बिहार चुनाव परिणाम: मुस्लिम सियासत में बदलाव की दस्तक, ओवैसी का उदय और राजद के MY समीकरण पर संकट!

मुस्लिम सियासत में बदलाव की दस्तक, ओवैसी का उदय और राजद के MY समीकरण पर संकट!
X

इस बार मुस्लिम वोट पूरी तरह से राजद के पाले में नहीं रहा, जिसके कारण पार्टी को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।

बिहार चुनाव 2025 में असदुद्दीन ओवैसी का उदय मुस्लिम राजनीति में एक बदलाव लाया है, विशेष रूप से सीमांचल में पांच सीटें जीतकर। इसने RJD के पारंपरिक MY समीकरण को कमजोर किया है।

लखनऊ डेस्क : बिहार चुनाव के नतीजों ने राष्ट्रीय जनता दल के पारंपरिक मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस बार मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से राजद के पाले में नहीं रहा, जिसके कारण पार्टी को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। माना जा रहा है कि एक बड़े वर्ग ने अब नए विकल्पों की तलाश शुरू कर दी है, जिससे वोट का बिखराव हुआ है और यह समीकरण कमजोर पड़ा है।

AIMIM ने 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से लगभग सभी (14-20) सीमांचल क्षेत्र में केंद्रित थे। इन उम्मीदवारों ने सीधे तौर पर महागठबंधन के वोटों में कटौती की, जिससे कम से कम आधा दर्जन सीटों पर राजद और कांग्रेस के प्रत्याशी बहुत कम अंतर से हारे और NDA को सीधा फायदा हुआ।

असदुद्दीन ओवैसी की धमक - सीमांचल में पकड़ मजबूत

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराकर मुस्लिम सियासत का एक नया चेहरा प्रस्तुत किया है। विशेष रूप से सीमांचल क्षेत्र में उनकी पार्टी ने कई सीटें जीती हैं, जो यह दिखाता है कि मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा अब पारंपरिक पार्टियों से हटकर ओवैसी के नेतृत्व पर भरोसा कर रहा है। 2020 के विधानसभा चुनाव में, AIMIM ने पांच सीटों (अमौर, कोचाधामन, बहादुरगंज, जोकीहाट, बायसी) पर जीत हासिल करके सबको चौंका दिया था, जबकि पिछली बार यानी 2015 के चुनाव में पार्टी का खाता भी नहीं खुला था।

इस ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद, 2022 में उसके चार विधायक राजद में शामिल हो गए थे, जिसने दोनों पार्टियों के बीच राजनीतिक तनाव बढ़ाया।

नए नेतृत्व की तलाश और राजद की रणनीति पर सवाल

चुनाव परिणाम से स्पष्ट है कि मुस्लिम मतदाता अब किसी एक पार्टी के प्रति बंधे रहने के बजाय क्षेत्रीय प्रभाव और नेतृत्व के आधार पर वोट दे रहे हैं। ओवैसी के उदय ने राजद पर दबाव बढ़ा दिया है कि वह अपने मुस्लिम नेतृत्व को मजबूत करे और इस समुदाय को केवल वोट बैंक न समझे।

यह परिणाम राजद की मुस्लिम मतदाताओं को लेकर अपनाई गई रणनीति पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। ओवैसी की पार्टी ने खासकर किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जिलों की मुस्लिम बहुल सीटों पर अपने मजबूत उम्मीदवार उतारे थे, जहाँ उन्होंने राजद और कांग्रेस के वोटबैंक में बड़ा हिस्सा ले लिया।

उदाहरण के लिए, कोचाधामन सीट पर AIMIM प्रत्याशी ने राजद के उम्मीदवार को 20,000 से अधिक वोटों के भारी अंतर से हराकर, यह दिखाया कि सीमांचल में पार्टी की जड़ें अब गहरी हो चुकी हैं।

कांग्रेस की निराशाजनक प्रदर्शन ने भी बढ़ाया समीकरण का संकट

राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन भी इस चुनाव में काफी निराशाजनक रहा। कांग्रेस कई मुस्लिम बहुल सीटों पर अपनी छाप छोड़ने में विफल रही, जिससे यह संदेश गया कि महागठबंधन मुस्लिम हितों की रक्षा करने में सक्षम नहीं है।

कांग्रेस की कमजोरी ने भी अप्रत्यक्ष रूप से AIMIM जैसे दलों को जगह बनाने का अवसर दिया। AIMIM ने जिन पांच सीटों पर जीत दर्ज की, वहा से RJD कांग्रेस के उम्मीदवार दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे, जिससे यह साबित हुआ कि ओवैसी की पार्टी ने सीधे तौर पर महागठबंधन के प्रत्याशियों की हार सुनिश्चित की। 2020 के चुनावों में, ओवैसी ने राजद पर "वोट कटवा" होने के आरोपों को खारिज किया था और अपने वोट शेयर को लगभग 1.3 प्रतिशत तक ले जाकर अपनी राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन किया था।

भाजपा की चुप्पी और वोटों के ध्रुवीकरण का असर

इन चुनावी नतीजों ने यह भी दर्शाया कि भारतीय जनता पार्टी ने मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण पर बिना कोई सीधा बयान दिए, अप्रत्यक्ष रूप से फायदा उठाया। मुस्लिम वोटों के बंटवारे ने गैर-मुस्लिम वोटों को एकजुट करने में मदद की, जिसका सीधा लाभ NDA को मिला।

इससे स्पष्ट होता है कि बिहार की मुस्लिम राजनीति एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जहा पारंपरिक निष्ठाए बदल रही हैं और नए राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं। 2020 के चुनाव में, AIMIM ने 20 सीटों पर चुनाव लड़कर 5 पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 2025 के चुनाव में AIMIM ने कुल 25 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, जो यह दर्शाता है कि पार्टी ने अपनी पहुच बढ़ाने की कोशिश की।

ओवैसी के आक्रामक प्रचार ने मुस्लिम मतदाताओं को महागठबंधन से दूर कर दिया, जिससे RJD-कांग्रेस के लगभग 6 से 8 संभावित विजेता प्रत्याशी सिर्फ कुछ हज़ार वोटों के अंतर से हार गए।

विधानसभा में ऐतिहासिक रूप से सबसे कम मुस्लिम प्रतिनिधित्व

​बिहार चुनाव 2025 के परिणामों ने राज्य विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व के मामले में एक नया, रिकॉर्ड बनाया है। बिहार में अब तक के हुए चुनावों में, इस बार विधानसभा में सबसे कम मुस्लिम प्रतिनिधित्व होगा। पिछली बार (2020) में 19 मुस्लिम विधायक थे, जबकि 2015 में यह संख्या 24 थी।

इससे पहले 2010 में 19 और 2005 के चुनाव में 16 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। इस बार, NDA की ओर से जीतने वाले एकमात्र मुस्लिम विधायक जदयू के जमा खान हैं।

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story