बिहार चुनाव परिणाम 2025: छोटी पार्टियों के लिए बड़ा इम्तिहान, पढ़िए विस्तृत रिपोर्ट

इन परिणामों का सीधा असर आने वाले वर्षों में बिहार के राजनीतिक समीकरणों पर पड़ेगा।
पटना डेस्क : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों का दिन कई छोटी पार्टियों और उनके नेताओं के लिए सियासी वजूद का सबसे बड़ा इम्तिहान बन गया है। आज की मतगणना से यह साफ हो जाएगा कि ये नेता अपने-अपने वोट बैंक को साधने में कितने सफल रहे हैं और राज्य की राजनीति में उनका कद कितना बढ़ा है। इन परिणामों का सीधा असर आने वाले वर्षों में बिहार के राजनीतिक समीकरणों पर पड़ेगा।
चिराग पासवान: सियासी वारिस की चुनौती और लोजपा का भविष्य
पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के लिए यह चुनाव सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती है, क्योंकि उन्हें अपने पिता की विरासत को साबित करना है। एनडीए गठबंधन में 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही चिराग की पार्टी का प्रदर्शन ही तय करेगा कि वह खुद को एक बड़ा क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित कर पाते हैं या नहीं। उनकी पार्टी के उम्मीदवारों की जीत दलित और युवा वोटरों पर उनकी पकड़ को दर्शाएगी। लोकसभा चुनाव 2024 में शानदार प्रदर्शन के बाद, इन विधानसभा परिणामों पर सबकी नजर है, जो चिराग के राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करेंगे। कमजोर प्रदर्शन उन्हें एनडीए के भीतर दबाव में ला सकता है।
हालांकि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को एनडीए से अलग कर अकेले चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में चिराग पासवान ने "बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट" का नारा दिया और उनका मुख्य लक्ष्य मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (JDU) को सत्ता से हटाना था।
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की LJP ने कुल 243 सीटों में से 135 से 140 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी को बेहद निराशाजनक परिणाम मिला और वह केवल 1 सीट (बेगूसराय की मटिहानी सीट) पर ही जीत दर्ज कर पाई। हालांकि, उनका वोट शेयर लगभग 6% रहा, जिसने नतीजों पर बड़ा असर डाला।
मुकेश सहनी: 'सन ऑफ मल्लाह' का राजनीतिक कद और डिप्टी सीएम की दावेदारी
महागठबंधन में शामिल विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के मुखिया मुकेश सहनी के लिए इन नतीजों का विशेष महत्व है क्योंकि वह खुद को उपमुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे। सहनी की पार्टी ने इस बार 9 सीटों पर चुनाव लड़ा है। उनके उम्मीदवारों का प्रदर्शन यह स्पष्ट करेगा कि क्या 'सन ऑफ मल्लाह' का सियासी जादू चला है और वह मल्लाह-निषाद समुदाय के वोटों को मजबूती से महागठबंधन के पाले में लाने में सफल रहे हैं।
यदि VIP उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करती है, तो यह उन्हें बिहार के प्रमुख ओबीसी नेताओं की कतार में मजबूती से खड़ा कर देगा और गठबंधन में उनकी मोलभाव की शक्ति बढ़ जाएगी।
वहीं 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नाटकीय रूप से अपना पाला बदला था। शुरुआत में वह राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा थे, लेकिन सीट बंटवारे को लेकर असहमति के कारण वह महागठबंधन से बाहर निकल गए। इसके बाद, मुकेश सहनी NDA में शामिल हो गए।
एनडीए में शामिल होने के बाद, भारतीय जनता पार्टी ने अपने कोटे से VIP को चुनाव लड़ने के लिए कुल 11 विधानसभा सीटें दी थीं। VIP ने इन 11 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, और पार्टी को 4 सीटों पर जीत हासिल हुई। हालांकि, मुकेश सहनी खुद चुनाव हार गए थे। पूरे राज्य में VIP का वोट प्रतिशत लगभग 1.52 प्रतिशत रहा था, जिसने गठबंधन की जीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह प्रदर्शन 'सन ऑफ मल्लाह' कहे जाने वाले मुकेश सहनी के लिए एक शुरुआती राजनीतिक बढ़त थी, जिसने उन्हें बिहार की राजनीति में एक प्रमुख 'निषाद' नेता के रूप में स्थापित किया।
जीतन राम मांझी: हम पार्टी (HAM) का संघर्ष और महादलितों का विश्वास
