Bihar Election 2025: बिहार में 40 साल बाद दो चरणों में मतदान! आखिर क्यों लिया गया यह ऐतिहासिक फैसला? जानिए वजह

क्या चुनाव आयोग बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से 'वन नेशन वन इलेक्शन' की दिशा में आगे बढ़ रहा है?
बिहार डेस्क : देश में इस वक्त बिहार विधानसभा चुनाव की चर्चा जोरों पर है। लगातार चुनावी माहौल गर्म हो रहा है और सियासी सरगर्मी पूरे देश में बढ़ गई है। टीवी चैनलों की डिबेट्स में भी अब सबसे बड़ा मुद्दा बिहार चुनाव ही है। कल जब मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा की और बताया कि इस बार चुनाव दो चरणों में होंगे, तो इससे एक नई चर्चा शुरू हो गई-
आख़िर पहली बार बिहार में विधानसभा चुनाव दो चरणों में क्यों कराए जा रहे हैं?
चुनाव आयोग का तर्क
चुनाव आयोग ने बताया कि इस निर्णय के पीछे राजनीतिक दलों की सलाह और सुरक्षा व्यवस्था जैसे कई कारण हैं। ECI के अनुसार, पटना में हुई सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने अपने-अपने सुझाव दिए थे-
भारतीय जनता पार्टी (NDA) ने कहा कि बिहार चुनाव एक चरण में कराए जाएं।उनका तर्क था कि देश “वन नेशन वन इलेक्शन” की ओर बढ़ रहा है, और बिहार को एक प्रयोग के रूप में एक चरण में चुनाव कराकर इस दिशा में उदाहरण बनाया जा सकता है।
राजद और इंडिया गठबंधन ने दो चरणों में चुनाव कराने की मांग की थी।
चुनाव आयोग ने विपक्ष के इस सुझाव पर मुहर लगाई। यह इसलिए भी अहम माना गया क्योंकि अक्सर विपक्ष चुनाव आयोग पर पक्षपात के आरोप लगाता रहा है, लेकिन इस बार आयोग ने उनकी राय को प्राथमिकता दी।
बिहार की राजनीति का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1952 के पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2020 तक, बिहार में 17 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। शुरुआती दौर (1950–1970) में कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन बाद में क्षेत्रीय दलों जैसे जनता दल, आरजेडी और बीजेपी का उदय हुआ। बिहार की राजनीति हमेशा से ‘मंडल बनाम कमंडल’ की धुरी पर घूमती रही है।
1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव ने यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण को मजबूत किया, जो सामाजिक न्याय और पिछड़ों के उत्थान की वकालत करता था।2005 से नीतीश कुमार–बीजेपी गठबंधन ने EBC, महादलित और ऊपरी जातियों को जोड़कर ‘लव–कुश समीकरण’ (कुर्मी–कोएरी) के सहारे विकास को नया राजनीतिक मुद्दा बनाया।
2010 के चुनाव में एनडीए को 206 सीटों की जीत मिली, जो इस गठबंधन की सबसे बड़ी सफलता थी। 2020 में तीन चरणों में हुए चुनाव में मतदान प्रतिशत 57% रहा, जहां एनडीए को 125 सीटें और महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं। यह लगभग बराबरी की टक्कर थी।
प्रवास और प्रवासी मजदूर- बड़ा कारक
बिहार से 1 करोड़ से अधिक युवा रोजगार के लिए राज्य से बाहर जाते हैं। यह प्रवास बिहार के मतदान पैटर्न को सीधा प्रभावित करता है। 2020 में कोविड महामारी के कारण कई प्रवासी मतदाता वोट नहीं डाल पाए, जिससे विपक्ष को नुकसान हुआ। लेकिन इस बार दिवाली और छठ पूजा के मौके पर प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में बिहार लौटेंगे। उनकी संख्या लगभग एक करोड़ या उससे अधिक हो सकती है, जो इस चुनाव में निर्णायक प्रभाव डालेंगे।
जातिगत समीकरण और आंकड़े
बिहार की सामाजिक संरचना अब भी जातिगत आधार पर काफी प्रभावशाली है।
- यादव: 14%
- कुर्मी: 4%
- कोएरी: 4%
- मुस्लिम: 17%
- अत्यंत पिछड़ी जातियां (EBC): 36%
- दलित: 16%
2023 के जाति सर्वेक्षण के अनुसार, OBC/ST आबादी 65% है, जो RJD और INDIA गठबंधन के लिए लाभदायक स्थिति बनाती है। 2025 के चुनाव में बेरोजगारी (15% से ऊपर), महिला सुरक्षा, और 69 लाख वोटरों के नाम विलोपन (deletion) जैसे मुद्दे प्रमुख हैं।
'विकास बनाम न्याय' का चुनाव
यह चुनाव अब पूरी तरह से “विकास बनाम न्याय” की बहस पर केंद्रित होता दिख रहा है। जहां NDA विकास और सुशासन के मुद्दों पर वोट मांग रही है, वहीं INDIA गठबंधन बेरोजगारी और सामाजिक न्याय की बात कर रहा है।प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ पार्टी भी युवाओं के बीच एक नई राजनीतिक शक्ति के रूप में उभर रही है।
