सचिन तेंदुलकर हुए थे कपिल देव से निराश, कप्तानी के समय साथ न देने का लगाया आरोप

नई दिल्ली. दिसंबर, 1997 में शारजाह में हुए चार देशों के टूर्नामेंट में हार के बाद हमने श्रीलंका के साथ घरेलू सीरीज़ बराबरी पर खेली। सीरीज़ के बाद मुझे अचानक कप्तानी से बर्खास्त कर दिया गया। हटाने से पहले मुझे बीसीसीआई से किसी का फोन नहीं आया। मुझे मीडिया से किसी ने फोन किया। उस समय साहित्य सहवास में अपने दोस्तों के साथ बैठा था। मैंने बहुत अपमानित महसूस किया, लेकिन जिस तरह से यह सब हुआ, मुझमें आने वाले समय में खुद को बेहतर क्रिकेटर साबित करने की इच्छा और भी मजबूत होती गई। मैंने खुद से कहा कि बीसीसीआई के आका मुझसे कप्तानी छीन सकते हैं, लेकिन मेरी क्रिकेट को कोई छीन नहीं सकता। लेकिन अंदर अपमान का दुख तो था ही। जब मैं कप्तान था तो साथी खिलाड़ी मुझे स्किप पुकारते थे। ढाका में अगली सीरीज़ में जब किसी ने स्किपर पुकारा तो आदतन मैंने पीछे मुड़कर देखा। लेकिन मैं कप्तानी से हटाया जा चुका था। तब मुझे बहुत बुरा लगा था।
कोच कपिल देव के रवैय्ये से सचिन को हुई थी निराशा-
दूसरी बार जब मैं कप्तान बना तो कोच थे कपिल देव। भारत की ओर से खेलने वाले बेहतरीन क्रिकेटरों में से एक हैं। साथ ही अब तक के दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ऑलराउंडरों में भी शामिल हैं। ऑस्ट्रेलिया दौरे पर मुझे उनसे बड़ी उम्मीदें थीं। मेरा हमेशा से मानना है कि टीम में कोच की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। टीम के लिए रणनीति बनाने में उसकी भूमिका अहम होती है। ऑस्ट्रेलिया जैसे कठिन दौरे पर कपिल देव से बेहतर मुझे कौन सलाह दे सकता था, लेकिन टीम की सोच में उनकी भागीदारी कम रही। उनकी सोच थी कि हर निर्णय कप्तान को लेना चाहिए। लिहाज़ा उन्होंने रणनीति बनाने से खुद को अलग रखा।
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