवं नाट्य कला मंच, बिलासपुर की निदेशक किरण मोइत्रा ने बताया कि इन कठपुतलियों को उन्होंने रजत महोत्सव की थीम के अनुरूप सजाया है। उन्होंने कहा, 'पहले यह कार्य मेरी सासू माँ किया करती थीं, लेकिन अब उनके निधन के बाद मैं उनकी विरासत को आगे बढ़ा रही हूं।' साथ ही किरण ने बताया कि वे पिछले 25 वर्षों से इस कला को सहेज रही हैं, और हर बार नई-नई थीम पर कठपुतलियाँ तैयार करती हैं।
बलौदाबाजार में आयोजित जिला स्तरीय राज्योत्सव में विशाल आकार की कठपुतलियाँ आकर्षण का केंद्र बनीं। बिलासपुर की कलाकार किरण मोइत्रा ने सास की विरासत को आगे बढ़ाते हुए इस कला से सबका दिल जीत लिया. @BalodaBazarDist #Chhattisgarh #Rajyosatv @BilaspurDist pic.twitter.com/0vN3zRFSJj
— Haribhoomi (@Haribhoomi95271) November 4, 2025
परंपरा को सहेजने की जिद
निदेशक किरण मोइत्रा ने बताया कि कठपुतली निर्माण एक खर्चीला और मेहनतभरा कार्य है, फिर भी वे इस लोककला को जीवित रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने राज्य सरकार से इस पारंपरिक कला के संरक्षण और प्रोत्साहन की मांग की है ताकि नई पीढ़ी भी इससे जुड़ सके।
विदेशी मंचों से भी आमंत्रण
किरण मोइत्रा ने बताया कि उनके कठपुतली शो को विदेशों से भी आमंत्रण मिलता है, परंतु कठपुतलियाँ भारी होने और परिवहन में अधिक खर्च आने के कारण वे अब तक विदेश नहीं जा पाई हैं, उन्होंने कहा कि अगर सरकार की मदद मिले तो छत्तीसगढ़ की यह लोककला अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बना सकती है।
कला और संस्कृति का सुंदर संगम
राज्योत्सव स्थल पर सजी ये विशाल कठपुतलियाँ न केवल लोगों के आकर्षण का केंद्र बनीं, बल्कि उन्होंने यह भी साबित किया कि छत्तीसगढ़ की परंपराएं आज भी जीवित हैं। सास की विरासत और बहू की निष्ठा का यह संगम राज्योत्सव में कला, संस्कृति और भावनाओं की सुंदर झलक बन गया।
