महिलाओं ने सीखी मखाना खेती की तकनीक: प्रति एकड़ 80 हजार तक का होगा लाभ, स्वरोजगार की मिली नई राह

महिलाओं ने सीखी मखाना खेती की तकनीक
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मखाना फसल उत्पादन प्रशिक्षण 

बालोद जिले में महिला स्व सहायता समूह को मखाना खेती का प्रशिक्षण दिया गया। विशेषज्ञों ने उत्पादन प्रक्रिया और लाभकारी तकनीकों की जानकारी साझा की।

गोपी कश्यप - नगरी। छत्तीसगढ़ के नगरी में ग्राम खुनंदनी के जय मां विंध्यवासिनी स्व सहायता समूह की महिलाओं ने बुधवार मखाना की खेती का प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह प्रशिक्षण दाऊ ओंकार सिंह ठाकुर के तालाब में आयोजित किया गया। जिसमें इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. गजेंद्र चंद्राकर के तकनीकी मार्गदर्शन तथा पीएचडी शोधार्थी एकानंद ढीमर (कीट विज्ञान विभाग) ने महिलाओं को मखाना उत्पादन की संपूर्ण प्रक्रिया समझाई।

उल्लेखनीय है कि, जनवरी 2024 में एकानंद ढीमर ने तालाब की सफाई और समतलीकरण कराकर बालोद अंचल में मखाना की खेती की शुरुआत की थी, जो अब पककर तैयार है और बीज निकालने की प्रक्रिया चल रही है। उनका उद्देश्य इस खेती को क्षेत्र में प्रसारित कर किसानों और महिला स्व सहायता समूहों को स्वरोजगार से जोड़ना है।

महिलाएं भी करेंगी मखाने की खेती
प्रशिक्षण के दौरान महिलाओं को भूमि चयन से लेकर बीज निकालने व प्रसंस्करण तक की जानकारी दी गई। साथ ही फसल पकने की स्थिति, बीज की गुणवत्ता और पौधे की बनावट के बारे में विशेष जानकारी साझा की गई। इस अवसर पर महिलाओं ने अपने गांव के तालाबों में मखाना की खेती करने की इच्छा जताई।


80 हजार का मिल सकता है लाभ
एकानंद ढीमर ने बताया कि, मखाना की रोपाई दिसंबर से फरवरी माह तक की जाती है, जिसमें 1.5-2 फीट पानी की आवश्यकता होती है। प्रति एकड़ 8-10 क्विंटल उत्पादन से किसानों को लगभग 80 हजार का शुद्ध लाभ मिल सकता है। दाऊ ओंकार सिंह ठाकुर ने भी अपने अन्य तालाबों और खेतों में मखाना की खेती करने की घोषणा की।

ये रहे उपस्थित
प्रशिक्षण कार्यक्रम में मखाना एक्सपर्ट संजय नामदेव, शिवप्रसाद, डॉ. योगेन्द्र चंदेल (पीएचडी, सब्जी विज्ञान विभाग) सहित ग्राम के कई उन्नतशील कृषक उपस्थित रहे।

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