बिहार चुनाव 2025: 1952 से 2020 तक 70 साल मे 17 विधानसभा चुनाव! देखिए बिहार चुनाव का 'सफरनामा'

Bihar election 2025
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आज़ादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनाव से लेकर 2020 तक, बिहार ने 17 विधानसभा चुनाव देखे हैं।

1952 से 2020 तक बिहार ने 17 विधानसभा चुनाव देखे हैं- 21 दिन से लेकर एक दिन वाले मतदान तक। जानिए कब-कब कितने चरणों में बिहार में चुनाव हुए और राज्य की राजनीति कैसे बदली।

बिहार डेस्क : भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में बिहार विधानसभा चुनाव हमेशा से अहम रहे हैं। आज़ादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनाव से लेकर 2020 तक, बिहार ने 17 विधानसभा चुनाव देखे हैं। इन सात दशकों में बिहार के चुनाव एक दिन से लेकर 21 दिनों तक चले हैं। समय के साथ मतदान प्रणाली बदली, चरणों की संख्या घटती-बढ़ती रही, और राज्य की राजनीति ने कई ऐतिहासिक मोड़ देखे। आइए जानते हैं बिहार चुनाव के 70 साल के इस सफर को कालक्रम में विस्तार से।

बिहार विधानसभा चुनाव: 1952 से 2020 तक का पूरा टाइमलाइन

आज़ादी से पहले 1937 मे बिहार का चुनाव भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत हुए थे। इस चुनाव के बाद बिहार में पहली निर्वाचित सरकार बनी थी। यह चुनाव आज़ाद भारत के संवैधानिक चुनाव से अलग थे, लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत थी।

1951-1952 मे भारतीय संविधान लागू होने के बाद, देश का पहला आम चुनाव हुआ। यह चुनाव कई चरणों में हुआ था और बिहार विधानसभा का चुनाव भी इसी का हिस्सा था।

दरसल इसको 1951 का चुनाव बताया गया है, क्योंकि मतदान प्रक्रिया 1951 में शुरू हो गई थी। मुख्य परिणाम और सरकार का गठन मार्च 1952 में हुआ, इसलिए इसे अक्सर 1952 का चुनाव कहा जाता है।

1937 में आज़ादी से पहले प्रांतीय चुनाव हुआ। 1951-52 में आज़ादी के बाद का पहला विधानसभा चुनाव हुआ।इसलिए, 1937 और 1952 के बीच कोई अन्य बड़ा आम विधानसभा चुनाव नहीं हुआ, लेकिन 1952 का चुनाव में 1951 में शुरू हुई एक लंबी चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा था।

आजादी के बाद, बिहार में पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था।

1952: पहला विधानसभा चुनाव

स्वतंत्र भारत का पहला विधानसभा चुनाव। मतदान लगभग 21 दिनों तक चला। यह बिहार में लोकतांत्रिक यात्रा की शुरुआत थी।

1957: दूसरा विधानसभा चुनाव

मतदान लगभग 16 दिनों तक चला। उस समय तकनीकी और प्रशासनिक सीमाओं के कारण मतदान कई चरणों में विभाजित नहीं था।

1962: तीसरा विधानसभा चुनाव

4 चरणों में मतदान हुआ।

पहली बार आयोग ने चरणबद्ध चुनाव की प्रणाली अपनाई।

1967: चौथा विधानसभा चुनाव

यह भी 4 चरणों में हुआ।

बिहार की राजनीति में इस दौर से विपक्षी दलों का प्रभाव बढ़ने लगा।

1969: मध्यावधि विधानसभा चुनाव

बिहार में पहली बार 1 चरण में मतदान हुआ।

यह एक मध्यावधि चुनाव था, जो विधानसभा भंग होने के बाद हुआ।

1972: छठा विधानसभा चुनाव

4 चरणों में मतदान संपन्न हुआ।

कांग्रेस अभी भी प्रमुख राजनीतिक शक्ति बनी रही।

1977: सातवां विधानसभा चुनाव

आपातकाल के बाद हुआ यह चुनाव 3 चरणों में संपन्न हुआ।

जनता पार्टी का बड़ा उदय हुआ और कांग्रेस की सत्ता से विदाई।

1980: आठवां विधानसभा चुनाव

एक ही चरण में मतदान हुआ।

यह दूसरा मौका था जब बिहार में चुनाव एक ही दिन में कराए गए।

1985: नौवां विधानसभा चुनाव

इस बार 2 चरणों में मतदान हुआ।

उस समय बिहार विधानसभा में 324 सीटें थीं और राज्य में झारखंड का क्षेत्र भी शामिल था। यह वही साल था जब पहली बार दो चरणों में बिहार चुनाव कराए गए।