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (हम) पार्टी एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और उनका फोकस महादलित वोटों पर है। 'हम' पार्टी इस बार 6 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। मांझी ने इन सीटों पर अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाई है। मांझी हमेशा से दलितों और महादलितों के बीच अपनी पैठ बनाए रखने का दावा करते रहे हैं। ये चुनाव परिणाम बताएंगे कि मांझी अपनी पारंपरिक सीटों पर जीत दर्ज करके गठबंधन में अपना मोलभाव कितना मजबूत रख पाते हैं और महादलितों का विश्वास उन पर कितना बरकरार है। इन नतीजों से उन्हें भविष्य में मंत्रिमंडल में बेहतर हिस्सा मिलने की उम्मीद होगी।
अगर बात 2020 के विधानसभा चुनाव की करें तो पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) ने 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव NDA के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में लड़ा था। मांझी महागठबंधन से अलग होकर एनडीए में शामिल हुए थे। NDA में उन्हें जनता दल (यूनाइटेड) के कोटे से कुल 7 विधानसभा सीटें मिली थीं, जिन पर 'हम' ने अपने उम्मीदवार उतारे थे।
पार्टी ने इन 7 सीटों में से 4 सीटों पर जीत दर्ज करके गठबंधन की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। मांझी खुद इमामगंज विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इस जीत ने उन्हें बिहार में महादलित वोट बैंक का एक विश्वसनीय चेहरा बनाए रखा और उन्हें नीतीश सरकार में मंत्री पद भी मिला।
उपेंद्र कुशवाहा: रालोमो (RLM) का जनाधार और कुशवाहा वोट बैंक की एकजुटता
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा भी एनडीए के साथ हैं और उनकी पार्टी 6 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उनका लक्ष्य लव-कुश समीकरण (कुर्मी-कोइरी) में अपनी हिस्सेदारी मजबूत करना है। कुशवाहा कोइरी (कुशवाहा) समुदाय के वोटों को साधने की राजनीति करते हैं। उनके प्रदर्शन से यह स्पष्ट होगा कि कुशवाहा समुदाय का वोट एनडीए के पक्ष में कितना एकजुट हो पाया है, और क्या वह इस समुदाय के बीच एक निर्विवाद नेता के रूप में उभरे हैं।
इन नतीजों से यह तय होगा कि गठबंधन में उनका राजनीतिक प्रभाव कितना मजबूत होता है और क्या वह भविष्य में अपनी पार्टी को एक बड़ी ताकत बना सकते हैं।
उपेंद्र कुशवाहा ने 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के मुखिया के रूप में लड़ा था। इस चुनाव में उनकी पार्टी न तो NDA में थी और न ही महागठबंधन में। उपेंद्र कुशवाहा ने इस चुनाव में एक तीसरा मोर्चा बनाया था, जिसे ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट (GDSF) नाम दिया गया था।
इस गठबंधन में RLSP के अलावा बहुजन समाज पार्टी (BSP) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) जैसी कई पार्टियां शामिल थीं। कुशवाहा को इस गठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया गया था, जिससे उनकी स्थिति राज्य की राजनीति में एक प्रमुख दावेदार की थी। RLSP ने अपने GDSF गठबंधन के तहत लगभग 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। पार्टी का परिणाम बेहद निराशाजनक रहा और RLSP के हाथ शून्य सीटें लगीं।
खुद उपेंद्र कुशवाहा भी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे और चुनाव हार गए थे, जिससे उनका राजनीतिक कद बुरी तरह प्रभावित हुआ। RLSP की इस करारी हार के बाद, पार्टी का राजनीतिक वजूद लगभग खत्म हो गया और उपेंद्र कुशवाहा को अंततः अपनी पार्टी का जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) में विलय करना पड़ा था।
प्रशांत किशोर का जनसुराज: 'जनता का दल' की पहली परीक्षा
चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज ने सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। यह उनकी राजनीतिक पारी की पहली बड़ी परीक्षा है। जनसुराज किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं है और 'नया बिहार' बनाने के वादे के साथ मैदान में उतरी है। प्रशांत किशोर अपनी पदयात्रा के माध्यम से लोगों के बीच पहुंचे हैं। इन नतीजों से यह पता चलेगा कि प्रशांत किशोर का 'जनता का दल' राज्य की राजनीति में कितना वोट शेयर हासिल करने में सफल रहा है। भले ही सीटों की संख्या कम हो, लेकिन यदि वो अच्छे वोट शेयर प्राप्त करते हैं, तो यह उनके भविष्य की राजनीति की मजबूत नींव रखेगा और साबित करेगा कि बिहार में तीसरे विकल्प की कितनी संभावना है।
