चुनाव के बाद ही मजबूत होगा रुपया, सही धारणा की जरूरत

चुनाव के बाद ही मजबूत होगा रुपया, सही धारणा की जरूरत
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इंडिया रेटिंग्स के अनुसार चुनाव के बाद ही रुपया सुधर पाएगा।
नई दिल्ली. अमेरिकी डालर की तुलना में रुपए को 55 प्रति डालर के स्तर तक मजबूत करने के लिए सकारात्मक धारणा की जरूरत है, लेकिन यह सिर्फ मार्च या आम चुनाव के बाद ही संभव हो पाएगा। इंडिया रेटिंग्स के प्रबंध निदेशक व मुख्य कार्यपालक अधिकारी अतुल जोशी ने यह बात कही है।


जोशी ने कहा कि मौजूदा रुपए की दर में आधार नहीं दिख रहा और इसे 55 के स्तर तक मजबूत करने की जरूरत है। जोशी ने साक्षात्कार में कहा, चूंकि रुपए में गिरावट नकारात्मक धारणा की वजह से आई है, सकारात्मक धारणा से यह 55 प्रति डालर के स्तर पर आ सकता है। लेकिन यह मार्च के बाद आम चुनाव पश्चात ही संभव होगा। इंडिया रेटिंग्स फिच रेटिंग्स समूह की भारतीय इकाई है। जोशी ने हालांकि कहा कि चुनाव से देश की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर पर अधिक असर पड़ने की संभावना नहीं है। अर्थव्यवस्था में सुधार आना शुरू हो चुका है और यह रूकने वाला नहीं है।
यह तभी रूकेगा जब नई सरकार कुछ सुधारों को पलटेगी। उन्होंने कहा कि यदि बहुत कुछ नहीं भी होता है, तो भी जीडीपी की वृद्धि दर 4.9 प्रतिशत के आसपास रहेगी। जोशी ने कहा कि हम दो कटाई सत्रों से अच्छे नतीजों की उम्मीद कर रहे हैं। अब यह सकारात्मक रफ्तार सेवाओं और कृषि क्षेत्र की ओर बढ़ेगी। उन्होंने आर्थिक वृद्धि दर के बारे में कहा, हम निचले स्तर को छू चुके हैं। ऐसे में अगले वित्त वर्ष में हमें 5.6 से 5.8 प्रतिशत की वृद्धि दर की उम्मीद है। ऐसे मे 6 फीसद की वृद्धि दर की ओर बढ़ने के लिए हमें कोई बड़े बदलाव की जरूरत नहीं होगी।
महंगाई व मुद्रा अर्थव्यवस्था के राह में रोड़ाअर्थव्यवस्था व नीतिनिर्माताओं के समक्ष प्रमुख चुनौतियों का जिक्र करते हुए जोशी ने कहा कि दो चीजें ऐसी हैं जो रास्ता रोक सकती हैं। एक है महंगाई व दूसरी मुद्रा। यदि मुद्रास्फीति अगले दो तीन माह तक 10 प्रतिशत के पार रहती है और वहीं बनी रहती है, तो इसका कई अन्य क्षेत्रों पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा। ये क्षेत्र हैं खुदरा, लघु एवं मझोले उद्योग तथा विनिर्माण। यदि ब्याज दरें बढ़ती हैं तो इन क्षेत्रों पर दबाव पड़ेगा। जोशी ने कहा, मेरा अनुमान है कि महंगाई सबसे बड़ी चिंता है। दूसरी चिंता मुद्रा की है। जब रुपया 54-55 प्रति डालर पर था, उसके बाद से कई वस्तुओं के दाम उल्लेखनीय रूप से बढ़े हैं। मुद्रास्फीति को बढ़ाने में मुद्रा का योगदान रहता है।

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