कुल मिलाकर, बिहार का वोटिंग समीकरण अब सामाजिक न्याय की मांग और विकास की आकांक्षा के बीच झूल रहा है।
1985 के बाद पहला मौका, जब चुनाव दो चरणों में हो रहा है।
1985 के बाद अब 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार दो चरणों- 6 और 11 नवंबर- में मतदान होगा। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बताया कि यह निर्णय राजनीतिक दलों की सहमति, सुरक्षा व्यवस्था और लॉजिस्टिक्स की चुनौती को ध्यान में रखकर लिया गया।
अब तक बिहार में चुनाव कई चरणों में होते रहे हैं
- 2010: 6 चरण
- 2015: 5 चरण
- 2020: 3 चरण
लेकिन इस बार आयोग ने केवल दो चरणों का मॉडल अपनाया है।
चुनाव आयोग की तैयारी और तर्क
- बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं।
- कुल 7.4 करोड़ मतदाता।
- 90,712 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं।
एक चरण में इतने बड़े पैमाने पर मतदान कराना लॉजिस्टिक रूप से कठिन होता। दो चरणों में चुनाव कराने से लगभग 2.5 लाख सुरक्षाकर्मियों की तैनाती व्यवस्थित रूप से की जा सकेगी। पहले चरण में 121 सीटें, दूसरे चरण में 122 सीटों पर मतदान होगा।
दो चरणों में चुनाव कराने की बड़ी वजह
प्रवासी मजदूर आमतौर पर त्योहारों के बाद कुछ दिनों के लिए बिहार लौटते हैं। अगर चुनाव लंबा चलता, तो वे वोट देने से वंचित रह सकते थे। इसलिए ECI ने इस बार कम अवधि में दो चरणों का शेड्यूल तय किया ताकि प्रवासी भी मतदान में हिस्सा ले सकें। यह निर्णय न सिर्फ वोट प्रतिशत बढ़ाने बल्कि “वन नेशन वन इलेक्शन” के विचार को व्यवहारिक रूप देने का भी प्रयास है।
वन नेशन वन इलेक्शन की दिशा में कदम
चुनाव आयोग लगातार अपनी चुनावी प्रक्रिया को तेज और कुशल बना रहा है।
- 2014 लोकसभा चुनाव- 9 चरणों में
- 2019 और 2024 लोकसभा चुनाव- 7 चरणों में
अब बिहार में केवल दो चरणों में चुनाव कराना इस दिशा में एक बड़ा एक्सपेरिमेंट है। इससे चुनावी खर्च और सरकारी कार्यों पर पड़ने वाला बोझ भी कम होगा।
क्या अबकी बिहार का मतदाता इतिहास रचेगा?
यह कहने में कोई दोराय नहीं कि इसकी संभावना बहुत प्रबल है। जानकारों की मानें , तो पहली बार दो चरणों के कारण मतदान प्रतिशत 60% से ऊपर जा सकता है। इससे पहले 2020 में यह 57% था।इस बार 14 लाख नए युवा वोटर और 3.5 करोड़ महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
NDA विकास और बुनियादी ढांचे (जैसे मेट्रो, पुल, सड़कें) पर फोकस कर रही है, जबकि INDIA ब्लॉक बेरोजगारी और जातिगत सर्वे जैसे मुद्दों पर हमला बोल रहा है।
दिवाली और छठ पर लगभग 1.2 करोड़ लोग बिहार लौटेंगे, जिससे मतदान में ऐतिहासिक बढ़ोतरी हो सकती है। यह 1990 के बाद का सबसे बड़ा सामाजिक-राजनीतिक शिफ्ट बन सकता है।
अगर चुनाव एक चरण में होते तो क्या होता?
अगर 2025 का पूरा मतदान एक ही दिन (जैसे 10 नवंबर) को होता, तो इसके कई प्रभाव होते-
फायदे:
- खर्च में लगभग 30% की कमी
- त्वरित परिणाम
- प्रवासी मतदाताओं की अधिक भागीदारी।
- NDA को राजनीतिक फायदा, क्योंकि प्रचार का समय विपक्ष के पास कम होता।
नुकसान:
- सुरक्षा बलों और प्रशासन पर भारी दबाव।
- नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जोखिम।
ECI के अनुसार, एक चरण में 7.4 करोड़ वोटरों के लिए 3 लाख सुरक्षाकर्मी चाहिए होते, जो फिलहाल संभव नहीं है। इसलिए आयोग ने दो चरणों को बेहतर, पारदर्शी और सुरक्षित विकल्प माना है। इस बार चुनाव में 17 नई तकनीकी पहलें जैसे CCTV निगरानी, ड्रोन सर्विलांस और रीयल टाइम मॉनिटरिंग शामिल की गई हैं।
निष्कर्ष
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 भारत के चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने जा रहा है। दो चरणों का यह फैसला सिर्फ तारीखों का निर्धारण नहीं है, बल्कि एक सोच है-
“कम चरण, ज़्यादा पारदर्शिता, और अधिक भागीदारी।”
बिहार का मतदाता अब पहले से ज़्यादा जागरूक, प्रवासी अब ज़्यादा शामिल और युवा वर्ग अब पहले से ज़्यादा सक्रिय है। संभावना यही है कि इस बार बिहार मतदान के साथ लोकतांत्रिक भागीदारी का नया रिकॉर्ड बनाएगा।