1990: दसवां विधानसभा चुनाव

फिर से 1 चरण में मतदान।

यह तीसरी बार था, जब बिहार चुनाव सिंगल फेज में कराए गए। इस चुनाव से लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में सामाजिक न्याय की राजनीति का दौर शुरू हुआ।

1995: ग्यारहवां विधानसभा चुनाव

5 चरणों में मतदान हुआ।

लालू यादव की लोकप्रियता चरम पर थी, लेकिन सुरक्षा और नक्सल क्षेत्रों को लेकर आयोग सतर्क रहा।

2000: बारहवां विधानसभा चुनाव

3 चरणों में मतदान हुआ।

यह झारखंड राज्य बनने से पहले का अंतिम बिहार विधानसभा चुनाव था।

2005 (फरवरी): तेरहवां विधानसभा चुनाव

3 चरणों में मतदान।

परिणाम त्रिशंकु विधानसभा के रूप में आया, जिसके कारण विधानसभा भंग करनी पड़ी।

2005 (अक्टूबर): चौदहवां विधानसभा चुनाव

उसी वर्ष दोबारा चुनाव हुआ, इस बार 4 चरणों में।

नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी- एक नए युग की शुरुआत।

2010: पंद्रहवां विधानसभा चुनाव

6 चरणों में मतदान हुआ।

यह बिहार के इतिहास का सबसे अधिक चरणों वाला चुनाव था।

एनडीए को 206 सीटें मिलीं, जो भारी जनसमर्थन का संकेत थी।

2015: सोलहवां विधानसभा चुनाव

5 चरणों में मतदान।

‘महागठबंधन बनाम एनडीए’ का मुकाबला रहा।

नीतीश कुमार और लालू यादव की जोड़ी ने भारी जीत दर्ज की।

2020: सत्रहवां विधानसभा चुनाव

3 चरणों में मतदान हुआ।

यह चुनाव COVID-19 महामारी के बीच सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ संपन्न हुआ। एनडीए को 125 सीटें, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं।

बिहार की जनसंख्या और निर्वाचन क्षेत्र का विकास

1985 में बिहार की आबादी अपेक्षाकृत कम थी और राज्य में झारखंड भी शामिल था। उस समय विधानसभा में 324 सीटें थीं।आज बिहार की जनसंख्या लगभग 7.5 करोड़ है और विधानसभा में 243 सीटें हैं।

इस बदलाव के साथ बिहार के चुनावी परिदृश्य में भी बड़ा परिवर्तन आया है। जनसंख्या वृद्धि, प्रवास, शहरीकरण और जातिगत पुनर्संरचना ने चुनावी गणित को नई दिशा दी है।

एक चरण वाले चुनावों का दौर

1980, 1990 और 1969 में बिहार में चुनाव एक ही चरण में कराए गए थे। उन दिनों बिहार में चुनावी चुनौतियां सीमित थीं। संवेदनशील या नक्सल प्रभावित क्षेत्र बहुत कम थे। प्रशासनिक ढांचा छोटा था।

टी.एन. शेषन जैसे सख्त चुनाव आयुक्तों की सख्ती से चुनाव पारदर्शी और अनुशासित रहे। आज के परिदृश्य में जहां 7.4 करोड़ मतदाता हैं और सुरक्षा व्यवस्था व्यापक हो चुकी है, वहां एक चरण में चुनाव कराना कठिन माना जाता है।

निष्कर्ष

1952 से 2020 तक के चुनावी सफर ने बिहार को न सिर्फ़ राजनीतिक रूप से परिपक्व बनाया, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र का दर्पण भी बन गया।

इन सात दशकों में बिहार ने कांग्रेस के स्वर्णयुग से लेकर मंडल राजनीति, सामाजिक न्याय, विकास और गठबंधन युग तक का पूरा संक्रमण देखा है।

2025 का चुनाव इसी यात्रा का अगला अध्याय है- जहां बिहार फिर एक बार इतिहास रचने की तैयारी में है।

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