आल्हा जयंती विशेष: राजपूत योध्दा आल्हा-ऊदल कौन थे?, मां शारदा और पृथ्वीराज चौहान से क्या था ताल्लुक

वीर आल्हा-ऊदल
Aalha Jayanti 2025: हर साल 25 मई को आल्हा जयंती मनाई जाती है। इस दिन आल्हा- ऊदल की वीरता और बलिदान को याद किया जाता है। आल्हा-ऊदल 52 युद्धों में विजय प्राप्त की, जिनका वर्णन "आल्हाखंड" नामक ग्रंथ में मिलता है। आइए जानते हैं राजपूत योध्दा आल्हा-ऊदल के बारे में विस्तार से..
आल्हा-ऊदल की जयंती को विशेष रूप से महोबा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में लोग बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। आल्हा-ऊदल कौन हैं? उनका पृथ्वीराज चौहान और मैहर माता मंदिर से क्या ताल्लुक रहा है? इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं। बनाफर राजपूतों की संख्या कम होने की वजह से भी इनका इतिहास में ज्यादा वर्णन नहीं किया गया है। वर्तमान में बनाफर राजपूत यूपी के महोबा, उरई, झांसी, ललितपुर के साथ ही मध्यप्रदेश के रीवा, सतना और छतरपुर जिले में निवासरत हैं।
कौन हैं आल्हा-ऊदल?
आल्हा और ऊदल, बुन्देलखण्ड के चन्देल राजा परमल के सेनापति दसराज के पुत्र थे। वे बनाफर वंश के थे, जो कि चन्द्रवंशी क्षत्रिय वंश है। इन दोनों भाइयों की वीरता जगजाहिर है। इसका वर्णन "आल्हाखंड" नामक ग्रंथ में भी मिलता है। जगनेर के राजा जगनिक ने आल्ह-खण्ड की रचना की है।
आल्हाखंड के अनुसार आल्हा के छोटे भाई ऊदल ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए 1182 ई० में पृथ्वीराज चौहान से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। यह खबर सुनते ही आल्हा अपना आपा खो बैठे। इसके बाद आल्हा पृथ्वीराज चौहान की सेना के ऊपर मौत बनकर टूट पड़े। कहा जाता है कि जो भी आया मारा गया।
18 दिनों तक चला था युध्द
कुछ समय बाद पृथ्वीराज चौहान और आल्हा भी युध्द में आमने-सामने आ गए। यह युध्द करीब 18 दिनों तक चला। जिसमें युध्द के दौरान पृथ्वीराज चौहान बुरी तरह घायल हो गए। जिसका बीच बचाव करने के लिए आल्हा के गुरू गोरखनाथ सामने आए। गुरू गोरखनाथ के कहने पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दे दिया। पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान देना उनकी महानता और उदारता को भी दर्शाता है।
आल्हा को मां शारदा का परम भक्त माना जाता है। मैहर स्थित शारदा माता मंदिर में मान्यता है कि आल्हा और ऊदल की पूजा सबसे पहले होती है। यह परंपरा आज भी जीवित है, जहां मंदिर के कपाट बंद करने के बाद भी सुबह पूजा के निशान मिलते हैं। यह आल्हा की भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
क्यों मनाई जाती है आल्हा जयंती
राजपूत समाज के साथ ही पूरा हिंदू समाज खासतौर से बुंदेलखंड के लोग आल्हा जयंती मनाते हैं। उनका मानना है कि यह न केवल आल्हा और ऊदल की वीरता को याद करने का अवसर है, बल्कि यह बुंदेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को संरक्षित रखने का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है। जो अनवरत जारी है।
