बिहार चुनाव 2025: विनिंग हॉर्स' नहीं साबित हुए कांग्रेस-VIP- महागठबंधन में कमजोर प्रदर्शन, लेफ्ट का कमाल भी फीका

बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में कांग्रेस और मुकेश सहनी का प्रदर्शन बहुत कमजोर साबित हुआ है।
पटना डेस्क : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के शुरुआती रुझानों और ताजा आंकड़ों ने राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन की उम्मीदों पर गहरी चोट पहुंचाई है।
जहां NDA स्पष्ट बहुमत की ओर बढ़ता दिख रहा है, वहीं महागठबंधन के प्रमुख सहयोगी दल – कांग्रेस और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) – का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। इन दोनों दलों ने सीट बंटवारे के समय तेजस्वी यादव से अधिक से अधिक सीटों की मांग की थी, लेकिन चुनावी नतीजों में उनका स्ट्राइक रेट बहुत ही खराब साबित हुआ है, जिसने महागठबंधन की हार की मुख्य वजहों में से एक को उजागर कर दिया है। लेफ्ट पार्टियों का प्रदर्शन भी उस स्तर का नहीं रहा, जिसकी उम्मीद महागठबंधन को थी।
महागठबंधन की करारी हार में कांग्रेस-VIP की कमजोर कड़ी
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन के घटक दलों में कांग्रेस और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी का प्रदर्शन सबसे कमजोर साबित हुआ है। सीट बंटवारे के समय, सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस ने 54 से 58 सीटें पाई थीं, जबकि VIP को 18 सीटें मिली थीं। कांग्रेस ने पिछली बार 70 सीटों पर लड़कर 19 सीटें जीती थीं, जिसका स्ट्राइक रेट करीब 27% था।
इस बार, इतनी महत्वपूर्ण सीटें मिलने के बावजूद, उनका प्रदर्शन पिछले रिकॉर्ड से भी नीचे चला गया है। रुझानों के अनुसार, कांग्रेस इकाई दहाई के आंकड़े के आसपास सिमटती नजर आ रही है। इसी तरह, VIP का प्रदर्शन भी बेहद निराशाजनक रहा है।
मुकेश सहनी, जो स्वयं को 'सन ऑफ मल्लाह' कहते हैं और एक महत्वपूर्ण वोट बैंक का दावा करते हैं, उनकी पार्टी मुश्किल से एक या दो सीटों पर ही बढ़त बना पाई है। इन दोनों दलों का खराब स्ट्राइक रेट सीधे तौर पर महागठबंधन की सत्ता वापसी की राह में सबसे बड़ी बाधा बन गया।
सीट बंटवारे में अधिक मांग का उल्टा पड़ा दांव
चुनाव से पहले सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और मुकेश सहनी की पार्टी VIP, दोनों ने ही राष्ट्रीय जनता दल पर अधिक सीटों के लिए दबाव बनाया था। यह मांग पिछले चुनावों में उनके प्रदर्शन के बजाय, उनके राजनीतिक रसूख और भविष्य की संभावनाओं पर आधारित थी।
कांग्रेस का तर्क था कि वह राष्ट्रीय पार्टी है और उसे सम्मानजनक सीटें मिलनी चाहिए, जबकि मुकेश सहनी ने अपने समाज के वोट बैंक का हवाला दिया था। RJD, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में, अंततः उन्हें उनकी मांग के करीब सीटें देने पर सहमत हो गई, लेकिन चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया कि यह फैसला एक बड़ा राजनीतिक जोखिम था जो गलत साबित हुआ। कमजोर जनाधार वाले दलों को अधिक सीटें देने से महागठबंधन का कुल स्ट्राइक रेट बुरी तरह प्रभावित हुआ और इसका सीधा लाभ NDA को मिला।
लेफ्ट पार्टियों का प्रदर्शन- अपेक्षा के अनुरूप नहीं
महागठबंधन में शामिल वामपंथी दल - CPI(ML) लिबरेशन, CPI और CPM - ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़ा था और उन्हें करीब 30 से 35 सीटें मिली थीं, जिसमें CPI(ML) को सबसे बड़ा हिस्सा दिया गया था। 2020 के चुनाव में, लेफ्ट पार्टियों का स्ट्राइक रेट काफी अच्छा रहा था, जिससे महागठबंधन को बड़ी मदद मिली थी।
इस बार, शुरुआती रुझान बताते हैं कि लेफ्ट पार्टियों ने कुछ सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया है और वे सम्मानजनक सीटें जीतती दिख रही हैं, लेकिन उनका प्रदर्शन उस 'गेम चेंजर' की भूमिका में नहीं आया जिसकी उम्मीद RJD को थी। हालांकि लेफ्ट का स्ट्राइक रेट कांग्रेस और VIP से बेहतर होने की संभावना है, लेकिन वे गठबंधन की कुल टैली को बहुमत के आंकड़े तक ले जाने में नाकाम रहे।
तेजस्वी का मजबूत प्रदर्शन लेकिन सहयोगियों का कमज़ोर आधार
ताजा रुझानों में RJD, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में, महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और अपने दम पर 2020 के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करती दिख रही है। यह तेजस्वी यादव के व्यक्तिगत आकर्षण और RJD के मुख्य जनाधार की एकजुटता को दर्शाता है। हालाँकि, RJD का मजबूत प्रदर्शन भी सरकार बनाने के लिए पर्याप्त नहीं हो सका, क्योंकि उनके सहयोगी दल, विशेष रूप से कांग्रेस और VIP, अपने-अपने हिस्से की सीटों पर जीत सुनिश्चित नहीं कर पाए। ऐसा लगता है कि RJD ने जहा अपनी जमीन बचाई, वहीं कमजोर सहयोगियों ने मिलकर महागठबंधन की नैया डुबो दी।
इस चुनाव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल RJD के वोट बैंक पर निर्भर रहना और सहयोगियों के कमजोर आधार को नजरअंदाज करना गठबंधन की राजनीति में महंगा साबित हो सकता है।
महागठबंधन के भविष्य पर सवालिया निशान
बिहार चुनाव 2025 के परिणाम महागठबंधन के भविष्य पर एक बड़ा सवालिया निशान लगाते हैं। कांग्रेस और VIP के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद, गठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे और भविष्य की रणनीति को लेकर एक बड़े मंथन की जरुरत है। यह तय है कि अब RJD, अपने सबसे बड़े सहयोगी कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे को लेकर पुनर्मूल्यांकन करेगी।
मुकेश सहनी, जो खुद अपनी सीट मुश्किल से बचा पाए हैं, उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता और बार-बार पाला बदलने की प्रवृत्ति पर भी सवाल उठेंगे। महागठबंधन को यह विचार करना होगा कि क्या वे ऐसे सहयोगियों को अधिक सीटें देते रहेंगे जिनका स्ट्राइक रेट बेहद खराब रहा है, या फिर अपनी मुख्य शक्ति, RJD और लेफ्ट पार्टियों के प्रदर्शन को और मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
