मशहूर वैज्ञानि‍क भार्गव ने लौटाया पदम पुरस्‍कार, बोले सरकार में नहीं चेतना

मशहूर वैज्ञानि‍क भार्गव ने लौटाया पदम पुरस्‍कार, बोले सरकार में नहीं चेतना
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साहि‍त्‍यकारों, फि‍ल्‍मकारों के बाद अब वैज्ञानि‍क भी वापस करने लगे पुरस्‍कार
नई दिल्ली. भारत के एक मशहूर वैज्ञानिक डॉ. पी एम भार्गव ने देश में तेजी से बढ़ रही असहिष्णुता और नागरिक अधिकारों के दमन के विरोध में पद्म भूषण पुरस्कार लौटाने की बात कही। हफिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक हैदराबाद में सेंटर फार सेल्युलर एंड मोलिक्यूलर बायोलाजी की स्थापना करने वाले भार्गव ने कहा 1986 में मिले अपने पुरस्कार को वह लौटाएंगे क्योंकि उन्हें महसूस हो रहा है कि देश में डर का माहौल है और यह तर्कवाद, तार्किकता और वैज्ञानिक सोच के खिलाफ है।
पुरस्कार वापस करने पर मुझे कोई संकोच नहीं हुआ। मैंने पुरस्कार को अपनी संतुष्टि के लिए वापस किया है। मुझे लगता है कि सरकार इसको लेकर कुछ नहीं करेगी। लेकिन अगर मैं ग़लत साबित होऊं तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। भार्गव ने यह भी कहा कि मुझे लगता है कि अब युवा वैज्ञानिकों को भी इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
इस बाबत भार्गव का कहना है कि सरकार का रवैया तर्क शास्त्रियों, वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों के प्रति भेदभावपूर्ण है। बता दें कि इससे पहले गुरुवार को दिवाकर बनर्जी और आनंद पटवर्धन समेत 12 फ़िल्मकारों ने राष्ट्रीय पुरस्कार वापस लौटाने की घोषणा की थी।
दिबाकर बनर्जी ने इस संबंध में घोषणा करते हुए कहा था कि देश में जो कुछ घटित हो रहा है उससे उनका मोहभंग हुआ है। पटवर्धन ने कहा है कि उनके इस कदम को राजनैतिक करार दिया जाएगा लेकिन उन्‍हें इसकी परवाह नहीं है। राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार उनके लिए अंतरराष्‍ट्रीय पुरस्‍कार से ज्‍यादा मायने रखते हैं। इसे वापस करना उनके लिए पीड़ादायक लम्‍हा है।
बनर्जी ने यह भी कहा कि मैं क्रोध या आक्रोश प्रकट नहीं कर रहा। यह भावना तो बहुत पहले समाप्त हो चुकी है। मेरे लिए 'खोसला का घोसला' फिल्म के लिए मिला पुरस्कार लौटाना आसान नहीं था। बता दें कि बनर्जी को 2006 में यह पुरस्कार मिला था।
गौरतलब है कि अभी तक इसी मामले में कुल 33 साहित्यकार अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा चुके हैं। याद हो बुधवार को दिबाकर बनर्जी और आनंद पटवर्धन समेत 12 फ़िल्मकारों ने राष्ट्रीय पुरस्कार वापस लौटाने की घोषणा की थी।
दूसरी तरफ भार्गव ने कहा कि हमारा संविधान वैज्ञानिक चेतना को बढ़ावा देने की बात कहता है न कि धार्मिक कट्टरता की। लेकिन ऐसा लगता है कि मौजूदा केंद्र सरकार में वैज्ञानिक चेतना नहीं है। वह बहुत से अतार्किक काम कर रही है। इसका एक उदाहरण यह है कि हमारी मौज़ूदा सरकार हमें यह बताती है कि आप को क्या खाना है, क्या पहनना है और क्या बोलना है। वह हमें नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाती है।
यह बात हमें मंज़ूर नहीं है। इसके चलते मोहम्मद अखलाक नामक शख्स मारा गया, कलबुर्गी की हत्या हुई, दाभोलकर और गोविंद पंसारे जैसे लोग मौत के घाट उतार दिए गए। ये सभी घटनाए इस बात की गवाही देती है कि हमारा समाज किस कदर हिंसा पर उतारू होता जा रहा है।
देश भर में हिंसात्मक घटनाओं की बाढ़ सी आ गई है। जब से बीफ बैन के मुद्दे को भाजपा के द्वारा जोर शोर से उठाया जा रहा है तब से इन घटनाओं में कुछ ज्यादा इजाफा हुआ है। इसी के विरोध में सभी लेखक एकजुट होकर सरकार के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे हैं। अभी तक दर्जनों लेखक अपने पुरस्कार लौटा चुके हैं और जब तक देश की स्थिति में सुधार नहीं होता, आगे भी ये सिलसिला यूं ही जारी रहेगा।
वहीं दूसरी तरफ ये खबरें भी आ रही हैं कि जो लेखक अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं वे सभी कांग्रेसी सरकार के दौरान सम्मानित किए गए थे। इसी के चलते ये सभी एक जुट होकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
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